कानपुर, NOI : कानपुर पुलिस की क्राइम ब्रांच टीम ने शहर में बैठकर अमेरिका के लोगों को चूना लगाने वाले जिस शातिर गिरोह को पकड़ा है, उसकी ठगी का तरीका सुनकर सभी हैरान रह गए। गिरोह में पकड़े गए चार सदस्यों का अलग अलग काम बांटा था और मोबाइल में वायरस भेजकर ठगी का तानाबाना बुनना शुरू करते थे। पुलिस की पूछताछ में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।

गिरोह के सदस्यों के बंटे थे काम

कानपुर क्राइम ब्रांच की टीम ने गिरफ्तारी के बाद नोएडा निवासी मुनेंद्र शर्मा अपने चार साथियों फिरोजाबाद निवासी संजीव, प्रतापगढ़ निवासी जिकुरल्ला और बिहार निवासी सूरज सुमन से पूछताछ की तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। कॉल सेंटर का मास्टरमाइंड मुनेंद्र शर्मा ने पुणे यूनीवर्सिटी से साॅफ्टवेयर इंजीनियरिंग की है और नोएडा का रहने वाला है। उसने कानपुर आकर गिरोह बनाया और कॉल सेंटर चलाने के लिए तीन युवाओं को तैयार किया। साॅफ्टवेयर इंजीनियर होने के चलते मुनेंद्र खुद मोबाइल हैक करता था, जबकि बाकी तीन सदस्यों के अलग अलग काम तय थे। दो कॉल सेंटर पर अमेरिका से आने वाली कॉल रिसीव करके कस्टमर फंसाते थे तो तीसरा कंप्यूटर पर बैंक ट्रांजेक्शन से लेकर अन्य काम संभालता था।

इस प्रकार करते थे ठगी

अंतराष्ट्रीय काल सेंटर से लोगों को बिल्कुल अलग अंदाज में फंसाते थे। किसी भी साइट पर ब्लिंक करने वाले विज्ञापन मसलन दस दिन में मोटापा घटाएं, पेट कम करें, घुटनों को मजबूत करें, लंबाई बढ़ाएं, झड़ने वाले बालों को रोकें आदि पर किसी मोबाइल धारक क्लिक कर देता या फिर धोखे से क्लिक हो जाता तो उसके मोबाइल पर मालवेयर अपलोड हो जाता था, जो एक तरह का वायरस होता है।

मोबाइल पर बार-बार आता मैसेज

एक बार मालवेयर सिस्टम में अपलोड होते ही बार-बार मोबाइल पर पाॅपअप मैसेज स्क्रीन पर आना शुरू हो जाते हैं, जिससे मोबाइल यूजर काफी परेशान हो जाता है। वह मोबाइल पर कोई भी ऑपरेशन ठीक से नहीं कर पाता है। ऐसा ही ठगी का शिकार हुए अमेरिका में बैठे लोगों के साथ भी हुआ। वायरस से बचने के लिए पॉपअप मैसेज के साथ आने वाले हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करते ही ठग गिरोह के जाल में शिकार फंस जाता था। कॉल आते ही गिरोह वायरस खत्म करने के साथ और एक साल तक सर्विस की बात कहकर डॉलर में चार्ज मांगते थे। यूजर बताए गए अकाउंट में रुपये ट्रांसफर कर देता था, इसके बाद उससे टेक सपोर्ट के लिए कुछ एप डाउनलोड करने के लिए कहा जाता था। यूजर द्वारा एप डाउनलोड करते ही मोबाइल हैक कर लिया जाता था।

सर्विस के नाम पर बेचते थे प्लान

मालवेयर हटाने और सर्विस देने के नाम पर काल सेंटर द्वारा प्लान बेचा जाता था, जो छह माह और एक साल के लिए होता था। सर्विस न मिलने पर पूरी रकम वापसी का भरोसा दिया जाता था। यहीं से शुरू होता था ठगी का खेल, अब जब कोई यूजर सर्विस अच्छी न होने की बात कहकर दी गई रकम वापस मांगता तो वह ठगी का शिकार हो जाता था। चूंकि कॉलर का मोबाइल पहले से हैक रहता था, जिससे गिरोह के शातिर रिमोट एक्सेस पर लेकर एकाउंट आदि की डिटेल के एचटीएमएल में जाकर कोडिंग चेंज कर देते थे।

यूजर को पता नहीं चल पाती थी ठगी

अकाउंट की कोडिंग चेंज करके गिरोह के शातिर रकम वापसी का आनलाइन ट्रांजेक्शन का फर्जी मैसेज यूजर के फोन पर भेजते थे। इस मैसेज में वापस की जाने वाली रकम से कई गुना ज्यादा रकम दर्शा देते थे, जबकि हकीकत में कोई रकम ट्रांसफर हुई ही नहीं होती थी। वहीं यूजर को लगता था कि उसे सही में ज्यादा रकम वापस कर दी गई है। अब कॉलर को फोन करके धोखे से ज्यादा रकम ट्रांसफर होने का झांसा देते थे तो यूजर सर्विस चार्ज को काटकर बाकी रकम दोबारा से कॉल सेटर से बताए गए अकाउंट में ट्रांसफर कर देता था, जोकि डॉलर में होती थी। इस तरह गिरोह ने पिछले एक साल में अमेरिका के 12 हजार लोगों को करीब नौ लाख डॉलर चूना लगाया है। कानपुर पुलिस अफसरों की मानें तो ठगी के शिकार हुए लोगों की संख्या ज्यादा भी हो सकती है, फिलहाल नौ लाख डालर के ट्रांजससेक्शन की बैंक स्टेटमेंट से डिटेल पुलिस को मिली है।

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