NOI: इतिहास साक्षी है कि कविताओं ने सुप्त मानवता को जगाया और कई बार क्रांति का सूत्रपात भी किया। भारत के महान स्वाधीनता आंदोलन के दौरान वह कविता ही रही, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ देश के जनमानस को झकझोरा, आंदोलित किया। कविता ने ही वर्ष 1857 में हुए स्वाधीनता आंदोलन में गोंडवाना क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश का जबलपुर व आस-पास का इलाका) में आंदोलन को आग दी थी। गोंडवाना के अंतिम राजा शंकर शाह व उनके पुत्र रघुनाथ शाह द्वारा लिखी गई राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत कविता ने तो अंग्रेजों को इतना भयभीत और विचलित कर दिया था कि उन्होंने इसे लिखने वाले राजा शंकर शाह व उनके पुत्र रघुनाथ शाह को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया था।

कवि सम्मेलन से शुरू हुआ आंदोलन

बलिदान की यह गर्वीली कहानी वर्ष 1857 की है। हुआ यूं था कि जानवरों वाली चर्बी के कारतूसों को मुंह से काटने की बाध्यता के कारण अंग्रेज सेना में भर्ती भारतीय सैनिकों में आक्रोश पलने लगा था। अंतत: मेरठ छावनी में अमर क्रांतिकारी मंगल पांडेय ने इसके खिलाफ विद्रोह कर अंग्रेजों पर गोली चला दी। इस आरोप में मंगल पांडेय को फांसी दे दी गई। इस घटना का असर यह हुआ कि मेरठ, लखनऊ, दिल्ली, जबलपुर समेत देश की कई छावनियों में असंतोष की आग भड़क गई। इसी दौरान गोंडवाना के राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नेतृत्व में आस-पास के मालगुजारों का जुटना शुरू हुआ। लोगों को आंदोलन से जोड़ने के लिए जगह-जगह कवि सम्मेलनों का आयोजन कर देशप्रेम से ओत-प्रोत कविताओं का वाचन व संगीत सभाएं आयोजित की जाने लगीं।

धोखे से हुआ पर्दाफाश

इधर, गोंड राजा की संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी अंग्रेजों तक पहुंच रही थी। अंग्रेज अफसरों ने गुप्तचरों के माध्यम से टोह ली। पुख्ता जानकारी मिलने पर अंग्रेजों की ओर से डिप्टी कमिश्नर लेंज क्लार्क ने एक सिपाही को फकीर के भेष में राजा शंकर शाह की गढ़ा पुरवा स्थित हवेली भेजा। फकीर ने कुटिलतापूर्वक राजा शंकर शाह से अंग्रेजों के विरोध में बातें कही तो राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने फकीर बनकर आए उस गद्दार की बातों पर भरोसा कर बता दिया कि इस बार सभी आंदोलनकारी एकजुट होकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई छेड़ने वाले हैं। विद्रोह की यह खबर मिलते ही डिप्टी कमिश्नर क्लार्क के नेतृत्व में 14 सितंबर, 1857 को 20 घुड़सवार और पैदल सेना ने राजा शंकर शाह की हवेली को घेर कर राजा व उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह सहित 13 लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

स्वाभिमान से लगाया मौत को गले

इस दौरान हवेली की छानबीन में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की ढेरों कविताएं मिलीं। इनमें से एक थी:-

मूंद मुख डंडिन को चुगलों को चबाइ खाइ/खूंद डार दुष्टन को शत्रु संघारिका। /मार अंगरेज रेज पर देइ मात चंडी/बचै नहीं बैरी बाल-बच्चे संहारिका। /संकर की रच्छा कर दास प्रतिपाल कर/दीन की पुकार सुन जाय मात हालिका। /खाय लै मलेच्छन को, देर नहीं करो मात /भच्छन कर ततच्छन बेग शत्रु को कालिका।।

इतिहासकार डा. आनंद सिंह राणा बताते हैं कि अंग्रेज अफसरों ने इस कविता को अपने विरुद्ध सबसे बड़ी साजिश माना। अंग्रेजों ने दोनों को धर्म परिवर्तन करने पर जीवित छोड़ देने और बड़ी पेंशन राशि देने का लालच तक दिया, लेकिन स्वाभिमानी राजा शंकर शाह ने इन्कार कर दिया। 18 सितंबर, 1857 को राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को रेंसीडेंसी के सामने स्थित मैदान में तोप के मुंह के आगे बांध दिया गया। दोनों ने हंसते-हंसते बलिदान दे दिया।

बलिदान से भड़क उठी आग

पिता-पुत्र के इस बलिदान का असर यह हुआ कि आंदोलन की आग और भड़क उठी। अंग्रेज सेना में भर्ती भारतीय सैनिकों में भारी विद्रोह हुआ। जबलपुर से लेकर पाटन और दमोह तक कई बार अंग्रेजों और अंग्रेज दल में शामिल भारतीय सैनिकों के बीच टकराव हुआ। गांव-गांव में दोनों के बलिदान को लोकगीतों और कविताओं के माध्यम से गाया जाने लगा। माताएं अपने बच्चों को राजा शंकर शाह व कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान की गाथाएं सुनाने लगीं। क्रांति से शुरू हुआ आंदोलन का स्वरूप लोक गायन, कवियों, साहित्यकारों की कलम तक पहुंच गया। तीज-त्योहारों में बलिदानियों की गाथा को गाया जाने लगा। राजा और उनके पुत्र के बलिदान का असर यह हुआ कि जो आंदोलन पहले चंद स्वाधीनता सेनानियों तक सिमटा था, अब वह गांव-गांव में जनता का आंदोलन बन गया। दरअसल, लोगों को इस बलिदान ने यह अंतर समझाया कि अंग्रेज उनके हितचिंतक नहीं बल्कि दूसरे देश से आए वे हमलावर हैं, जो उनके देश को लूटने आए हैं। राजा शंकर शाह व कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान का असर लोकजीवन में इतना है कि आज भी कई गांवों में उनके बलिदान पर लिखे गए लोकगीत गाए जाते हैं।

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