चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग ने ताइवान को क्यों दी युद्ध की धमकी, जानें इसका क्या है अमेरिका कनेक्शन
नई दिल्ली,NOI: ताइवान को लेकर चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का नजरिया क्या सच में बदल गया है। 24 घंटे पूर्व उन्होंने ताइवान को युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध को धमकी दी। चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि चीन किसी भी कीमत पर अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। ताइवान को शांतिपूर्ण तरीके से चीन में मिलाना दोनों देशों के विकास के लिए जरूरी है। आखिर चिनफिंग की ताइवान को लेकर क्या है रणनीति। ताइवान को लेकर वह नरम क्यों पड़े। क्या है चीन का 2005 का कानून। इसके पीछे चीन की क्या चाल है।
चीन का अलगाववादी विरोधी कानून
प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग ने ताइवान पर टिप्पणी करते वक्त अपने 2005 के कानून का हवाला दिया है। दरअसल, 2005 में चीन ने अलगाववादी विरोधी कानून पारित किया था। चीन इस कानून के तहत ताइवान को बलपूर्वक मिलाने का अधिकार रखता है। इस कानून की आड़ में चीन कई बार ताइवान को धौंस भी देता रहा है, लेकिन अभी तक ताइवान को मिलाने में चिनफिंग की हर चाल नाकाम रही है। इस कानून के तहत यदि ताइवान अपने आप को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करता है तो चीन की सेना उस पर हमला कर सकती है। हालांकि, कई साल के तनाव और धमकियों के बाद ताइवान ने अपनी आजादी कायम रखी है। चीन की सरकार बार-बार कहती रही है कि वह ताइवान को ताकत के दम पर चीन में मिला लेगा। इन धमकियों के बावजूद चीन आज तक ताइवान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई नहीं कर पाया।
चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग यूएस की ले रहे हैं परीक्षा
प्रो. पंत का कहना है कि चीन हर बार अमेरिका की परीक्षा ले रहा है। चीन इस बात को भांपने में लगा है कि अमेरिका ताइवान का किस हद तक साथ देता है। इस बार युद्ध की धमकी का बयान इसी कड़ी के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह किसी हाल में अभी युद्ध नहीं चाहता। उधर, अमेरिका भी चीन की इस रणनीति को भांप चुका है। इसलिए ताइवान के मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोलता है। हालांकि, अमेरिका यह संकेत देना भी नहीं भूलता कि वह ताइवान के साथ है, लेकिन वह किस हद तक साथ निभाएगा, इस पर मौन रहता है। इसके चलते चीन भ्रमित रहता है कि युद्ध के हालात में अमेरिका कहीं ताइवान के पक्ष में न उतर जाए। वह ताइवान को लेकर अमेरिका के साथ कतई युद्ध नहीं चाहता।
ताइवान की चीन से दूरी 180 किलोमीटर दूर
बता दें कि ताइवान की चीन से दूरी 180 किलोमीटर है। दोनों देशों की एक भाषा है। हालांकि, ताइवान की राजनीतिक व्यवस्था चीन से एकदम उलट है। चीन और ताइवान की भिन्न राजनीतिक व्यवस्था भी दोनों को एक-दूसरे का विरोधी बनाते हैं। चीन में एकदलीय व्यवस्था है, जबकि 2 करोड़ 30 लाख की आबादी वाले ताइवान की व्यवस्था लोकतांत्रिक है। चीन-ताइवान के बीच विवाद काफी पुराना है। इसकी बुनियाद 1949 में पड़ी। दुनिया के सिर्फ 15 देश ही ताइवान को एक स्वतंत्र राष्ट्र मानते हैं। इस विवाद के कारण ही ताइवान को सीमित देशों की ही मान्यता हासिल हो सकी। ताइवान के प्रति चीन का दृष्टिकोण अलग है। चीन इसे अपने से अलग हुआ हिस्सा मानता है। ताइवान को एक विद्रोही प्रांत मानता है।
चीनी राष्ट्रपति के बयान पर क्या बोला ताइवान
चीन के राष्ट्रपति के इस बयान के बाद ताइवान ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी थी। ताइवान के राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि वह एक स्वतंत्र देश है। ताइवान चीन गणराज्य का हिस्सा है। उन्होंने एक देश दो प्रणाली के चीन के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि देश का भविष्य ताइवान के लोगों के हाथों में है।
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