नई दिल्ली,NOI: सुप्रीम कोर्ट ने कथित दंगा मामले में एक आरोपित को अग्रिम जमानत देने से इन्कार करते हुए कहा कि अदालत उस व्यक्ति के बचाव में नहीं आएगी, जो जांच एजेंसी के साथ सहयोग नहीं कर रहा है और फरार है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मार्च 2017 में हुई घटना के संबंध में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और 147 (दंगा के लिए सजा) सहित विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले को लेकर याचिकाकर्ता और अन्य सह-आरोपितों के खिलाफ नवंबर 2018 में आरोपपत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता लगातार फरार है। उसके खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 82 के तहत फरार घोषित करने की कार्रवाई भी शुरू की जा चुकी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस साल जून में आरोपित की अग्रिम जमानत के अनुरोध वाली याचिका खारिज कर दी थी।

जस्टिस एमआर शाह और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने दिसंबर 2019 में निर्देश दिया था कि यदि याचिकाकर्ता 30 दिनों के भीतर अदालत के सामने पेश होता है और आत्मसमर्पण करता है और जमानत के लिए आवेदन करता है तो उसकी प्रार्थना पर विचार किया जाएगा। इस मामले में उसके खिलाफ 30 दिनों की अवधि तक कोई कठोर कदम नहीं उठाया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद याचिकाकर्ता ने आत्मसमर्पण नहीं किया और नियमित जमानत के लिए आवेदन किया। उसके बाद उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट भी जारी किया गया।

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