तहजीब के शहर लखनऊ में उज्जैन के महाकाल की अनुभूति, जानें-सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिर का इतिहास
लखनऊ, NOI : उज्जैन में स्थापित महाकाल की अनुभूति तहजीब के शहर-ए-लखनऊ में भी होती है। सोमवार को भोर में भस्म आरती और शाम को श्रृंगार महाकाल मंदिर उज्जैन की तर्ज पर हाेगा है। उज्जैन के महाकाल मंदिर से आई भस्म से होने वाली भस्म आरती के दर्शन के लिए लखनऊ नहीं आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिर का 2007 में जीर्णोद्धार हुआ और उसी समय भूगर्भ जल संचयन की मुहिम के की शुरुआत भी हुई थी। कोयला, बालू, गिट्टी और मौरंग के साथ बने सोख्ते में भगवान महाकाल के अभिषेक का जल ही जाता है। जमीन के अंदर दूध युक्त पानी न जाए इसके लिए महाकाल को दूध चढ़ाने की अलग व्यवस्था है। एकत्र दूध से खीर बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। बेलपत्र और पुष्प को अलग करने के बाद ही जलाभिषेक का पानी जमीन में डाला जाता है।
संयोजक अतुत मिश्रा ने बताया कि महाकाल के जलाभिषेक का पानी ही नहीं बल्कि बारिश में मंदिर की छत का पानी भी सोख्ते के माध्यम से जमीन के अंदर भेजा जा रहा है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं आप शोर से दूर महाकाल के होने का आभास करने लगते हैं। मंदिर में महाकाल के सामने नंदी जी महाराज की स्थापना भी हाल ही में की गई। महाकाल का श्रृंगार में भगवान के सभी स्वरूप को दिखाने का प्रयास किया जाता है। कोई धार्मिक आयोजन महाकाल के श्रृंगार के बगैर अधूरा रहता है। महाकाल का हर स्वरूप श्रद्धालुओं के अंदर एक नई ऊर्जा के साथ आस्था का संचार करता है। सामाजिक सरोकारों से आम लोगों को जोड़ने के लिए मंदिर समिति की ओर से विशेष अभियान भी चलाया जाता है।
अब हर महीने के अंतिम सोमवार को होगी आरतीः वैसे तो यहां श्रावण मास के हर सोमवार को भोर में आरती होती है, लेकिन श्रद्धालुओं की मांग पर हर महीने के अंतिम सोमवार को यहां आरती होगी। अक्टूबर का अंतिम सोमवार 25 को है। भोर में चार बजे आरती होगी।
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