नई दिल्ली NOI:  देश के कई हिस्सों में कोरोना के नए स्ट्रेन ओमिक्रोन के मामले आ चुके हैं। दिल्ली में भी इसके दो मरीजों की पहचान हो चुकी है। इससे कोरोना को लेकर लोग एक बार फिर आशंकित हो गए हैं। बूस्टर डोज के लिए भी आवाज उठने लगी है। इस बीच विदेश में एक बार फिर बच्चों में कोरोना का संक्रमण बढ़ने की बात सामने आई है, जिससे यहां भी अभिभावकों की चिंता बढ़ी है और लोग बच्चों के टीकाकरण। इसके मद्देनजर ओमिक्रोन से संभावित खतरों, अस्पतालों में तैयारी, बूस्टर डोज और बच्चों में टीकाकरण की जरूरत के संदर्भ में एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डा. संजय राय से रणविजय सिंह ने बातचीत की है। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश

ओमिक्रोन का संक्रमण जनवरी-फरवरी में चरम पर पहुंचने की बात कही जा रही है, मौजूदा स्थिति को देखते हुए आप क्या मानते हैं?

-ओमिक्रोन के संदर्भ में एक बात साफ हो चुकी है कि यह बहुत संक्रामक है। 60 से अधिक देशों में फैल चुका है। ऐसा लग रहा है कि इसके अधिक संक्रामक होने के बावजूद बीमारी हल्की हो रही है। इससे ज्यादा गंभीर बीमारी व मौतें नहीं हो रही हैं। संक्रमण खांसी, सर्दी, हल्का बुखार और बदन दर्द जैसे हल्के लक्षण तक सीमित रहता तो यह पूरी मानवता के लिए अच्छा होगा। इससे गंभीर संक्रमण हुए बिना लोगों में इसके प्रति प्राकृतिक रूप से इम्युनिटी विकसित हो जाएगी। पोलियो का टीका भी जीवित वायरस को कमजोर करके बना है। उसी तरह म्युटेशन के कारण वायरस प्राकृतिक तौर पर ही कमजोर हो जाए तो अच्छा होगा। यह राहत की बात हो सकती है लेकिन कुछ समय बाद ही सही स्थिति का पता चल सकेगा।

जिन्हें पहले संक्रमण हो चुका है, उन्हें दोबारा संक्रमण होने का खतरा कितना है, क्या इस संबंध कोई अध्ययन हुआ है?

-दक्षिण अफ्रीका में एक रि-माडलिंग के आधार पर दोबारा संक्रमण होने की संभावना व्यक्ति की गई है। अभी तक कोई ऐसा डाटा नहीं है, जो इस रि-माडलिंग या दोबारा संक्रमण होने की बात को सही साबित कर सके। कोरोना को लेकर पहले भी विभिन्न संस्थानों व विशेषज्ञों ने कई तरह के आकलन किए थे। भारत में सितंबर व अक्टूबर में भी तीसरी लहर आने का दावा किया गया था, जो सही साबित नहीं हुआ। अब तक का अनुभव यही है कि जिसे एक बार संक्रमण हो गया, वह सबसे ज्यादा सुरक्षित है। खासतौर पर डेल्टा का संक्रमण झेल चुके हैं, वे सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं। यदि ओमिक्रोन से बड़े स्तर पर दोबारा संक्रमण हुआ तो इसका अर्थ होगा कि सार्स कोव-2 पूरी तरह बदलकर नए वायरस का स्वरूप ले चुका है। डेल्टा के संक्रमण से उत्पन्न रोग प्रतिरोधकता को ओमिक्रोन भेद सके ऐसी संभावना बहुत कम है। इसलिए मेरा मानना है कि दिल्ली सहित पूरे देश में ओमिक्रोन से दूसरी लहर जैसा कोई बहुत बड़ा संकट नहीं आने वाला है। मामले बढ़ सकते हैं, लेकिन बहुत गंभीर बीमारी व ज्यादा मौतें नहीं होंगी। अगले दो-तीन सप्ताह तक इंतजार करने की जरूरत है। तब तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

बूस्टर डोज की मांग होने लगी है, यह कितना जरूरी है?

-कुछ लोग आपदा में अवसर ढूंढ़ रहे हैं और बूस्टर डोज के लिए दबाव बना रहे हैं। सीरो सर्वे में 70 फीसद लोग एंटीबाडी पाजिटिव पाए गए थे। ऐसी स्थिति में बूस्टर डोज से क्या फायदा होगा, इसका कोई डाटा नहीं है। बूस्टर डोज से एंटीबाडी जरूर बढ़ जाती है, लेकिन इससे संक्रमण से बचाव हो यह जरूरी नहीं है।

कोवैक्सीन के बूस्टर डोज का ट्रायल शुरू हुआ था, उस ट्रायल में किस तरह के तथ्य सामने आए हैं?

-कोवैक्सीन के दूसरे फेज के ट्रायल में शामिल जिन लोगों को टीका लिए छह माह से अधिक हो चुका था, उन्हें बूस्टर डोज देकर उसका अध्ययन किया जा रहा है। अब तक यह बात सामने आई है कि बूस्टर डोज देने से एंटीबाडी बढ़ गई। बूस्टर डोज लगने से कोरोना के मामले, अस्पतालों में मरीजों के दाखिले और मौतें कितनी कम होंगी, अभी इसका डाटा नहीं है। शरीर में दो तरह की प्रतिरोधक क्षमता होती है, जिसमें सेलुलर इम्युनिटी व ह्यूमरल इम्युनिटी शामिल है। ह्यूमरल इम्युनिटी वायरस को याद कर लेती है। इसलिए एंटीबाडी खत्म हो जाए तब भी दोबारा संक्रमण होने पर ह्यूमरल इम्युनिटी सक्रिय होकर वायरस को निष्क्रिय कर सकती है।

हाल ही में अमेरिका से ऐसी रिपोर्ट आई है कि पहले की तुलना में बच्चे कोरोना से अधिक संक्रमित हुए हैं, ऐसे में क्या यहां पर बच्चों का टीकाकरण जल्द शुरू किया जाना चाहिए?

-दिल्ली में 80 फीसद से ज्यादा बच्चे संक्रमित होकर ठीक हो गए, किसी को पता नहीं चला। इसलिए बच्चों को कोरोना से ज्यादा परेशानी नहीं होती। बल्कि कोरोना के बाद एमआइएस-सी (मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम) के कारण बच्चों को परेशानी होती है। इसका कारण बहुत अधिक एंटीबाडी का बनना है। यहां बच्चों को अब तक टीका नहीं लगने के बावजूद परेशानी नहीं हुई।

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