डा. के. के. पांडेय  NOI:  सर्दियों के मौसम में हाथों और पैरों की अंगुलियों की त्वचा का रंग पीला या नीला हो जाए और सूजन के साथ झनझनाहट की परेशानी हो रही हो तो यह रेनाड्स के लक्षण हैं। रेनाड्स सिंड्रोम आमतौर पर 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों, खासकर महिलाओं को होता है, जो महिलाएं खानपान से जुड़े उद्योगों में काम करती हैं और जिन्हें कई घंटे ठंडे व गर्म पानी के संपर्क में रहना पड़ता है। इसके अतिरिक्त ठंड में गृहिणियां भी इस रोग की चपेट में आ जाती हैं।

रेनाड्स सिंड्रोम के लक्षण: इस रोग में हाथ व पैर की अंगुलियों की धमनियां प्रभावित होती हैं। अधिक ठंड होने पर हाथ व पैर के निचले हिस्से की धमनियां कुछ समय के लिए सिकुड़ जाती हैं, जिससे शुद्ध रक्त व आक्सीजन की सप्लाई बाधित होती है। जब अशुद्ध आक्सीजन वाला रक्त इकट्ठा हो जाता है तो अंगुलियां पीली या नीली पड़ जाती हैं।

कुछ समय बाद जब धमनियां पूर्वावस्था में आती हैं तो शुद्ध रक्त के संचार से अंगुलियों का रंग फिर सामान्य हो जाता है। रोगी में यह प्रक्रिया बार-बार होने से अंगुलियों में जलन व दर्द होता है। इसके साथ ही समस्या बढ़ जाने पर अंगुलियों में घाव भी हो सकते हैं।

क्या करें: रेनाड्स रोग से ग्रस्त व्यक्तियों को शीघ्र ही किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श करना चाहिए। डॉक्टर की निगरानी में जरूरी जांचें करवाकर अपना इलाज शुरू कराना चाहिए।

सावधानियां बरतें:

  • घर में कभी नंगे पैर न चलें
  • हर हाल में ठंडे पानी के संपर्क में न आएं
  • रेफ्रिजरेटर में अपना हाथ न डालें। खुले फ्रिज के आगे न खड़े हों
  • डिटर्र्जेंट पाउडर व कपड़े धोने वाले साबुन का हाथों से इस्तेमाल न करें
  • सर्दी के मौसम में हाथों व पैरों में गर्म ऊनी दस्ताने व जुराब का इस्तेमाल करें
  • घर में बर्तन व प्लेट धोने के वक्त या रसोईघर में सिंक में काम करते समय रबर के दस्ताने अवश्य पहनें

उपचार: रेनाड्स सिंड्रोम का प्रारंभिक उपचार दवाओं से ही होता है। जबकि कुछ मामलों में हाथों का तापमान नियंत्रित करने के लिए बायोफीड बैक तकनीक का सहारा लिया जाता है। यदि दवाइयों से यह नियंत्रित नहीं होता है तो सरवाइकल सिमपेथेक्टोमी सर्जरी की जाती है।

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