शो मैन राजकपूर का मुजफ्फरपुर से रहा है गहरा नाता, जानें किनके लिए उन्होंने मुंबई में बनवाया था कुटीर
मुम्बई में बना दिया जानकी कुटीर
साहित्यकार डा.संजय पंकज बताते हैं कि आज और कल एक फिल्म आई थी। इसमें पृथ्वीराज कपूर, राजकपूर व रंधीर कपूर हैं। एक दृश्य है उसमें पृथ्वीकपूर लेटकर जानकी वल्लभ शास्त्री की पुस्तक निराला के पत्र को रखकर पढ़ रहे हैं। उस परिवार से उस स्तर का जुडाव रहा है। कविवर शास्त्री के लिए बकायदा मुम्बई में जानकी कुटीर बनाए थे। पृथ्वीराज कपूर के आवसीय परिसर में ही यह था। गर्मी के दिन में वह वहां पर जाकर हर साल ठहरते थे। यह सिलसिला चलता रहा। वहां पर जब जाते तो रात में कवि गोष्ठी होती। राजकपूर के बुलावे पर उस समय के सारे महान कलाकार, गीतकार आकर कविता सुनते। रात भर यह सिलसिला चलते रहता था। इतना ही नहीं, राजकपूर ने तो बकायदा उनसे गीत लिखने का आग्रह भी किया था।
पशओं के लिए हर साल आता रहा पांच सौ की राशि
डा.पंकज बताते हैं कि राजकपूर इनकी कविता सुनते थे। पूरी रात महफिल जमती थी। हर माह वह पांच सौ रुपये परिवार के लिए भेजते रहे ताकि निराला निकेतन में पशुओं की देखभाल पर खर्च हो। यह परंपरा पृथ्वीराज कपूृर के समय से चला था। जब तक शास्त्री जी जिंदा रहे, तबतक यह चला। मुम्बई प्रवास के दौरान राजकपूर महाकवि शास्त्री जी से उनकी फिल्म की समीक्षा सुनते थे। राजकपूर की फिल्म के एक-एक दृश्य की समीक्षा करते थे। डा. संजय कहते हैं कि वह शास्त्री जी के साथ मेरा नाम जोकर को तीन बार देखे हैं।
थियेटर लेकर आए पृथ्वीराज
कपूर खानदान से शास्त्री जी का संबंध एक नाटक मंचन के बाद से बना और वह चलता रहा। डा.पंकज बताते हैं कि आजादी के बाद पृथ्वीराज कपूर भी यहां पर तीन बार आए हैं। वह पृथ्वी थियेटर मंचन करने के लिए आए थे। पठान नाटक का मंथन सरैयागंज टावर के पास एक सिनेमा हाल में हुआ था। आज वहां पर हाल नहीं है। लेकिन पृथ्वीराज कपूर के बहाने आज भी उस सिनेमा हाल की चर्चा आम कलाकारों की जुबान पर रहता है। राजकूपर की याद यहां के कलाकारों की थाती है।
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