कश्मीर में चिल्ले कलां शुरू करने वाला है अपनी 40 दिवसीय पारी, जानिए क्या है कश्मीर का चिल्ले कलां
श्रीनगर, NOI: सुबह का समय है। बाहर सूरज की कमजोर धूप अपने होने का अहसास कराने की नाकाम कोशिश कर रही है लेकिन बर्फली और खुनक हवाएं उसकी इस कोशिश को बार बार नाकाम बना रही है। आज भी अधिकांश स्थानों पर तापमान जमाव बिंदु से नीचे रहा।
मौसम विभाग ने पारे के जमाव बिंदु से और अधिक नीचे चले जाने तथा चंद दिनों में ताजा बर्फबारी की संभावना जताई है। आज भी रात को कड़ाके की ठंड थी। ठंडी रात गुजारने के बावजूद 46 वर्षीय फामीदा तड़के ही उठी और रसोई का काम जलदी जलदी निपटा अपने घर के के ग्राउंड फ्लोर में बने 10 फीट लम्बे व 12 फीट चौड़े कमरे का रुख उसे सेट करने में जुट गई। कमरे में गर्म नमदा बिछाने के बाद अब वह कमरे लगे रोशनदान(छोटी खिड़की जिससे कमरे के अंदर रोशनी व ताजा हवा आती दाखिल होती है) पर पर्दा टांग रही है।
रोशनदान पर पर पर्दा टांगने के बाद फामीदा ने सेट किए गए कमरे पर नजर डाली और संतुष्ट हो गई कि चलो यह जरूरी काम भी निपट गया।दो दिन बाद चिलोकलां शुरू हो रहा है और अगले 40 दिनों तक फामीदा के परिवार इसी 10 फीट लम्बे व 12 फीट चौड़े कमरे तक सीमित रहेगा। फामीदा ने कांगडियों में इस्तेमाल होने वाला कोयला पहले ही स्टोर में रख दिया था। सूखी सबिजयां, दालें व शुष्क फल भी कमरे के साथ सटे किचन की पहली केबनिट दराज में रख दिए थे जबकि बच्चों के लिए गर्म मोजे, टोपियां आदि भी रेड़ी रखी थी।
फामीदा की तरह घाटी में निचले व मध्य वर्ग की सभी ग्रहनियां भी इसी तरह चिलेकलां की तैयारी करती है ताकि उनका परिवार 40 दिनों तक रहने वाली चिलेकलां की खून जमा देने वाली ठंड का मुकाबला कर सके। निचले व मध्य वर्ग के लोग अपने घरों में एक ऐसा कमरा जरूर रखते हैं जहां वह सर्दियों विशेषकर चिलेकलां के दिन बिताते हैं। एक या दो छोटी खिड़कियों वाले इस कमरे में गर्म नमदा या कमल बिछाया जाता है।कमरे को गर्म रखने के लिए बुखारी, रूम या गैस हीटर रखा जाता है और घर के इसी कमरे में लोगों का खाना पीना और सोना जागना होता है।
सर्दियां शुरू होने से पहले ही की जाती है तैयारियां : कश्मीर घाटी एक सर्द इलाका है। यहां साल के तकरीब 7 महीनों में मौसम ठंडा ही रहता है। सर्दियों का मौसम शुरू होते ही तापमान में गिरवाट आना शुरू हो जाती है और धीरे धीरे यह जमाव बिंदु से नीचे चला जाता है जिससे समूची वादी शीत लहर की चपेट में आ जाती है। 21 दिसंबर से वादी में सर्दियों का सब से कठिन दौर 40 दिवसीय चिलेकलां शुरू हो जाता है। चिले कलां में कडा़के की ठंड पड़ती है। आसमान घने बादलों से ढका रहता है। इस दौरान अमूमन बर्फबारी होती है।तापमान जमाव बिंदु से नीचे बना रहता है जिसके चलते तमाम जलस्रोत जम जाते हैं। चिले कलां के बाद 20 दिवसीय चिले खुर्द शुरू होता है।
चिले खुर्द चिले कलां में पड़ने वाली ठंड से कम तीव्रता वाला होता है। इस दौरान भी बर्फबारी होती है लेकिन तापमान जमाव बिंदु से ऊपरा आना शुरू हो जाता है। पानी और हवा में खुनकी कम हो जाती गै।चिलेखुर्द की समाप्ति के बाद 10 दिवसीय चिलेबाइच शुरूो हो जाता है। यह चिलेकलां व चिलेखुर्द में पड़ने वाली ठंड से कम तीव्रता से कम होता है। इस दौरान जमीन जोकि तापमान के जमाव बिंदु से नीचे चले जाने के चलते ठंडी पड़ी हुई होती है,गर्म होनी शुरू हो जाती है। चिलेबाइच की समाप्ति के साथ ही वादी में 70 दिनों तक रनहे वाली कड़ाके की ठंड का न केवल दौर समाप्त हो जाता है बलकि इसके साथ ही सर्दियों का मौसम भी रुख्सत हो जाता है।
सर्दियों के मौसम में वादी में सामान्य जनजीवन प्रभावित रहता है। अधिकांश लोग कड़ाके की ठंड से बचने के लिए अपने घरों में ही दुबके रहते हैं। सर्दियों विशेषकर चिलेकलां में पड़ने वाली कड़ाके की ठंड का मुकाबला करने के लिए पहले से ही तैयारियां शुरू करते हैं। सितंबर महीना स्मापत होते ही घाटी के लोग सर्दियों के मौसम में काम आने वाले सामान जमा करने में जुट जाते हैं।
बदल जाती है दिनचर्या : सर्दियों का मौसम शुरू होते ही वादी के लोगों की दिनचर्या में परिर्वतन आ जाता है। कड़ाके की ठंड पड़ने के चलते लोग सुबह देर से अपना रोजमर्रा का काम शुरू करते हैं और शाम जलद ही काम कर अपने घरों में दुबुक जाते हैं। शादी व बाकी सामाजिक समारोहों का सीजन भी आफ रहता है। तमाम बाहरी गतिविधियां विशेषकर कृषि संबंधित गतिविधियां बंद हो जाती हैं और इस तरह संबंधित गतिविधियों से जुड़े अधिकांश लोगों को काम से लम्बा ब्रेक मिल जाता है।
कोइले, लकड़ी को किया जाता है स्टाक : कश्मीरी में एक कहावत है,बतह मीलतन या न मीलतन नार जोश गछि आसुन(सर्दियों में खाना मिले न मिले,गर्मी को बंदोबस्त होना चाहिए) कड़ाके की ठंड का मुकाबला करने के लिए पहला हथियार गर्मी पहुंचाने वाले उपकरण होते हैं। इन उपकरणों में सब से पहले कांगड़ी होती है। कांगड़ी में चारकोल या कोइला इस्तेमाल होता है। लिहाजा स्थानीय लोग चारकोल का स्टाक करना शुरू कर देते हैं। शहर में रहने वाले लोग तो कोयला बाजार से खरीद लेते हैं। लेकिन गांंव दिहात के लोग पेड़ों से झड़ने वाली झाडि़यां,पत्ते आदि जला इससे कोयला तैयार कर इसका स्टाक करके रख देते हैं और कड़ाके की ठंड में इसका इस्तेमाल कांगड़ी में कर खुद को गर्म रखते हैं।
आर्थिक तौर पर मजबूत लोग अपने घरों में हमाम की सुविधा भी रखते हैं। हमाम (एक विशेष तकनीक से जमीन के अंदर एक कमरा बनाया जाता है जिसमें पत्थर की बड़ी-बड़ी सिले बिछाई जाती है) साथ में एक चिमनी जोड़ी जाती है जिसके मकान की छत से जोड़ दिया जाता है साथ में पानी की एक बड़ी टेनकी भी रखी जाती है। इस कमरे के ऊपर एक कमरा बनाया जाता है। अंडर ग्राउंड कमरे में सर्दियों के दौरान लकिड़यां जलाई जाती हैंं।लकड़ियां सुलगती रहती है जिससे हमाम कमरा गर्म रहता है और टेनकी का पानी गर्म हो जाता है और धुआं चिमनी से खारिज हो जाता है।
बदल जाता है पहनावा : सर्दियां शुरू होते ही घाटी के लोगों का पहनावा बदल जाता है। चूंकि ठंड कड़ाके की पड़ती है लिहाजा इसका मुकाबला करने के लिए तैयारी भी उसी तरह की करनी पड़ती है। अक्तूबर महीना समाप्त होने के साथ ही हलके कपड़ों की जगह लोग गर्म ऊनी कड़पे पहनना शुरू कर देते हैं। नवंबर महीने के आरम्भ में ही अधिकांश लोग फिरन(लम्बा और ढीला ऊनी कुर्ता) पहनने नजर आते हैं और फिर यह फिरन मार्च महीने तक लोगों के साथ रहता है। फिरन जोकि स्थानीय लोगों का पारंपिरक वसत्र है,इस आकार से सिया जाता है कि लोग आराम से इसके अंदर दहकती कांगडी रख अपने आपको सख्त ठंड से बचा सकें। हालांकि लोग ठंड से बचने के लिए ट्रेंडी कोट, स्वेटर व जाकेट भी इस्तेमाल करते हैं लेकिन ठंड में फिरन और कांगड़ी अब भी अधिकांश स्थानीय लोगों की पहली पसंद है।
बदल जाता है खानपान : सर्दियों के मौसम में कड़ाके की ठंड के बीच वादी में अकसर मौसम खराब रहता है और बर्फबारी होती है। कई कई दिनों तक वादी का देश व दुनिया के अन्य हिस्सों से संपर्क भी कटा रहता है। एेसे में वादी में खाद्य सामग्री जोकि 90 प्रतिशत देश के दूसरे राज्यों से स्पलाई होता है,वादी न पहुंच पाने पर खाद्य सामग्री की किल्लत पैदा हो जाती है।इसको ध्यान में रखे स्थानीय लोग पहले खाद्य सामग्री का स्टाक करके रख देते हैं। अक्तूबर महीने में अधिकांश लोग विभन्नि प्रकार की सबजियां जिनमें साग,पालक,बैंगन,टमाटर,लोकी शलगम,आदि शामिल हैं,को सुखाकर रखते हैं और फिर सर्दियों में इनका सेवन करते हैं। हालांकि आधुनिकता के इस दौर में सर्दियों के दिनों में अब वादी में भी ताजा सबजियां व फल उपलब्ध रहते हैं लेकिन लोग इसके बावजूद भी सर्दियों में सूखी सबजियों (कश्मीरी में इसे होख सियुन कहा जाता है) का सेवन करते हैं बकौल उनके सर्दियों में सूखी सबजियों को खाने का अलग ही लुत्फ आता है।
वादी के विरष्ठ साहित्यकार व कवि जरीफ अहमद जरीफ ने कहा,सर्दियों में होख सियुन खाने की परंपरा यहां बरसों से चली आ रही है। सर्दियों में न केवल होखसियुन को खाने में लुत्फ आता है बलकि इनके सेवन करने से स्वास्थ ठीक रहता है और नजला, जुकाम व बाकी मौसमी बीमरियां होने की आशंका नही रहती। जरीफ ने कहा,कड़ाके की ठंड के चलते खाने पीने की चीजों विशेषकर फल सबजियों में फ्रास्ट पैदा होता है जिसके खाने से इंसान को नजला, जुकाम व बुखार हो सकता है। जरीफ ने कहा,40-50 वर्ष पहले चिलेकलां शुरू होने से पहले लोग 10-12 फीट गहरा एक गढ़ा जिसे कश्मीरी में खोव कहा जाता था, खोद इसमें ताजा सबजियां जिनमें मूला, शलगम, गाजर,साग,पालक आदि शामिल हैं,रख देते थे और चिलेकलां में यदि उन्हें ताजा सब्जी खाने का मन करता,तो वह उस खोव को खोल उस में मौजूद सब्जी निकाल लेदेत थे और गढ़े को फिर से ढक देते थे ताकि अगली बार वह फिर से इसमें ताजा सब्जी निकाल कर इस्तेाल कर सके। जरीफ ने कहा,खोव में सब्जी बिलकुल ताजा रहती थी।
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