शहरनामा : जालंधर में मेयर राजा व विधायक राजिंदर बेरी की दोस्ती में दरार, पढ़ें जालंधर की और भी रोचक खबरें
पार्षदों को पावर देने से नाराजगी
इसी सप्ताह पंजाब कांग्रेस कमेटी ने लंबे इंतजार के बाद जिला कांग्रेस के प्रधान व कार्यकारी प्रधानों की घोषणा की है। इससे खाली पड़े कांग्रेस भवन में रौनक लगने के आसार बढ़ गए हैं, लेकिन पंजाब कांग्रेस के इस फैसले से संगठन से जुड़े कई दिग्गज कांग्रेस नेता नाराज हो गए हैं। उनका मानना है कि विधानसभा चुनाव में टिकट से लेकर पार्टी कोई भी पद दे रही है तो उसमें पार्षदों को तरजीह दी जा रही है। क्या पार्टी नगर निगम चुनाव की तैयारी में लगी है? अगर पार्टी विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है तो संगठन से जुड़े दूसरे काबिल चेहरों को आगे क्यों नहीं आने दिया जा रहा है? इसका असर भी सीनियर कार्यकर्ताओं ने मिलकर विधानसभा चुनाव में दिखाने की तैयारी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि अगर पार्टी उनकी परवाह नहीं कर रही है तो उन्हें भी पार्टी की परवाह नहीं है।
आखिरकार परगट ने मारी बाजी
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस विधायकों में चल रही एक महीने की खींचतान में आखिरकार परगट सिंह ने बाजी मार ली है। कैंट हलके से कांग्रेस के विधायक परगट सिंह ने पावर में आने और शिक्षा मंत्री बनने के बाद से मुख्यमंत्री चन्नी का कार्यक्रम दूसरे के हलके में नहीं जाने दिया है। कांग्रेस का कार्यकर्ता सम्मेलन पहले पंजाब इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइसेंज (पिम्स) के मैदान में होना तय था। उसे बाकी के विधायकों के विरोध के चलते स्थगित कर दिया गया था। उसके बाद शुक्रवार को प्रतापपुरा में परगट ने स्थगित कार्यक्रम को करवा कर फिर बाजी मार ली। इतना ही नहीं, इस कार्यक्रम से दो दिन पहले एक धार्मिक कार्यक्रम में चन्नी को बुलाने और खुद की नजरअंदाजी से खफा परगट ने उक्त कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को शिरकत नहीं होने दिया। अब उनकी मर्जी के बिना उनके हलके में अब पत्ता नहीं हिलेगा।
शराब और कबाब के साथ राजनीति
शहर के प्रतिष्ठित जिमखाना क्लब के चुनाव में शराब व कबाब के साथ जमकर राजनीति हुई। क्लब के चुनाव कोरोना काल के चलते टल गए थे। हालात सही होने के बाद प्रशासन ने चुनाव करवाने का फैसला किया तो सदस्यों के चेहरे खिल उठे कि जैसे-जैसे मौसम ठंडा होगा वैसे-वैसे चुनावी पार्टियों में शराब व कबाब परोसने का दौर बढ़ता जाएगा। हुआ भी वही, लेकिन वही चेहरे तमाम पार्टियों में नजर आते रहे जो क्लब की राजनीति को जन्म देते हैं और फिर ग्रुप बनवाकर उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं। कुछ चेहरों को छोड़ कर बाकी ने दोनों ग्रुपों की पार्टियों का मजा लिया। अंदरखाते एक दूसरे के साथ सेटिंग भी की, लेकिन फाइनल मतदान वाली सुबह किया कि किसे वोट डालना है। इससे चुनाव में खड़े कई उम्मीदवारों का चुनावी गणित गड़बड़ा गया। परिणाम आने के बाद ही उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें किसने-किसने कोरा भरोसा दिया था।
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