भारत में आम है सड़कों पर धरना, अमेरिका में इस तरह क्यों नहीं होता प्रदर्शन, यहां जानिए कारण
भारत के अधिकतर धरने राजनीतिक
सच्चाई तो यह है कि भारत में होने वाले 99 प्रतिशत धरना-प्रदर्शन राजनीतिक होते हैं। राजनीतिक पार्टियां तय करती हैं कि धरना कब शुरू करना है, कितने दिन करना है, किसके खिलाफ करना है, कितनी हिंसा करनी है और प्रदर्शन कब खत्म करना है।
1861 के पुलिस एक्ट में नहीं हुआ सुधार
1860 में बनी भारतीय दंड संहिता और 1861 में बना पुलिस एक्ट आज भी लागू है। उसमें कोई सुधार नहीं हुआ। राजनेता जानते हैं कि कुछ भी कर लो मुकदमा दर्ज नहीं होगा। यदि मुकदमा दर्ज हो भी गया तो न तो संपत्ति जब्त होगी और न ही सजा होगी।
सख्त कानून से बनेगी बात
धार्मिक अधिकार हो या नागरिक अधिकार, मौलिक अधिकार हो या मानव अधिकार संविधान और कानून द्वारा प्रदत्त कोई भी अधिकार असीमित और अनियंत्रित नहीं होता है। हमारे कानून बहुत ही पुराने और कमजोर हैं। आम जनता भी प्रदर्शन से होने वाली परेशानी सहन करती रहती है लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं देती है इसलिए प्रदर्शनकारी जनता की खामोशी को उसकी मजबूरी और कमजोरी समझते हैं और कहीं पर भी धरना प्रदर्शन शुरू कर देते हैं।
ऐसे लगेगी रोक
इतिहास साक्षी है जिस देश का कानून कमजोर होता है वहां अराजकता बढ़ती है और इसमे कोई दो राय नहीं कि भारत के कानून कमजोर हैं। जब तक अंग्रेजी कानूनों का मकड़जाल खत्म कर कठोर और प्रभावी ‘एक देश-एक दंड संहिता’ लागू नहीं होगी, पुलिस सुधार, चुनाव और न्यायिक सुधार नहीं होगा, सरकरी संपत्ति के नुकसान की कीमत वसूलने के लिए केंद्रीय कानून नहीं बनेगा तब तक लोकतंत्र के नाम पर राजनीतिक राजनीतिक स्वार्थ के लिए धरना प्रदर्शन बंद नहीं होगा। अब इन स्वघोषित किसान नेताओं के खिलाफ सख्त आपराधिक कार्रवाई ही नहीं, बल्कि दिल्ली और एनसीआर को हुए आर्थिक नुकसान को भी इनसे वसूलना जाना चाहिए तभी ऐसे प्रदर्शनों पर रोक संभव है।
किसी भी स्थिति में राजमार्ग बंधक नहीं बनने देने चाहिए
सितंबर महीने में एक सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे किसान नेताओं को जमकर फटकार लगाई थी। साथ ही किसान नेताओं से कई सवाल भी पूछे सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि भारतीय नागरिकों को शांतिपूर्ण तरीके से धरना प्रदर्शन करने का अधिकार तो है लेकिन सड़क जाम करने, हिंसा करने या कोई अनैतिक कार्य करने का अधिकार नहीं है। बावजूद इसके दिल्ली की सीमाओं पर विरोध-प्रदर्शन के नाम पर आम जनता के साथ खिलवाड़ होता रहा। गाजीपुर, टीकरी और सिंघु बार्डर पर राष्ट्रीय राजमार्ग बंद होने के कारण दिल्ली-एनसीआर के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। उसके लिए एक जगह निश्चित हो और वहीं प्रदर्शन करने की अनुमति मिले। पुलिस और प्रशासन सख्ती के साथ इस कानून का पालन कराएं ताकि आम जनता की दिनचर्या प्रभावित न हो।
प्रदर्शन हों, लेकिन उनमें राजनीति नहीं होनी चाहिए
नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध शाहीनबाग में हुए आंदोलन को कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों द्वारा समर्थन देने की बात हो या हरियाणा में जाट आंदोलन के पीछे विपक्षी पार्टियों की भूमिका, सबको लेकर सार्वजनिक मंचों पर बहुत कुछ कहा और लिखा गया। कृषि कानूनों के विरुद्ध धरना प्रदर्शन कर रहे किसानों को पार्टी की ओर से किस-किस स्तर पर समर्थन मिला यह भी किसी से छुपा नहीं है। पहले शाहीनबाग और फिर किसान आंदोलन के कारण लगभग 50 प्रतिशत व्यापार बंद हो गया। व्यापारियों को अत्यधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। पहले कोरोना के कारण उद्योग व्यापार बंद था और बाद में आंदोलन के कारण।
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