मप्र के सरकारी स्कूलों में स्थानीय बोलियों में भी बच्चों को पढ़ाया जाएगा पाठ
स्थानीय बोली का महत्व
शिक्षण सामग्री तैयार करने में स्थानीयता को प्रमुखता दी जाएगी। प्रारंभ में, स्थानीय बोली में कहानियों और कविताओं को ऑडियो-वीडियो माध्यम में संग्रहित किया जाएगा। इसके बाद उन्हें पाठ्यक्रम में शामिल कर रेडियो व डिजीलैप के माध्यम से कक्षाओं में बच्चों को पढ़ाया जाएगा।
कोरकू बोली का प्रयोग किया गया है
शिक्षाविद डीएस राय बताते हैं कि 20 साल पहले शिक्षा गारंटी योजना के तहत कोरकू जनजाति पर ऐसा प्रयास किया गया था। बैतूल जिले में हर दो किलोमीटर पर आवासीय विद्यालय खोले गए। इनमें बच्चों को खेलकूद में शिक्षित करने का अभियान चलाया गया। उस समय कोरकू जनजाति को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए उन्हें कोरकू बोली में पढ़ाया जाता था। इसके लिए कक्षा एक से पांचवी तक कोरकू जनजाति के बच्चों के लिए स्थानीय भाषा में ऑडियो व वीडियो तैयार किए गए। इसके बेहतर परिणाम आए।
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