रोडरेज मामले में नवजोत सिंह सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में दिया जवाब, कहा- यह पुनर्विचार याचिका विचारणीय नहीं
चंडीगढ़, NOI : पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के 1988 के रोड रेज मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले में नवजोत सिंह सिद्धू ने मामले में दायर पुनर्विचार याचिका खारिज करने का अनुरोध किया है। सिद्धू ने पुनर्विचार याचिका के जवाब में कहा है कि समीक्षा याचिका विचारणीय नहीं है और यह घटना 33 साल पहले की है।
ये है मामला
रोडरेड का मामला 27 दिसंबर, 1988 का है। नवजोत सिंह सिद्धू पटियाला में कार से जाते हुए गुरनाम सिंह नाम के एक बुजुर्ग से भिड़ गए थे। गुस्से में नवजोत सिद्धू ने उन्हें मुक्का मार दिया, जिसके बाद गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी। पटियाला पुलिस ने सिद्धू और उनके दोस्त रूपिंदर सिंह के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था। निचली अदालत ने नवजोत सिंह सिद्धू को सुबूतों के अभाव में 1999 में बरी कर दिया था, लेकिन पीडि़त पक्ष पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट पहुंच गया। साल 2006 में हाई कोर्ट ने सिद्धू को तीन साल की सजा सुनाई थी। इस फैसले को सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
3 फरवरी को ये हुआ था सुनवाई में
इससे पहले इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 3 फरवरी को हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 25 फरवरी तक के लिए टाल दी थी। चुनाव के दौरान सुनवाई टलने से नवजोत सिंह सिद्धू को काफी राहत मिली थी। पीड़ित पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर फैसले पर नए सिरे से विचार करने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 सितंबर 2018 को पुनर्विचार याचिका पर सजा की मात्रा के सीमित मुद्दे पर विचार करने के लिए नवजोत सिंह सिद्धू को नोटिस जारी किया था। सिद्धू की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम ने कहा कि हमारे मुवक्किल ने ये पत्र भेजकर नया एडवोकेट आन रिकार्ड (एओआर वकील) नियुक्त करने के लिए समय मांगा है इसलिए मामले की सुनवाई चार सप्ताह तक टाल दी जाए।
एडवोकेट आन रिकार्ड वह वकील होता है जो सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने के लिए अधिकृत होता है। 3 फरवरी को सुनवाई के दौरान पीठ ने सिद्धू की ओर से दिए गए पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें तो एओआर ने कहा है कि केस अचानक लग गया, जबकि ऐसा नहीं है केस एडवांस लिस्ट में पहले से शामिल था।
प्रतिवादी (सिद्धू) को सितंबर 2018 में ही नोटिस सर्व हो चुका है। चिदंबरम ने कहा कि हो सकता है कि उनके लिए अचानक रहा हो। जस्टिस खानविल्कर ने कहा कि वह सिर्फ स्थिति साफ कर रहे हैं। रजिस्ट्री को इस तरह नहीं घेरना चाहिए। हालांकि कोर्ट चिदंबरम का अनुरोध स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए टालने को राजी हो गया, लेकिन याचिकाकर्ता (पीडि़त पक्ष) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने चार सप्ताह के लिए सुनवाई टालने का विरोध करते हुए कहा कि ये लगातार एओआर बदल रहे हैं। ऐसे ही इन्होंने एसएलपी की सुनवाई में भी देरी की थी।
लूथरा ने कहा कि सुनवाई सिर्फ दो सप्ताह के लिए टलनी चाहिए। इन दलीलों पर जस्टिस कौल ने कहा कि पुनर्विचार याचिका चेम्बर में सुनवाई में खारिज हो सकती है। कोर्ट ने याचिका पर सीमित मुद्दे पर नोटिस जारी किया है और नोटिस में जवाब मांगा गया है। लूथरा ने कहा कि भले ही नोटिस सीमित मुद्दे पर जारी हुआ हो, लेकिन नोटिस का दायरा बढ़ाने पर भी विचार हो सकता है। पीठ ने कहा कि 2018 से अभी तक आपने इस मामले में कोई पहल नहीं की अब 2 सप्ताह हो या चार सप्ताह क्या फर्क पड़ता है। तभी पीठ के एक जज ने टिप्पणी की दो सप्ताह उसके लिए महत्वपूर्ण हैं इस पर सब हंस पड़े। इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई टालते हुए मामले को 25 फरवरी को सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया था। आज मामले में सिद्धू ने अपना पक्ष रखा।
सजा के कारण छोड़ी थी संसदीय सीट
2006 में जब हाई कोर्ट ने सिद्धू को तीन साल की सजा सुनाई थी, तब वह भाजपा में थे और अमृतसर से सांसद थे। उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। उन्हें दोबारा चुनाव लड़ना पड़ा और वह फिर से जीत गए।
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