बहादुरगढ़, NOI:  जिस तरह कोरोना का वायरस सांस के जरिये एक से दूसरे व्यक्ति तक फैल जाता है, ठीक उसी तरह टीबी ग्रस्त मरीज की सांस से निकले बैक्टीरिया भी स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंच जाते हैं। शरीर में घुसकर फेफड़ों के आसपास घात लगा लेते हैं। यदि किसी की इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कमजाेर है तो उसकाे यह बैक्टीरिया अपनी जकड़ में ले लेता है, लेकिन जिसकी इम्युनिटी मजबूत है, तो फिर ये बैक्टीरिया इंतजार करता रहता है। यानी इस रोग से बचना है तो सावधानी के साथ-साथ खुद को फिट रखना भी जरूरी है। इस रोग की जांच और मुफ्त इलाज के साथ ही सरकार द्वारा पोषाहार के लिए शुल्क भी दिया जाता है, मगर फिर भी एक लाख की आबादी पर हर साल 180 नए मरीज आ रहे हैं। तीन साल पहले तक यह आंकड़ा 200 तक था। सरकार का लक्ष्य 2025 तक इसे कम करके 44 से नीचे लाना है।

बीच में इलाज छोड़ने से आती है ज्यादा दिक्कत

यूं तो टीबी (क्षयरोग) का प्रभावी इलाज स्वास्थ्य विभाग के पास है। मरीजों को मिलता भी है और ज्यादातर ठीक भी होते हैं। मगर पांच प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं जो इलाज बीच में छोड़कर इस बीमारी को गंभीर बना लेते हैं। इससे मौत उनके नजदीक आ बैठती है और इन्हीं में से पांच से छह प्रतिशत मौत का शिकार बन जाते हैं। टीबी के इलाज को लेकर एक तरफ गंभीरता बढ़ी है ताे दूसरी तरफ इससे पीड़ित मरीजों की तादाद भी ज्यादा हो रही है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार झज्जर जिले में 10 लाख की आबादी पर हर साल 1800 तक नए मरीज सामने आ रहे हैं।

छह महीने तक चलता है इलाज, पांच प्रतिशत तक मरीज बीच में छोड़ देते हैं दवा

स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी और पौष्टिक आहार न लेने से ही टीबी ज्यादा फैल रही है। इसीलिए तो सरकार की ओर से टीबी के मरीजों को इलाज के साथ-साथ 500 रुपये हर महीने पौष्टिक आहार के लिए भी दिए जा रहे हैं, ताकि ये मरीज इस बीमारी को जल्द हरा सकें। इस बीमारी के मरीजों की समय पर जांच से लेकर दवाइयों का स्टाक हर वक्त रहता है। मरीजों को दवा देने में गंभीरता दिखाई जा रही है, मगर वे ही मरीज ज्यादातर मौत का शिकार बन रहे हैं, जो इलाज बीच में छोड़ देते हैं। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक जो मरीज समय से पूरा इलाज लेते हैं, वे तो निश्चित तौर पर ठीक हो जाते हैं। जो मौत शिकार होते हैं उनमें ज्यादातर तो वही होते हैं जो पूरा इलाज नहीं लेते। एक बार इलाज बीच में छूटता है तो दोबारा शुरू करने से दवाइयां निष्प्रभावी होने लगती हैं। बार-बार ऐसा होने से तो दवा असर करना छोड़ देती है।

टीबी के लक्षण

दो सप्ताह से ज्यादा खांसी। खांसी के साथ बलगम आना। कभी-कभार खून भी आता है। भूख न लगना, लगातार वजन कम होना। शाम या रात के वक्त बुखार आना। सर्दी में भी पसीना आना। सांस उखड़ना या सांस लेते हुए सीने में दर्द होना। इनमें से कोई भी लक्षण हो सकता है। कई बार कोई लक्षण भी नहीं होता।

अधिकारी के अनुसार

टीबी रोगी के संपर्क में न आएं। यह एक इंसान से दूसरे तक फैलती है। यह रोग किसी को भी हो सकता है, लेकिन इलाज से यह ठीक हो जाता है। आम तौर पर यह फेफड़ों से ही फैलती है। टीबी का बैक्टीरिया हवा के जरिये फैलता है। खांसने, छींकने के अलावा यदि रोगी के ज्यादा नजदीक जाने पर भी इसके इंफेक्शन का खतरा होता है। दो सप्ताह से ज्यादा खांसी रहने पर बलगम की जांच अवश्य करवाएं।

--डा. कमलदीप, टीबी रोग विशेषज्ञ, झज्जर।

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