उदयपुर, NOI:  खेल ही नहीं, सोशल मीडिया से जुड़ा हर व्यक्ति न्यूयॉर्क के रहने वाले स्विमर ‘निक युजिकिक’ को जानता है। दोनों हाथ-पैर नहीं होने के बाद भी निक अपने कारनामों से दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। निक से प्रभावित मध्यप्रदेश के पैरा स्वीमर अब्दुल कादिर की पहचान भी भारतीय निक के रूप में होने लगी है। अंतर यह है कि अब्दुल कादि के पैर तो हैं लेनिक दोनों हाथ नहीं। इसके बावजूद उसने साबित कर दिया कि सफलता के शारीरिक अक्षमता मायने नहीं रखती।
पंद्रह वर्षीय अब्दुल तैराकी की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 8 गोल्ड और 3 सिल्वर मेडल जीत चुके हैं। यही नहीं, उन्हें बेस्ट स्विमर के अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। अब उनका लक्ष्य पैरा ओलंपिक में देश के लिए गोल्ड जीतना है। अब्दुल उदयपुर में पैरालिम्पिक कमेटी ऑफ इण्डिया और नारायण सेवा संस्थान की ओर से 24 मार्च से शुरू होने जा रही 21वीं राष्ट्रीय पैरा स्विमिंग चैम्पियनशिप में भाग लेने जा रहे हैं।
अब्दुल बताते हैं कि जब वह सात साल के थे तब 11 केवी लाइन के चपेट में आने से उन्हें दोनों हाथ गंवाने पड़े। वह पूरी तरह निराश हो गया था, हालांकि उसके माता-पिता ने उसको हौंसला बनाए रखा। इस दौरान वह पैरों से पढ़ना-लिखना और दैनिक आवश्यक काम करना सीखने लगा। एक दिन सोशल मीडिया पर उसने पिता ने पैरा तैराक विष्णु को देखा। जिसके बाद उन्होंने अब्दुल को पैरा स्वीमर बनाने का निर्णय लिया और और उसे अभ्यास कराने लगे। रतलाम में ही एक स्विमिंग कोच राजा ने अब्दुल की प्रतिभा देखते हुए आगे आकर उनके पिता हुसैन से संपर्क किया और अब्दुल को नि:शुल्क तैराकी प्रशिक्षण मिलने लगा। उसके बाद अब्दुल की दुनिया बदल गई। कड़ी मेहनत और संघर्ष के बूते अब्दुल 15 वर्ष उम्र में ही राष्ट्रीय पैरालम्पिक में 8 गोल्ड और 3 सिल्वर मैडल जीत चुका है। नौवीं कक्षा में पढ़ रहा अब्दुल 21 वीं राष्ट्रीय पैरालंपिक में हिस्सा लेने उदयपुर आ चुका है।
पहली बार बेलगांव में नेशनल स्पर्धा में जूनियर वर्ग में एक गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीता। इसके बाद 2017 में जयपुर और उदयपुर में हुई नेशनल स्पर्धा में भी अब्दुल ने दो गोल्ड और एक सिल्वर जीता। इसके बाद बेंगलुरु में 2021 में हुए पैरा नेशनल गेम्स में भी अलग-अलग कैटेगरी में तीन गोल्ड जीते, जिसके बाद उन्हें सर्वश्रेष्ठ तैराक का अवॉर्ड भी मिला। 2017 में बाल आयोग द्वारा आयोजित बाल संसद के अध्यक्ष के रूप में कादिर का चयन किया गया।

स्वप्रेरणा से लगा चुकी है मेडल्स की झड़ी देवांशी

अब्दुल की तरह ही फरीदाबाद की देवांशी सतीजा की कहानी भी कुछ कम नहीं। देवांशी जन्म से ही दाएं हाथ से दिव्यांग है। उसकी बड़ी बहन दिव्या तैराक है। एक बार बड़ी बहन ने स्विमिंग की स्टेट चैंपियनशिप प्रतियोगिता में भाग लिया। तब दिव्या का खेल देखने पूरा परिवार गया। बहन का मनोबल बढ़ाने के लिए छोटी बहन देवांशी स्विमिंग पूल के पास खड़ी होकर चीख-चीखकर उसका उत्साह बढ़ा रही थी कि अचानक वह पानी में गिर गई। लोग सोच रहे थे कि बच्ची पानी में डूब जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ, देवांशी पानी में तैरती हुए स्विमिंग पूल से बाहर आ गई।

फिर क्या था देवांशी का जीवन ही बदल गया और उसने अपनी बहन की भांति तैराक बनने का निर्णय लिया। बड़ी बहन दिव्या ने देवांशी की प्रतिभा को देख उसे हर रोज स्विमिंग का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। स्कूल खत्म होने के बाद देवांशी हर रोज घण्टों तक तैराकी प्रशिक्षण लेती रही। अब तक 19 वर्ष की उम्र में वह वह 50 से अधिक गोल्ड मैडल जीत चुकी है। इनमें 20 गोल्ड मैडल वह राष्ट्रीय पेरालिम्पिक में जीत चुकी है। बीकॉम में पढ़ रही देवांशी 21वीं नेशनल पैरा स्वीमिंग चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने उदयपुर आई है।

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