NOI : चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली कामयाबी से भले ही कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल है, लेकिन पार्टी के नीति-नियंताओं के लिए ये परिणाम एक चेतावनी भी हैं। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार इसको समझ रही है, इसीलिए अगले चुनाव की तैयारी में अभी से जुट गई है। परिणामों से निकले संदेश को एक तरह का सबक मानते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रियों के साथ तीन दिन पूर्व पचमढ़ी में चिंतन बैठक का आयोजन किया। दो दिन तक चली मैराथन बैठक में कैबिनेट ने राज्य में लागू तमाम कल्याणकारी योजनाओं की उन कमियों को ढूंढ़ने की कोशिश की, जो सरकार से जनता के जुड़ाव में बाधक हैं। छनकर यह तथ्य सामने आया कि 18 महीने बाद अर्थात 2023 में होने वाले विधानसभा के चुनाव में सिर्फ पुरानी योजनाओं के साथ नहीं जाया जा सकता।
अधिकतर योजनाएं ऐसी हैं जिनसे लोग वर्षो से लाभान्वित तो हो रहे हैं, पर वे इसे सरकार का कोई नया कमाल नहीं मानते। योजनाओं के क्रियान्वयन की विसंगतियां भी उन्हें सरकार के पाले में खींचने से रोकती हैं। लिहाजा तय हुआ कि पिछले तीन कार्यकाल के अंदर शिवराज सरकार द्वारा चलाई गईं कल्याणकारी योजनाओं की गहराई से समीक्षा की जाए और उनकी कमजोरियों को दूर करके उन्हें नए रूप में लाया जाए। ऐसे प्रविधान किए जाएं, ताकि जनता को लगे कि सरकार ने उसके हित में नई योजनाएं बनाई हैं। संकेत है कि आने वाले समय में सरकार कमजोर वर्गो खासकर आदिवासी एवं दलित समुदाय को भी प्रभावित करने वाली एक बड़ी योजना की शुरुआत कर सकती है।

दरअसल राज्य में जिन कल्याणकारी योजनाओं का अब तक ढिंढोरा पीटा जा रहा है, उनमें से अधिकतर शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल में संचालित की गई थीं। इसीलिए चिंतन बैठक में कैबिनेट ने माना कि पिछले 15 साल के कार्यकाल में चलाई गईं योजनाओं के सहारे बैठना उचित नहीं होगा। वह भी तब जब 2018 में भाजपा इन्हीं योजनाओं के सहारे चुनाव मैदान में उतरी थी, पर हार का सामना करना पड़ा था। कैबिनेट ने तय किया कि इन योजनाओं को संशोधन के साथ नए रूप में पेश किया जाना चाहिए, जिससे जनता नवीनता महसूस करे। मतलब साफ है कि मंत्रिमंडल को मौजूदा स्वरूप में कई कल्याणकारी योजनाओं के दम पर करिश्मा होने पर संदेह है।

हाल में पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद मध्य प्रदेश के मंत्रियों की इस चिंतन बैठक को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इनमें से चार राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर एवं गोवा में भाजपा अपनी सरकार बरकरार रखने में कामयाब रही। भले ही भाजपा इन राज्यों में दोबारा सत्ता में आ गई, लेकिन दो राज्यों में उसकी सीटें कम हुई हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 50 सीटें कम होना चिंता का सबब है। खासकर भाजपा शासित उन राज्यों में अधिक चिंता है जहां साल-दो साल में चुनाव होने हैं। मध्य प्रदेश भी उन्हीं राज्यों में है। वहां अक्टूबर 2023 में विधानसभा के चुनाव होंगे। जाहिर है शिवराज सरकार के पास अब चुनाव की तैयारी को मुकम्मल स्वरूप देने की चुनौती है। यही कारण है कि वे एक ऐसी योजना बनाने में जुटे हैं, जो गरीबों खासकर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों को प्रभावित करने में सक्षम हो।

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 230 सीटों में से सत्तारूढ़ भाजपा को सिर्फ 109 सीटें ही मिली थीं। जबकि कांग्रेस के हिस्से में 114 सीटें आई थीं। कर्जमाफी के बड़े वादे के साथ उतरी कांग्रेस ने आदिवासी बहुल इलाकों में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। 82 आरक्षित सीटों में से सर्वाधिक सीटें उसी के खाते में गई थीं। सीटें अधिक होने के कारण छोटे दलों एवं निर्दलियों के सहयोग से कांग्रेस ने लगभग 15 साल बाद राज्य में सरकार बना ली, लेकिन अंदरूनी लड़ाई के कारण लगभग 15 माह में ही सत्ता गंवा दी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों की बगावत ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया तो शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनवा दी। भले ही भाजपा सत्ता में लौट आई, लेकिन यह उसकी स्वाभाविक सत्ता नहीं है। भाजपा नेतृत्व एवं खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस सच्चाई को समझते हैं।

खासकर महिलाओं एवं गरीबों-दलितों के वोट बड़ी संख्या में भाजपा को मिले। चिंतन बैठक में ऐसी योजनाएं लाने पर विशेष रूप से जोर दिया गया, जो कमजोर वर्गो का अत्मबल बढ़ाएं तथा उन्हें महसूस हो कि भाजपा सरकार ने उनका जीवन निष्कंटक बना दिया है। संभव है कि निकट भविष्य में मध्य प्रदेश सरकार ऐसी कोई योजना लेकर आए, जो राज्य के बड़े जनसमुदाय को जोड़ने की क्षमता रखती हो।

0 Comments

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Get Newsletter

Advertisement