गोरखपुर, NOI : राजस्थान में एक महिला रोगी की प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव के कारण मृत्यु के मामले में डाक्टर पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया, इससे तनाव में आकर उन्होंने आत्महत्या कर ली। इस घटना ने गोरखपुर शहर के डाक्टरों को झकझोर दिया है। वे आक्रोशित हैं। उनका कहना है कि डाक्टर रोगी की जान बचाता है, मारता नहीं। इसी सिद्धांत के साथ वह पढ़ाई करता है। डाक्टर पर हत्या का मुकदमा दर्ज ही नहीं होना चाहिए। बिना मेडिकल बोर्ड गठित किये ही डाक्टर पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इससे तनाव में आकर डाक्टर को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा। उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार यदि डाक्टर पर लापरवाही का आरोप लगता है तो मेडिकल बोर्ड गठित कर जांच कराने के बाद ही मुकदमा दर्ज हो सकता है। इस मामले में इसका पालन नहीं किया गया।

आइएमए के अधिकारी बोले

  • आइएमए अध्यक्ष डा. शिव शंकर शाही ने बताया कि डाक्टर अपने भगवान रूपी रोगी की सेवा एक पुजारी की तरह करता है। लेकिन शत-प्रतिशत सफलता नहीं मिलती है। कुछ असफलताओं के कारण अगर उसे ऐसी सजा मिलेगी तो डाक्टर खुले मन से समाज की सेवा नहीं कर सकता। चिकित्सकों को सम्मान मिले या न मिले लेकिन सुरक्षा जरूर मिलनी चाहिए।
  • आइएमए के सचिव डा. वीएन अग्रवाल ने बताया कि राजस्थान में हुई घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह किसी रोगी के साथ हो सकता है। इसमें डाक्टर की कोई लापरवाही नहीं होती। ऐसे में हत्या का मुकदमा दर्ज होने से डा. अर्चना मानसिक दबाव में आ गईं और उन्होंने आत्महत्या कर ली। सरकार को इस घटना की जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

विशेषज्ञ बोलीं

  • स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. रीना श्रीवास्तव ने बताया कि किस महिला में प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव होगा, यह पहले से पता नहीं किया जा सकता। यह किसी रोगी के साथ हो सकता है। डाक्टर ने दो-तीन घंटे मेहनत कर रोगी की जान बचाने की कोशिश की, लेकिन बचा नहीं पाई। उन्होंने अपना पूरा दायित्व निभाया। ऐसे में डाक्टर को दोषी बनाना ही गलत है।
  • स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. रीमा गोयल ने बताया कि डाक्टर पर मुकदमा दर्ज करना बिल्कुल गलत है। प्रसव के दौरान किसी रोगी को अत्यधिक रक्तस्राव सामान्य जटिलता है। यह समस्या हर प्रसव में संभव है। ऐसे में डाक्टर पर केस बनता ही नहीं है। जनता के दबाव में डाक्टर पर मुकदमा दर्ज किया जाना न्यायसंगत नहीं है। ऐसे में तो डाक्टरों का मनोबल टूटेगा।

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