NOI :  मरीज और डाक्टरों के बीच होने वाले विवाद की सबसे बड़ी वजह सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालत है। अस्पतालों में अत्याधुनिक सुविधाओं का भारी अभाव है। चिकित्सक और नर्सिग स्टाफ की संख्या भी पर्याप्त नहीं होती है। अक्सर यही कमी टकराव का कारण बन जाती है। दूसरी ओर, निजी अस्पतालों में ऐसी स्थितियां इसलिए बनती हैं, क्योंकि बहुत से अस्पताल बस पैसा कमाने की मंशा रखते हैं। कई बार छोटी सी बीमारी के लिए भी बड़ी-बड़ी जांच करवाई जाती है। ऐसे मामलों ने मरीज और डाक्टर के बीच अविश्वास की खाई को गहरा किया है। कुछ निजी अस्पतालों में सक्षम चिकित्सकों की कमी भी देखी गई है। 
इस स्थिति के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता है कि मरीज की मौत के हर मामले में चिकित्सक या अस्पताल की कमी है। इस मामले में लकीर बहुत महीन है। किसी एक मरीज को लेकर चिकित्सकों की राय अलग-अलग हो सकती है। कई बार मरीज की स्थिति गंभीर होने पर डाक्टर अन्य तरीके अपनाते हुए उसे बचाने की कोशिश करता है। ऐसे मामले में यदि मरीज की मृत्यु हो जाए तो डाक्टर पर आरोप नहीं लगाया जा सकता है। ऐसे एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जैकब मैथ्यूज बनाम पंजाब सरकार के एक मामले में वर्ष 2005 में एक निर्णय देकर चिकित्सकों को राहत दी थी।
शीर्ष अदातल ने कहा कि चिकित्सक की लापरवाही से मरीज की मौत होने पर मुकदमा दर्ज हो सकता है, मुआवजा दिया जा सकता है। यहां तक कि आपराधिक मुकदमा भी हो सकता है। लेकिन, इसके तहत कार्रवाई करने से पहले यह जानना जरूरी होगा कि लापरवाही हुई भी है या नहीं। इसे पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित किया जाएगा और उसकी रिपेार्ट के आधार पर चिकित्सक के खिलाफ आगे की कार्रवाई की जाएगी। रिपोर्ट आने से पहले तक चिकित्सक को गिरफ्तार भी नहीं किया जा सकता है। देखा यह भी गया है कि मरीज की मौत के बाद गुस्से में अकारण भी हंगामा होता है। अकारण तोड़फोड़ करने वाले तीमारदारों के मामले में भी सख्ती की जरूरत है, ताकि निष्ठा से काम कर रहे डाक्टर अनावश्यक दबाव में न आएं। यह इस पेशे की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी जरूरी है। हर इलाज के समय यदि उन्हें डर का सामना करना पड़ेगा, तो निसंदेह वह पूरी तरह फोकस्ड नहीं रह पाएंगे।
प्रश्न यह भी है कि आखिर इस समस्या का निदान क्या है? उत्तर स्पष्ट है, जब तक सरकारी व निजी अस्पतालों की व्यवस्था नहीं सुधरती है तब तक इलाज में गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं हो पाएगी। मरीज और डाक्टर के बीच भरोसा बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सरकारी व निजी अस्पतालों की व्यवस्था को बेहतर किया जाए।

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