NOI :  जन्म से लाइलाज बीमारी से ग्रस्त। चलने-फिरने में असक्षम, शराबी पिता जिसने छोड़ दिया। मां ने जैसे-तैसे पढ़ाया। दिव्या की बीमारी को देखते हुए डाक्टरों ने जवाब दे दिया, कहा कि ज्यादा से ज्यादा 25 वर्ष तक ही जिंदा रहेगी। लेकिन, जज्बा ऐसा कि हर बाधा को बेटी पार करती जा रही है। 24 की उम्र में एमबीए डिग्री हासिल कर ली है। मां को बार-बार गर्व की अनुभूति दिव्यांग बेटी करा रही है। हम बात कर रहे हैं दिल्ली के पीतमपुरा की रहने वाली दिव्या सचदेवा की। भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) रोहतक से दिव्या ने एमबीए की पढ़ाई पूरी की है। शनिवार को संस्थान के 11वें दीक्षांत समारोह में दिव्या को मुख्यमंत्री मनोहर लाल और निदेशक प्रो. धीरज शर्मा ने स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की डिग्री प्रदान की।
व्हीलचेयर के सहारे जैसे ही बेटी मंच पर डिग्री लेने के लिए पहुंची, अभिभावक दीर्घा में बैठी मां अरुणा सचदेवा की आंखें गर्व और खुशी से नम हो गई। सहपाठियों और शिक्षकों ने भी तालियों के साथ दिव्या का अभिनंदन किया। दिव्या, न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (दिव्या के अनुसार एक जन्म से ऐसा शारीरिक विकार जिसमें शरीर की सारी तंत्रिकाएं मेरुदंड से इस तरह मिल गई हैं कि शरीर के नीचे का हिस्सा काम नहीं करता है।) बीमारी से पीड़ित हैं। हर वक्त यूरिन बैग लगाकर रखना पड़ता है। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। आइआइएम की पढ़ाई के लिए मां ने 16 लाख रुपये का लोन लिया है।

अमेजन में बतौर कैटलाग स्पेशलिस्ट हुआ चयन

हालांकि, आइआइएम के कैंपस प्लेसमेंट में ई-कामर्स कंपनी अमेजन के बैंगलोर आफिस में बतौर कैटलाग स्पेशलिस्ट उनका चयन हो चुका है। फिलहाल, वर्क फ्राम होम कर रही हैं। दिव्या बताती हैं कि मां ने शादीशुदा होते हुए भी सिंगल मदर के रूप में उसे व बड़ी बहन को लालन-पोषण किया है। पिता शराब के आदि थे, जब वह चार वर्ष की थी तब से माता-पिता अलग रह रहे हैं। लेकिन, मां हर कदम पर उनका सहारा बनी हैं। अब मां का सारा कर्ज उतार दूंगी।

बेटी से अलगाव का सोचकर मां हो जाती है भावुक

दोनों किडनी खराब होने की वजह से दिव्या को स्कूल में दाखिला दिलाने तक में मां को मुश्किलों का समाना करना पड़ा। कोई भी स्कूल एक गंभीर बीमारी से पीड़ित छात्रा को दाखिला देकर रिस्क नहीं उठाना चाहता था। छठी क्लास के बाद से घर पर ही पढ़ाई करती आ रही हैं। दिव्या की मां बताती हैं कि जैसे-जैसे बेटी बड़ी हुई तो उसे अपनी परिस्थितियां समझ आने लगी। दूसरे लोगों के सामने झिझक होने लगी थी। ऐसे में स्वयं ही स्कूल जाने से मना कर दिया। घर पर मां के अलावा किताबों में सहारा मिला। किताबों से ऐसी दोस्ती कि स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा होते हुए दिव्या ने एक पीएचडी छात्र की थिसिस तक लिखने में मदद की। बेटी से अलगाव का सोचकर भी मां अरुणा भावुक हो जाती हैं। बैंगलोर में जैसे ही अाफिस वर्क शुरू होता तो दिव्या को जाना होगा। ऐसे में वह कहती हैं कि उन्हें दिव्या की आदत है। उनके जीवन का उद्देश्य है।

डीयू से अंग्रेजी आनर्स में की स्नातक

12वीं की परीक्षा पास करने के बाद वर्ष 2017 में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के स्कूल आफ ओपन लर्निंग में बीए अंग्रेजी आनर्स में दिव्या ने दाखिला लिया। साहित्य में रूचि होने की वजह से यह विषय चुना। भाषा पर अच्छी पकड़ के चलते वह फ्रीलांस कंटेंट राइटिंग भी करने लगी थी। कंटेंट राइटिंग से होने वाली अर्निंग से वह घर खर्च में मां का हाथ बंटाने लगी थी। इसी बीच उन्हें आइआइएम और एमबीए पर एक लेख का कार्य मिला। इसके लिए कंटेंट राइटिंग करते हुए उनकी रूचि आइआइएम से एमबीए करने की हुई। एक वर्ष कामन एडमिशन टेस्ट (कैट) की। कैट परीक्षा में अच्छा स्कोर अया। आइआइएम रोहतक में दाखिला मिल गया। बिजनेस कम्युनिकेशन में पीएचडी करना चाहती हैं। आइआइएम इंदौर के पीएचडी प्रोग्राम का इंटरव्यू दिया है, उसका परिणाम आना बाकी है।

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