अलीगढ़, NOI :  विश्व को भारत की देन है भारतीय वैदिक ज्ञान। भारतीय परंपरा से प्राप्त ज्ञान पूर्ण वैज्ञानिक है। पूरे विश्व के विकास के लिए जो केंद्र में होना चाहिए वो है ज्ञान। इस ज्ञान को भारतीय ऋषियों ने अपने आचरण में आत्‍मसात कर जिया है। इस भारतीय ज्ञान की धरोहर के आधार पर ही हम विश्व के आकर्षण का केंद्र बने। हजारों साल पहले ही हमारे वेदों में वैज्ञानिक तथ्य तथा विज्ञान के सूत्र दिए जा चुके हैं। उसके मूल स्वभाव को जानना ही मौजूदा दौर में चुनौती है। ये विचार एसवी डिग्री कालेज में “भारतीय सनातन ज्ञान के समक्ष चुनौतियां एवं संभावनाएं’’ विषय पर अतिथि व्याख्यान कार्यक्रम के दौरान मुख्य वक्ता प्रो. विजय कुमार कर्ण ने व्यक्त किए। प्रो. कर्ण संस्कृत विभाग नालंदा बिहार में विभागाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं।

भारतीय ज्ञान की धरोहर के आधार पर हम विश्‍व के आकर्षण का केंद्र

महाविद्यालय की छात्राओं डिंपल रानी तथा प्रिया भारद्वाज ने सरस्वती गायन तथा स्वागत गीत पेश किया। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. अरुण कुमार गुप्ता ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि संपूर्ण विश्व के विकास के लिए जो वस्तु केंद्र में होनी चाहिए वह है ज्ञान। इस ज्ञान को भारतीय ऋषियों ने स्वयं अपने आचरण में डालकर जिया तथा अपने आगामी संतति को धरोहर के रूप में दिया। इस भारतीय ज्ञान की धरोहर के आधार पर भी हम विश्व के आकर्षण का केंद्र बने। प्रो. कर्ण ने कहा कि दुनिया के लोग हमारे नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने आते थे। वे भारत से त्याग, सत्य, अहिंसा के मार्ग से श्रेष्ठ बनने का गुर सीखकर जाते थे। इस परंपरा को समझना तथा उस पर गौरव रखना कि आज की आवश्यकता है।

हमारी परंपरा प्राचीन 

विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित पर्यावरण संयोजक ब्रज प्रांत रणवीर ने कहा कि सनातन ज्ञान सार्वदैशिक, सार्वकालिक, सार्वभौमिक, सर्वव्यापक है। यह ऋग्वेद में है। हमारी परम्परा भी प्राचीन है। भारतीय ऋषियों ने अपनी मानसिक अनुभूति, स्मृति, शिष्य परम्परा और लेखन से इसको आगे बढ़ाया है। इसको समझने में चुनौती हम ही हैं। अपने इस सनातन ज्ञान को समझने के लिए हमें अपने आप को तैयार करना होगा। नई पीढ़ी हमारी संभावनाएं हैं भारतीय ज्ञान के मूल तत्व को पुनः बार बार उचित शब्दों में समझने की आवश्यकता है। अतिथि के रूप में उपस्थित रहे डा. डीएन त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय सनातन ज्ञान को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का आयोजन वार्ष्णेय महाविद्यालय के संस्कृत विभाग तथा सांस्कृतिक समिति के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। संचालन डा. अजीत कुमार जैन व डा. तनु वार्ष्णेय ने किया।

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