केंद्रीय मंत्री प्रो. बघेल बोले- वैज्ञानिक साक्ष्यों के बावजूद गवाह मुकरा तो होगी जेल, जल्द होगा आईपीसी और सीआरपीसी में बदलाव
तकनीक के हिसाब से बनें कानून
प्रो.बघेल यहां भारत सरकार की आकांक्षी जिला (एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट) योजना की समीक्षा के लिए पहुंचे थे। पावरग्रिड कारपोरेशन आफ इंडिया के गेस्ट हाउस में दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत उन्होंने कहा कि इंडियन एविडेंस एक्ट 1957 का बना है, उस समय फिंगर प्रिंट, डीएनए टेस्ट, नार्को टेस्ट, लाइ डिटेक्टर जैसी वैज्ञानिक सुविधा नहीं थी। अब जबकि तमाम वैज्ञानिक ढंग से साक्ष्य जुटाने की तकनीक आ चुकी है, तब एक्ट में भी उसी हिसाब से बदलाव जरूरी है। बहुत से मामले कानूनी खामियों के चलते भी लंबित पड़े रहते थे। ऐसे में विधिक प्रविधानों में व्यापक बदलाव की जरूरत है। इस बदलाव के लिए देश भर से सुझाव आमंत्रित किए जाएंगे। पुराने व अनावश्यक प्रविधानों को खत्म किया जाएगा। न्यायिक प्रक्रिया को सरल व तेज किया जाएगा।
ई कोर्ट से आएगी कामकाज में तेजी
प्रो.बघेल ने बताया कि देश भर की अदालतों में लंबित मामलों को खत्म करने के लिए ई-कोर्ट पर सरकार सबसे ज्यादा राशि खर्च कर रही है। इसके लिए राज्यों से प्रस्ताव मांगे जा रहे हैं। ई-कोर्ट शुरू होने पर किसी भी मामले में एफआईआर लिखने वाला मुंशी, जांच अधिकारी, मेडिकल करने वाला चिकित्सक जहां भी होगा वह ई-कोर्ट के माध्यम से वहीं से अपनी गवाही दे सकता है। अभी तक कई-कई समन करने के बाद भी पुलिस व मेडिकल के गवाह न पहुंचने से केस लंबे समय तक लटके रहते हैं।
न्यायिक अधिकारियों की नियुक्तियां भी काफी संख्या में की गई हैं, मीडिएशन व आर्बिटेशन बिल भी जल्द लाने की तैयारी है। पहले पंचायतों में बहुत से छोटे-छोटे मामले पंचायतों में ही निपटा लिए जाते थे। उन्हें कैसे मान्यता दी जा सकती है, इस पर विचार चल रहा है ताकि छोटे-छोटे मामले में अदालत में पहुंचने से पहले ही निपट जाएं। अदालतों पर बोझ न पड़े।
पौधरोपण कर दे गए बड़ा संदेश
पावरग्रिड के गेस्ट हाउस परिसर में प्रो.बघेल ने कुछ पौधे भी रोपित किए। पौधे रोपते-रोपते वे बड़ा संदेश भी दे गए। उन्होंने कहा कि पंजाब में सफेदा (यूकेलिप्टस) की खेती का बड़ा प्रचलन है,जबकि आस्ट्रेलिया में ये खेती दलदल को खत्म करने के लिए शुरू हुई थी। यूकेलिप्टस की खेती जलस्तर के लिए बड़ा खतरा बन गई है। यूकेलिप्टस की खेती वाले कई इलाके डेंजर जोन घोषित हो चुके हैं। पंजाब में तो ये पेड़ लगने ही नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि वही पौधे लगाएं जो न सिर्फ जलस्तर बल्कि जमीन की सेहत के लिए भी लाभदायक हों।
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