आगरा, NOI : करीब पांच सौ साल पहले जब चैतन्य महाप्रभु ब्रज की यात्रा पर आए तो उन्हें वृंदावन की भूमि पर भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थलियों का भान हुआ। इसके बाद चैतन्य महाप्रभु तो वापस पश्चिम बंगाल लौट गए। लेकिन, उन्होंने अपने अनुयायियों को भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थलियों की खोज करने के लिए भेजा। चूंकि उस समय वृंदावन पूरी तरह घने वन का रूप ले चुका था। लीलास्थलियां पूरी तरह विलुप्त प्राय: हो चुकी थीं। ऐसे में चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों ने वृंदावन में वास करते हुए प्रभु साधना शुरू कर दी और यहां भगवान की लीलास्थलियों का पुन: प्रकाश करते हुए सप्तदेवालयों की स्थापना की। इनमें सबसे पहला मंदिर है मदनमोहन मंदिर। लाल पत्थरों से दिव्य इमारत के रूप में स्थापित मदनमोहन मंदिर का निर्माण मुल्तान के एक बड़े व्यापारी ने सनातन गोस्वामी के आदेश पर करवाया था। जो आज भी अपनी दिव्यता के जरिए लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहा है।

सप्तदेवालयों में प्रमुख ठा. मदनमोहन मंदिर वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है। उल्लेख है, इसका निर्माण संवत 1647 में हुआ था। मंदिर के बारे में जो प्रचलित है उसके अनुसार यमुना के किनारे चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी सनातन गोस्वामी द्वादश आदित्य टीला पर साधना करते थे। भजन करने के उपरांत वह जीवनयापन क लिए भिक्षा मांगने जाया करते थे। कुछ दिन बाद सनातन गोस्वामी मथुरा में ओंकार चौबे के घर से भिक्षा मांग रहे थे, तो वहां सनातन गोस्वामी ने देखा कि चौबेजी के घर में एक पांच वर्ष का बालक खेल रहा था।सनातन गोस्वामी ने ओंकार चौबे की धर्म पत्नी से पूछा माता यह बालक आपका है, माता ने कहा बाबा मेरा तो नहीं है, ये मुझे कुछ दिन पहले यमुना किनारे खेलता मिला और इसे अपने घर ले आई। मैंने बालक से कहा यदि तू परेशान करेगा तो मैं तुझे साधु महात्मा को दे दुंगी और अब में ही इसका पालन करती हूं। इसका नाम मदन मोहन है। यहां से सनातन गोस्वामी कुछ दिन बाद बालक को अपने साथ ले आए। लेकिन, सनातन गोस्वामी जब साधना कर अपने हाथ से बनी बिना नमक की बाटी का भोग ठाकुरजी को अर्पित कर खाते तो वही बालक को दे देते। बालक को बिना नमक बाटी पसंद नहीं आई। इसी दौरान मुल्तान का एक व्यापारी रामदास कपूर यमुना में नौका से आगरा अपना माल पहुंचाने जा रहा था और उसकी नौका खराब हो गई। वह व्यापारी सनातन गोस्वामी के पास पहुंचा। जब सनातन गोस्वामी को पता चला कि नौका में व्यापारी नमक लेकर जा रहा है, तो वे सब समझ गए और उन्होंने वपारी से बालक मदनमोहन के सामने अपनी समस्या रखने को कहा। लेकिन, इसी दौरान जब व्यापारी ने सनातन गोस्वामी और बालक मदनमोहन के दर्शन किए और उनके लिए भोगराग सेवा और मंदिर निर्माण का संकल्प लिया तो देखा कि नौका भी ठीक हो गई। तभी से यमुना किनारे दिव्य और भव्य मदनमोहन मंदिर में ठा. मदनमोहनजी की सेवा पूजा सनातन गोस्वामी द्वारा तय की गई पूजा-पद्धति के अनुसार हो रही है। वर्तमान में मंदिर का संरक्षण पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है और सेवा पूजा का जिम्मेदारी मंदिर सेवायतों ने सभाल रखी है। 

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