पंडित लख्मीचंद जयंती विशेष : सिर्फ नाम जानना काफी नहीं, पढ़ें सूर्यकवि के अनसुने किस्से
NOI :- सूर्यकवि पंडित लख्मी चंद कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। सदियों में कभी इस तरह की विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति का धरती पर जन्म होता है। उत्तर भारत, जिसमें हरियाणा, उत्तरप्रदेश व राजस्थान में दादा लख्मी के सांग आज भी लोग सुन रहे हैं। जिनमें मीरा बाई, सत्यवान-सावित्री, चीर पर्व, विराट पर्व, चाप सिंह, राजा नल, शाही लकड़हारा, भक्त पूर्णमल, पद्मावत, राजा हरीशचंद्र, सेठ ताराचंद, नौटंकी, जानी चोर, चंदकिरण और हीर-रांझा सांग काफी प्रसिद्ध हैं।
पंडित लख्मीचंद ने ऐसी रचनाएं की, जो आज के युग में सार्थक हो रही हैं। अनपढ़ होते हुए उन्हें चारों वेदों का ज्ञान था। उन्हें हरियाणा का शेक्सपियर भी कहा जाता है। एमडीयू में सूर्यकवि पंडित लख्मीचंद के नाम पर शोध-पीठ है जबकि स्टेट यूनिवर्सिटी परफार्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स का नाम पंडित लख्मी चंद के नाम पर रखा गया है। कौन थे पंडित लख्मीचंद पंडित लख्मीचंद का जन्म 15 जुलाई 1903 में सोनीपत जिले के गांव जाटी कलां में साधारण किसान पंडित उदमीराम के घर हुआ। मां शिबिया देवी थी। एक साधारण किसान परिवार से होने की बजाय लख्मी चंद को स्कूल न भेजकर गाय चराने का काम सौंपा गया। मात्र सात-आठ वर्ष की उम्र में ही पशु को चराते-चराते गुनगुनाते रहते थे, यहीं से गायकी का शौक हुआ। उनकी आवाज और भजन सुनकर बासौदी गांव के पंडित मान सिंह हुए प्रसन्न हुए। जाटी कलां में मान सिंह सांग करने आए थे, उनसे प्रभावित होकर बालक लख्मीचंद ने पंडित मान सिंह को अपना गुरु मान लिया। मानसिंह जन्म से नेत्रहीन थे। मात्र 18 वर्ष की उम्र में पंडित लख्मी चंद ने अपना अलग बेड़ा बना लिया और सांग परंपरा को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। वैसे तो उनके अनेकों सांग हैं, लेकिन 22 सांग ऐसे हैं, जो आज भी कलाकार लोगों के बीच सुना रहे हैं। उनके किस्से दिए जाते हैं। खास बात यह है कि दादा लख्मी ने हरियाणवी बोली में ही सांगों की प्रस्तुति दी। 17 अक्टूबर 1945 में पंडित लख्मी चंद ईश्वर चरणों में लीन हो गए।
अशिक्षित व्यक्ति के 22 सांग पंडित टीकाराम शास्त्री ने लिखे थे पंडित लख्मीचंद के पौत्र सांगी विष्णुदत्त बताते हैं कि एक अशिक्षित व्यक्ति में ज्ञान का भंडार था। वो लिख तो नहीं सकते थे, लेकिन गायकी और बोलकर अपनी 22 सांगों को काशी के शास्त्री टीकाराम से लिखवाए थे। पंडित लख्मीचंद सांग में रोगनी बोलते थे और पंडित टीकाराम शास्त्री लिखते थे। यह भी कहा जाता है कि उनके लिखे गए आठ सांग उत्तरप्रदेश में चोरी हो गए थे। पंडित लख्मीचंद के पुत्र पंडित तुलेराम ने उनकी सांग परंपरा को आगे बढ़ाया और वर्तमान में उनके पौत्र विष्णुदत्त कौशिक सांग परंपरा को लोगों के बीच ले जाने का काम कर रहे हैं ।
री मत रौवे दुखिया इब लाल कड़े तै आवै पंडित लख्मीचंद्र के सांग राजा हरीशचंद्र से ली गई पक्तियों का सार है। दादा ने अपनी रागनी के माध्यम से बताया कि जब राजा हरीशचंद्र का लड़का रोहताश बाग में फूल तोड़ने जाता है तो सर्प के काट लेने से उसकी मृत्यु हो जाती है। पंडित जी ने यहां पर माली को माध्यम बनाकर इस शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर बताया था। इस सांग को सुनकर लोगों की आंखों में आंसू तक निकल जाते हैं। इसी तरह सत्यवान-सावित्री, सेठ ताराचंद, चंद किरण, हीर-रांझा जैसे सांग है, जो लोगों को रातभर बांधे रखते थे। आज भी इनसांगों में कहीं बातों का इस्तेमाल हो रहा है।
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