आगरा, NOI :- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की जांच में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के फेल होने और उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की जांच में यमुना में सीवेज अधिक मिलने से वबाग का काम सवालों के घेरे में है। उसे 43 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष सीवेज की सफाई व एसटीपी के संचालन व देखरेख को दिए जा रहे हैं। कंपनी को शहर में व्यवस्था सुधार के लिए दिसंबर, 2019 में यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
शहर में सीवर व्यवस्था और एसटीपी के संचालन को बेहतर बनाने के लिए बीटेक वबाग को दिसंबर, 2019 में जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कंपनी से 10 वर्षों के लिए अनुबंध किया गया था। वबाग ने जनवरी, 2020 से काम शुरू किया था। उसे प्रतिवर्ष 43 करोड़ रुपये का भुगतान सीवर व्यवस्था और एसटीपी की देखरेख व संचालन के लिए किया जा रहा है। वबाग को शहर में काम करते हुए ढाई वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन व्यवस्था में सुधार नहीं हो सका है। अप्रैल में सीपीसीबी द्वारा शहर में संचालित सात एसटीपी के आउटलेट पर लिए गए सैंपलों में से पांच के सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतरे थे। उनसे अधिक अच्छी स्थिति ककरैठा में यमुना आर्द्र विकास योजना में बनाए गए चेकडैम की थी। वह मानकों पर खरा उतरा था। वहीं, जून में यूपीपीसीबी द्वारा लिए गए सैंपलों में यमुना में टोटल कालिफार्म की मात्रा मानक से कई गुना अधिक मिली थी। यमुना की दुर्दशा के लिए उसमें सीधे गिर रहे नाले प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। कैलाश घाट से ताजमहल तक यमुना में गिर रहे 91 नालों में से मात्र 28 ही टैप हैं। अन्य नालों पर इस्तेमाल की जा रही बायो-रेमेडिएशन तकनीक प्रभावी नजर नहीं आ रही है।
पर्यावरण एक्टीविस्ट डा. शरद गुप्ता का कहना है कि यमुना में पूरे शहर का कचरा पहुंच रहा है। लोग नालों में कूड़ा फेंक रहे हैं। इंडस्ट्रियल वेस्ट बहा रहे हैं। यह सीधे यमुना में पहुंच रहा है। एसटीपी सही से संचालित नहीं किए जा रहे हैं। इससे यमुना अत्यधिक प्रदूषित हो रही है।

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