NOI :-  हिंदुत्व दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है जो अभी तक अस्तित्व में है। मजेदार यह है कि सबसे पुरानी सभ्यता होने के साथ ही यह लचीला और हमेशा समृद्ध रहने वाली सभ्यता भी है। क्या आपको कभी आश्चर्य नहीं हुआ कि क्यों यह सभ्यता बची हुई है और अब भी विकसित हो रही है। इसका जवाब इसके सभ्यतागत मूल्यों में है। हिंदुत्व एक धर्म नहीं है, बल्कि एक जीवन पद्धति है। सभ्यता की प्रगति के साथ ही हिंदू बुद्धिजीवियों ने कुछ मूल्य, सिद्धांत, मत और मान्यताओं का विकास किया। हिंदू जीवन पद्धति इन्हीं ठोस मूल्यों पर आधारित है जो इसे हमेशा आगे बढ़ाती रहते के साथ ही टिकाऊ भी बनाती है। हिंदू जीवन पद्धति में रेखांकित करने वाले मूल्य तंत्र हैं, जिसने इस सभ्यता को 5000 से भी अधिक सालों तक बचाए रखा।
मजेदार है कि ये मूल्य हमारी संस्कृति में इस तरह रच बस गए हैं कि वह अब हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गए हैं। इस जीवन पद्धति को सनातनी भी कहा जाता है क्योंकि ये समय और स्थान से परे है और इसकी प्रासंगिकता सार्वभौमिक है। कई सारे ऐसे हिंदू सिद्धांत हैं, जिन्हें दुनिया ने हिंदुत्व से अंगीका किया है और कई ऐसे और भी हैं, जिन्हें दुनिया को स्वीकार करने की आवश्यकता है ताकि यह पृथ्वी रहने का बेहतर स्थान बन सके। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
1. जीवन मूल्य के रूप में विस्तृत परिवार नेशनल जियोग्राफिक के शोधकर्ता और ब्लू जोंस के संस्थापक डेन ब्यूटनर ने अपनी एक खोज में पाया है कि जिन समुदायों में सौ वर्ष की उम्र के लोग अधिक होते हैं, उनमें एक चीज सामान्य होती है। दैनिक प्राथमिकताओं में परिवार के सदस्यों और अन्य प्रियजनों को शामिल करना। इस शोध के मुताबिक परिवार के साथ समय बीताना एक बुद्धिमत्तापूर्ण निवेश है, जो आपके जीवन काल में छह और साल जोड़ सकता है। विस्तृत या संयुक्त परिवार में रहना हिंदुत्व के महत्वपूर्ण मूल्यों में एक है।
हिंदू अवधारणा में जीवन व्यक्तिवाद पर आधारित नहीं है, बल्कि वह परिवार पर आधारित है। इसमें व्यक्ति विशेष अहम नहीं है बल्कि ‘‘परिवार में व्यक्ति’’ है जो हिंदू पहचान की मूल इकाई है। परिवार एक धुरी है, जिसके इर्दगिर्द पूरी हिंदू जीवन पद्धति घूमती है। परिवार में ही एक हिंदू व्यक्ति विशेष का जन्म होता है, वहीं उसका विकास होता है और परिवार में ही उसे मूल्यों की समझ विकसित होती है। एक परिवार में रहने से आपका जीवन तनावमुक्त होता है और इससे आपको जिंदगी में उन्नति का एक मनोवैज्ञानिक सहयोग मिलता है।
हिंदू परिजन अपने बच्चों का पालन पोषण करने और बुजुर्ग माता पिता का ख्याल रखने के कर्तव्य से बंधे होते हैं। परिवार की यही एकता सामान्य तौर पर विस्तृत परिवार होता है, जिसमें हो सकता है कि सभी एक छत के भीतर ना रहते हों लेकिन सभी के बीच भावनात्मक बंधन बहुत मजबूत होता है। परिवार के बिना आप किसी भी हिंदू परिवार को मूल इकाई के रूप में कल्पना नहीं कर सकते हैं। 2. परिजनों और बड़ों का सम्मान करना
परिवार में बच्चों को इस प्रकार तैयार किया जाता है ताकि वह अपने परिजनों और परिवार के बुजुर्गों का सम्मान करने और उनके आदेशों का पालन करें। भगवान राम ने तो अपने पिता के वचन के लिए राजपाट का त्याग कर दिया था। किसी भी हिन्दू बच्चे के लिए माता-पिता जिंदा भगवान होते हैं। श्रवण कुमार इसी श्रेणी में आते हैं जिन्होंने अपने अंधे माता-पिता को कंधों के सहारे धार्मिक स्थलों का भ्रमण कराया। माता और पिता में माता को अत्यधिक सम्मान दिया जाता है क्योंकि मां ही बच्चे को जन्म देती है।
कई पश्चिमी देशों में देखा जाता है कि बच्चे अपने परिजनों की बातों को नजअंदाज या अनसुना कर देते हैं जबकि इसके विपरीत हिंदू बच्चे अपने परिजनों की बातों को नजरअंदाज करने की सोच भी नहीं सकते। एक अन्य सामाजिक मूल्य उनमें बड़ों के प्रति सम्मान का भाव रखने का होता है। बड़ों में चाचा, चाची, परिवार के अन्य बड़े सदस्य और आम बुजुर्ग शामिल हैं। शिक्षक को तो वह गुरु के रूप में पूजते हैं और परिजनों के बराबर उनका सम्मान करते हैं। एक गुरु अपने छात्रों के लिए संरक्षक, मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक होता है।
3. अतिथियों का सम्मान करना अतिथियों के प्रति सम्मान और स्वागत सत्कार का जो भाव हिंदू परिवारों में मिलेगा, वैसा किसी और संस्कृति में देखने को नहीं मिलता। हिन्दू परिवारों में अतिथियों को भगवान की तरह पूजा जाता है। हिंदू दर्शन में अतिथि यानी भगवान है। इसे ‘‘अतिथि देवो भव:’’ कहा जाता है। घर आने वाले मेहमान को सर्वोत्तम सम्मान दिया जाता है और उनकी देखभाल की जाती है।
यह मूल्य पारिवारिक संस्कृति का हिस्सा बना हुआ है और इसे परंपरा की तरह एक अनुष्ठा का हिस्सा माना जाता है। यह उन कारणों में एक है जिसकी वजह से हिंदू सभ्यता आने वाली सभी संस्कृतियों के लिए इतनी ग्रहणशील रही है और सभी को समायोजित करने के लिए जगह देती है। भारत सभी छह प्रमुख धर्मों या कहें मतों का घर है और अन्य धर्मों के लोग भी यहां आकर बसे हैं। ऐसा इसलिए है कि हिंदुत्व में सभी को समायोजित करने के प्रकृति है। 4. अन्य प्राणियों के साथ सह-अस्तित्व मंदिरों में जाना और प्रार्थनाएं करना कई हिन्दूओं का दैनिक कर्मकांड है। इन प्रार्थनाओं की सबसे महत्वपूर्ण और मजेदार बात यह है कि इसका समापन दो सुक्तियों से होता है। ‘‘प्राणियों में सद्भावना’’ हो और ‘‘विश्व का कल्याण हो’’। हिंदू अपने या सिर्फ अपने करीबी इंसानों को लेकर चिंतित नहीं रहता है। प्राणियों का अर्थ है सभी जीव और जंतु। इसमें पशु पक्षी से लेकर पेड़ पौधे इत्यादी शामिल हैं। यहां तक कि पंच-तत्व, जो जीवन के पांच बुनियादी तत्व हैं - जल, वायु, पृथ्वी, अंतरिक्ष और अग्नि - को जीवित संस्था माना जाता है और इसी प्रकार से इनक पूजा की जाती है। एक हिंदू नदियों, पर्वतों, आग, जंगलों और आकाश की पूजा करता है। 5. विश्व कल्याण की भावना विश्व का कल्याण हो का तात्पर्य है कि हिन्दू सिर्फ अपने देशवासियों की ही नहीं बल्कि ब्रह्मांड की चिंता करता है और उनके कुशल-क्षेम और कल्याण की कामना करता है। यही वास्तविक मानवतावाद और सार्वभौमवाद है। विश्व को इन सांस्कृतिक मूल्यों को सीखने की जरूरत है जो कि हिंदुत्व की मूल प्रकृति है।

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