MP News: सात साल के बच्चे की मृत्यु पर 16 साल बाद मिला न्याय, बीमा कंपनी को लगा 50 हजार का जुर्माना
भोपाल NOI :- मध्यप्रदेश के सतना में एक सात साल के बच्चे की मौत हो गई थी। इसमें मृतक छात्र के पिता को 16 साल बाद न्याय मिला है। दरअसल, सरकारी स्कूल में पढ़ रहे विद्यार्थियों की असामयिक मौत और दुर्घटना होने पर क्षतिपूर्ति देने के लिए शासन की ओर से छात्र सुरक्षा बीमा कराया जाता है। इसके तहत एक रुपये की प्रीमियम राशि जमा होती है, लेकिन असामयिक और दुर्घटना होने पर स्वजनों को बीमा राशि लेने के लिए दर-दर की ठोंकरे खानी पड़ती है। इसके बावजूद उन्हें बीमा राशि नहीं मिलती है।
मालूम हो कि एक ऐसा ही मामला सतना जिले में सामने आया है। दरअसल, सतना में एक सात साल के बच्चे की मौत हो गई थी। इसमें मृतक छात्र के पिता को 16 साल बाद न्याय मिला। मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग के पीठासीन सदस्य एके तिवारी, सदस्य डा. श्रीकांत पांडेय व डीके श्रीवास्तव की बेंच ने इस पर निर्णय सुनाते हुए बीमा कंपनी को कड़ी फटकार लगाया और उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है ।
जानकारी हो कि सतना जिला के अतरहरा गांव के निवासी राम कुमार साकेत ने 2007 में ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग में याचिका लगाई थी। तब भी जिला आयोग ने मृतक छात्र के पक्ष में निर्णय सुनाया था, लेकिन बीमा कंपनी ने इस निर्णय के खिलाफ राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील लगा दी। अब राज्य आयोग ने जिला आयोग के फैसले को सही ठहराया और बीमा कंपनी पर हर्जाना लगाते हुए बीमा राशि 35 हजार रुपये, 10 हजार मानसिक क्षतिपूर्ति और पांच हजार वाद व्यय देने के आदेश दिए।
यह था मामला जिला सतना के गांव अतरहरा के शासकीय माध्यमिक विद्यालय में एक छात्र पहली कक्षा में पढ़ता था। स्कूल से 21 सितंबर 2006 से 20 सितंबर 2007 के लिए छात्र की बीमा पालिसी ली गई थी। मालूम हो कि स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से छात्र सुरक्षा बीमा पालिसी कराई जाती है। इसके अंतर्गत एक रुपये का बीमा प्रीमियम लिया गया था। छात्र सुरक्षा बीमा पालिसी के तहत दुर्घटनावश मृत्यु या अपंगता होने पर 25 हजार रुपये बीमा राशि देने का प्रविधान था। बीमा लेने के दो माह बाद नौ नवंबर 2006 को छात्र की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। पिता ने इसकी सूचना रिपोर्ट और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बीमा कंपनी को भेजकर क्लेम के लिए आवेदन किया तो कंपनी ने देने से इंकार कर दिया। बीमा कंपनी का कहना था कि पिता ने मृतक छात्र के स्कूल का शपथ पत्र और रिपोर्ट सही नहीं दी थी, इसलिए क्लेम राशि नहीं दी गई थी। अब जाकर स्कूल से शपथ पत्र मिला है।
वहीं, उन्होंने कहा कि स्कूल प्राचार्य या प्रधानाध्यापक का शपथपत्र मान्य होगा राज्य आयोग ने इस मामले को बेहद ही दुखद बताया और निर्णय सुनाते हुए कहा कि अगर बीमित छात्र के मृत्यु का कोई अन्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं तो मप्र स्कूल शिक्षा विभाग के नियमानुसार विशिष्ट परिस्थितियों में यदि एफआइआर और पोस्टमार्टम रिपोर्ट उपलब्ध नहीं होती है तो स्कूल प्राचार्य या प्रधानाध्यापक का शपथपत्र मान्य होगा।
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