लखनऊ, NOI : आलमबाग बस अड्डे से करीब 100 मीटर कानपुर की ओर आगे बढ़ते ही रेलवे बैंक है। इसी बैंक के बगल से एक रास्ता भीतर की ओर जाता है। दाहिनी ओर खड़े एक युवक से सिर्फ इतना ही पूछा कि कुवैत जाना है। उसने सन्नाटे की ओर जा रही गली की तरफ इशारा कर दिया। जंगल और घासफूस के बीच यह रास्ता सीधे तेल भंडार तक पहुंच गया। तेल भंडार की वजह से इस इलाके का नाम मिनी कुवैत रखा गया है। यहां डीजल शेड के पिछले दरवाजे के बगल में 10 गुणे 40 फीट का गड्ढा भीतर से आ रहे डीजल से भरा मिला। गड्ढे से इतर जो डीजल बचता है, वो सामने वाले बड़े नाले से बहता है, जो झाडिय़ों से ढका है। एक लोडर में लदे तीन खाली ड्रम यहां चल रहे खेल की सारी सच्चाई बयां कर रहे हैं। 

डीजल शेड में काले डीजल की कालाबाजारी का खेल वर्षों पुराना है। बीती 28 जुलाई को इस खेल में उस समय नया अध्याय जुड़ा, जब यहां चीफ लोको इंस्पेक्टर बीएस मीणा की मिलीभगत से अमौसी स्थित इंडियन आयल कारपोरेशन से रवाना 20 हजार लीटर के डीजल टैंकर को डीजल शेड की जगह दूसरी जगह भेजा गया। इस खेल को गेट पास और डीजल शेड के रिकार्ड की एंट्री का मिलान कर आरपीएफ (रेलवे सुरक्षा बल) ने पकड़ा। आलमबाग स्थित डीजल शेड में डीजल इंजन की ओवरहालिंग होती है। इस कारण बड़े पैमाने पर इंजन से डीजल निकाला जाता है और उसमें फ्रेश हाईस्पीड डीजल भरा जाता है। डीजल शेड में उपयोग किए गए डीजल को एकत्र कर बाहर ले जाने का प्लांट लगा है, लेकिन इंजनों से निकले डीजल के साथ फ्रेश डीजल यहां के कर्मचारियों की मिलीभगत से बाहर निकाला जाता है।

गेट के बगल दीवार के नीचे से छेद करके डीजल को गड्ढे में जमा किया जाता है। जहां रातभर एक सिंडीकेट ड्रमों में भरकर डीजल को लोडर वाहनों से ऐशबाग और कई अन्य जगहों पर ले जाता है। इसी तरह नाले में भी बह रहे डीजल को एकत्र किया जाता है। आरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो उपयोग किए गए डीजल को भी बाहर कालाबाजारी कर बेचा जाता है। इसके लिए यहां सक्रिय गिरोह हर महीने एक मोटी रकम रेलवे कर्मचारियों को देता है। डीजल लोको से बहने वाला यह डीजल उपयोग किया हुआ नहीं होता। यह वह डीजल होता है जो इंजन को ओवरहालिंग के लिए लाते समय टैंक में बच जाता है।

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