NOI :-  ऋषि कश्यप के कुल में जन्मा एक दैत्य जिसका नाम राजा बली के नाम से पुराणों में वर्णित है। वह स्वभाव से दानवीर थे लेकिन दैत्य गुण के कारण अहंकार और अधर्म भी राजा बली के स्वभाव में था। स्वर्ग का राजा बनने के लिए यानी इंद्र की पदवी के लिए सो अश्वमेव यज्ञ करने का निर्णय लिया। यदि ऐसा होता तो बली स्वर्ग के राजा बन जाते और दैत्यों का राज होता। राजा बली को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और बली द्वारा रचित यज्ञ में शामिल हो गए और तीन पग भूमि दक्षिणा मांगी। राजा बली ने तीन पग भूमि जब दी तो वामन अवतार में भगवान विष्णु ने धरती आकाश और पाताल नाप लिए। शास्त्रों अनुसार ब्राह्मण जब दान लेता है तो बदले के आशीर्वाद देता है।
राजा बली को जब वर मांगने के लिए कहा तो उसने भगवान विष्णु को अपने साथ पाताल लोक में रहने के लिए कहा। धर्म बंधन में फंसे वामन अवतार विष्णु को राजा बली के साथ पाताल लोक में रहना पड़ा । दूसरी तरफ माता लक्ष्मी परेशान हो गई तो नारद मुनि ने उन्हें उपाय सुझाया। माता लक्ष्मी राजा बली के पास गई और रक्षा सूत्र बांधकर राजा बली को अपना भाई बना लिया। राजा बली ने कब अपनी बहन को राखी के बदले कुछ मांगने को कहा तो बदले में लक्ष्मी माता ने भगवान विंष्णु को मांग लिया । तब से लेकर अभी तक जो रक्षा सूत्र बांधते है तो राजा बली के नाम से मन्त्र बोलकर ही बांधते है और रक्षा सूत्र बांधते हुए राजा बली का स्मरण करते हैं।

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