Delhi: बेटा हो गया बलिदान तो त्रिखा दंपती ने उठाया समाजसेवा का बीड़ा, युवाओं को सेना में जाने के लिए करते प्रोत्साहित
नई दिल्ली NOI :- अपने बेटे के देश के लिए बलिदान होने के बाद त्रिखा दंपती का हौसला नहीं टूटा। अब वे दूसरे युवाओं को सेनाओं का हिस्सा बनने के लिए न केवल प्रेरित कर रहे, बल्कि प्रशिक्षित भी कर रहे हैं। सेना में जो युवा चयनित होने से चूक जाते हैं, उन्हें सिक्योरिटी कंपनी के जरिये रोजगार मुहैया कराने की व्यवस्था दंपती अपने फाउंडेशन के जरिये करते हैं।
फ्रीडम फाइटर्स एन्क्लेव निवासी कर्नल (रिटायर्ड) जेआर त्रिखा व स्वदेश त्रिखा को 16 अगस्त 2002 को अपने बेटे फ्लाइट लेफ्टिनेंट महीश त्रिखा के बलिदान होने की सूचना मिली थी। दोनों ने तभी से ठान लिया था कि वे बेटे के बलिदान को पूरा सम्मान देंगे। इसी सोच के साथ दोनों ने समाजसेवा की राह पकड़ ली। तब से लेकर आज तक उनका यह सफर जारी है।
16 अगस्त 2022 को उनके बेटे को बलिदान हुए 20 वर्ष पूरे हो जाएंगे। त्रिखा दंपती ने बताया कि महीश का जन्म दो जनवरी 1975 को दून के मिलिट्री हास्पिटल में हुआ था। 1986 में महीश ने देहरादून के आरआइएमसी में प्रवेश लिया। 1992 में एनडीए कोर्स में प्रशिक्षण लेने के बाद 29 जून 1996 में भारतीय वायु सेना में बतौर पायलट ज्वाइन किया। अप्रैल 2001 में महीश ने लेह में हेलीकाप्टर यूनिट ज्वाइन की और 16 अगस्त 2002 को वह बलिदान हो गए।
इसके बाद त्रिखा दंपती ने वर्ष 2006 में मार्टियर फ्लाइट लेफ्टिनेंट महीश त्रिखा फाउंडेशन के जरिये आरआइएमसी के ग्रुप-सी के कर्मचारियों के बच्चों के साथ ही सैकड़ों अन्य जरूरतमंद युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें रोजगार दिलाने का काम शुरू किया। स्वदेश ने बताया कि फाउंडेशन के जरिये वे युवाओं को बेहतर करियर की राह दिखाने के साथ ही सैन्य सेवाओं से जुड़ने के लिए भी मार्गदर्शन कर रहीं हैं।
उन्होंने बताया कि अभी अलग-अलग राज्यों में फाउंडेशन के पांच केंद्र हैं, जहां युवाओं को प्रशिक्षित किया जाता है। जेआर त्रिखा ने बताया कि वे युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलाने में भी सहायता करते हैं। उन्होंने सेना में 26 साल काम किया है। इसलिए प्रशिक्षण में उनका यह अनुभव काफी काम आता है।
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