उदयपुर NOI :-  मानसून के दौरान मेवाड़ में हो रही अच्छी बारिश का परिणाम है कि एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित मीठे पानी की झील जयसमंद में गिरने वाली सभी नौ नदियां एवं 99 नाले उफान पर हैं।
उदयपुर जिला मुख्यालय से लगभग 51 किलोमीटर दूर सलूम्बर मार्ग स्थित यह झील पांच दशक के दौरान सात बार छलक उठी है। बारिश इसी तरह होती रही तो अगले कुछ दिनों में आठवीं बार ओवरफ्लो हो जाएगी। 27 फीट गहरी इस झील का जलस्तर मानसून से पहले महज सात फीट बचा था लेकिन मानसून के पहले चरण में हुई बारिश के दौरान इस झील में दस फीट से अधिक पानी आ चुका। इस झील में गिरने वाली सातों नदियां और 99 नाले सभी उफान पर हैं और हालात यही रहे तो यह जल्द ही लबालब हो जाएगी।
इस झील में गोमती, झामरी, रूपारेल, मकरेडी, सिरोली, खैराली तथा बूढ़ल, सरणी और वागर नदियां के अलावा 99 बरसाती नाले भी गिरते हैं, जिनमें वगुरवा नाला सबसे बड़ा है। इस झील के बीच सात टापू भी हैं, जिसमें सबसे बड़ा बाबा का भागड़ा यानी मगरा है। बाकी के तीन टापुओं पर आदिवासी परिवार रहते हैं और तीन टापू पूरी तरह निर्जन हैं। इन टापुओं तक आने-जाने के लिए नावें ही एकमात्र सहारा है। बाबा का मगरा टापू के अलावा अन्य तीन टापुओं पर आने-जाने के लिए आज भी आदिवासी लोग पारम्परिक नावें ही उपयोग में लेते हैं। यहां तक इन टापुओं पर रहने वाले बच्चे पढ़ने के लिए भी नावों से आते-जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि इस झील का निर्माण मेवाड़ के तात्कालिक शासक महाराणा जय सिंह ने 1687 से 1691 के बीच कराया। दो पहाड़ियों के बीच एक किलोमीटर की पक्की पाल बनवाकर इसे बनाया गया। लगभग 100 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र में फैली यह झील गोविन्द वल्लभ पंत सागर के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित मीठे पानी की झील है।

जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य से घिरी इस झील के किनारे कई तरह के दुर्लभ जानवर और प्रवासी पक्षी रहते है। इस झील पर संगमरमर यानी मार्बल से बने हाथी बने हुए हैं, जिनकी उठी हुई सूड तक पानी पहुंचने के बाद वह झील ओवरफ्लो हुआ करती थी लेकिन एक बार जयसमंद और उसके निचले इलाकों में आई बाढ़ के बाद इसकी उंचाई कम कर दी गई और अब हाथियों के पांव तक पानी पहुंचने पर यह झील ओवरफ्लो हो जाती है।

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