अहमदाबाद, NOI :- 2008 Ahmedabad serial blasts: सीरियल बम धमाका मामलों में फांसी की सजा पाने वाले 30 दोषियों ने सजा को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। दोषियों के वकील का कहना है कि पारिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर मौत की सजा नहीं दी जा सकती। सजा के खिलाफ अपील की अवधि निकले जाने के बाद भी हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार लिया है।

वर्ष 2008 में अहमदाबाद के विविध क्षेत्रों में किये गये सीरियल बम धमाकों के 38 दोषियों को फरवरी 2022 में स्थानीय अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। दोषियों के वकील एम एम शेख तथा खालिद शेख ने उनकी सजा को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।

न्यायाधीश वी एम पंचाली एवं न्यायाधीश ए पी ठाकर की खंडपीठ ने सजा के खिलाफ अपील के लिए मान्य अवधि से 115 दिन बाद भी दोषियों की याचिका को स्वीकार कर लिया है।

गौरतलब है कि गुजरात दंगों का बदला लेने के लिए इंडियन मुजाहिदीन की ओर से 2008 में किये गये सिलसिलेवार 21 बम धमाकों के 77 आरोपियों में से विशेष अदालत ने 49 को दोषी माना था। जबकि 28 को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया था। धमाकों में 56 लोग मारे गये थे जबकि दो सौ से अधिक घायल हुए थे। पहले आरोपी जाहिद कुतबुद्दीन शेख को पुलिस ने फोन के आधार पर जूहापुरा अहमदाबाद से गिरफ्तार किया था।

मुख्य सूत्रधार तक ऐसे पहुंचे

जांच के बारे में पुलिस महानिरीक्षक चूडास्मा ने बताया था कि एक दिन भरुच से किसी ने बताया कि धमाकों में उपयोग की गई कार यहां देखी गई है। तो वे अपने साथी आईपीएस मयूर चावडा आदि के साथ निजी कार लेकर भरुच पहुंचे। यहां एक मकान में दबिश दी जहां बम बनाने की सामग्री व अन्य विस्फोटक मिले। पुलिस ने यहां से एक मोबाइल नंबर तलाशा जिसके आधार पर इस आतंकी साजिश के मुख्य सूत्रधार यासिन भटकल तक पहुंचे।

51 लाख पेज के आरोप पत्र

पुलिस ने उनके साथ लंबी बैठके व मंत्रणा के बाद 51 लाख पन्नों के 521 आरोप पत्र तैयार किया था। 1170 गवाहों के बयान कलमबद्ध किये गये। 9 न्यायाधीशों ने केस की सुनवाई की। पहला आरोप पत्र भी 9800 पन्नों का था। दस्तावेज अदालत में लाने के लिए विशेष वाहन की व्यवस्था करनी पड़ी थी।

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