बच्चों के 'बड़े भैया' की क्लास, अभिजीत ने उठाई गरीब बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी
नई दिल्ली, NOI: देश में इस समय बच्चों की शिक्षा सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। खासकर ग्रामीण एवं गरीब तबके के बच्चों की चुनौती बड़ी रही है। ऐसे में पुणे के छात्र अभिजीत पोखरनिकर ने गरीब बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई है। बीते एक वर्ष में इनकी ‘दादा ची शाला’ (बड़े भाई की शाला) बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुकी है।
अभिजीत बताते हैं कि वर्ष २०२० में जब महामारी के कारण देशभर में लाकडाउन लगने शुरू हुए थे, तब बहुत से गरीब बच्चों की पढ़ाई एकदम से छूट गई थी। उस वक्त मैंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर ईंट-भट्ठे पर काम करने वाले बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था। आज हमारे साथ करीब १२० बच्चे जुड़े हैं। इनमें कुछ झुग्गी बस्तियों से आते हैं, कुछ बंजारा समुदाय व कुछ मजदूरों के बच्चे हैं। अभिषेक ने अन्य वर्कर्स के बच्चों तक भी अपनी पहुंच बनाई और उन्हें शिक्षित कर रहे हैं।
दरअसल, अभिजीत ने करीब ६० वालंटियर्स की मदद से बीते वर्ष दिसंबर महीने में शहर का एक सर्वे किया। इसमें करीब ४,७२७ बच्चे शिक्षा से महरूम पाए गए। वह कहते हैं, ‘हमने हफ्ते में तीन दिन, सुबह नौ बजे से रात बारह बजे के बीच बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। कोशिश रहती थी कि भाषा के साथ उन्हें मैथ्स एवं साइंस की जानकारी दी जाए। धीरे-धीरे कई और वालंटियर्स जुड़ते गए और हमने शहर के अलग-अलग हिस्सों में पढ़ाना शुरू कर दिया।
वैसे, समाजसेवा से अभिजीत का पुराना नाता रहा है। वर्ष २०१८ में इन्होंने प्रसिद्ध समाजसेविका सिंधूताई सपकल के साथ काम किया था, जो अनाथ बच्चों के लिए काम करती हैं। उसी दौरान इन्हें यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (यूएनएसडीजी) के बारे में पता चला, जिसके तहत गरीब तबके के बच्चों तक शिक्षा पहुंचाई जाती है है। अभिजीत बताते हैं, ‘ हमने चुनौती को स्वीकार किया था। लेकिन इन दिनों ऐसे बच्चों को पढ़़ाना कहीं से आसान नहीं है। बेरोजगारी के कारण माता-पिता बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के इच्छुक नहीं हैं। हमें भी उन्हें समझाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि बच्चे चाहते थे पढ़ना।‘ आगे चलकर अभिजीत सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए एक सेंटर खोलने के अलावा ला की पढ़ाई भी करना चाहते हैं, ताकि इस तरह के अभियानों का सफलतापूर्वक संचालन कर सकें।
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