गजब कारनामा : लुवास को लीज पर मिली जमीन जीएलएफ ने बीड़ बबरान मंदिर ट्रस्ट को बेची
अब बीड मंदिर में जाने के लिए कैंपस से जाना होगा
अब बीडबबरान स्थित श्याम बाबा का मंदिर में जाना हो तो लुवास के कैंपस के भीतर से होकर जाना होगा। सबसे बड़ा सवाल है कि अब उन्हें मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं और मेलों को अपने कैंपस में ही आयोजित करने देना पड़ेगा। क्योंकि मंदिर की जमीन के साथ उन्हें अलग से रास्ता नहीं दिया गया। पिछले दिनों में मंदिर में वार्षिक मेला आयोजित किया गया जिसमें हजारों लोग श्याम बाबा के दर्शन करने पहुंचे ऐसे में भीड़ को संभालने के लिए लुवास को अपनी सिक्योरिटी लगानी पड़ी ताकि कैंपस को किसी प्रकार से नुकसान न हो।
सरकार ने 45 लाख रुपये के कलेक्टर रेट में बेची है जमीन
बीड़बबरान क्षेत्र अधिक विकसित नहीं है। ऐसे में यहां पर आमतौर पर 27 लाख रुपये से 40 लाख रुपये तक के रेट में जमीन मिल जाती है। ट्रस्ट के पदाधिकारियों को इस जमीन के सरकारी कलेक्टर रेट 45 लाख रुपये बताए गए मगर खास बात है कि ट्रस्ट में शामिल बाबा के भक्तों ने बिना तोलमोल किए मंदिर बनाने के उद्देश्य से इसी भाव में सरकार को भुगातन कर दिया। उन्होंने कुल सात कनाल आठ मरला जमीन के एवज में 41 लाख 62 हजार 500 रुपये का भुगतान कर दिया है। जमीन को लेकर सरकार की अनुमति आने के बाद ट्रस्ट ने रुपयों का भुगतान करने में देरी नहीं लगाई और अब इस जमीन की रजिस्ट्री तहसील में श्याम बाबा ट्रस्ट के नाम होनी है।
करोड़ों रुपये से भव्य मंदिर होगा तैयार फिर सरकार से अलग रास्ते की करेंगे मांग
बीड़ बबरान स्थित श्याम बाबा ट्रस्ट के सचिव सुरेंद्र लाहौरिया ने बताया कि जमीन की रजिस्ट्री होने के बाद ही श्याम बाबा का भव्य मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया जाएगा। इस मंदिर में करोड़ों रुपये से बाबा का भव्य दरबार सजाया जाएगा ताकि देश विदेश के श्रद्धालु यहां आ सकें। अभी मंदिर पर तलवंडी की तरफ से जा सकते हैं मगर यह रास्ता ठीक नहीं। वहीं लुवास में से होकर जा सकते है। ऐसे में जमीन मिलने के बाद अब हमारी सरकार से मांग रहेगी कि उन्हें अलग से रास्ता भी दिया जाए। अभी तक जमीन की मांग सरकार ने पूरी कर दी है।
पूर्व में विश्वविद्यालय ने यह दिया था सुझाव
पूर्व में जब इस जमीन को लेकर लुवास और प्रशासन के बीच पत्राचार हुआ था तो उसमें सुझाव दिया गया था कि ट्रस्ट को सात कनाल आठ मरला जमीन देने के स्थान पर दो से सवा दो एकड़ जमीन दे दी जाए। जिससे लुवास अपनी बाउंड्री के पास एक रास्ता मंदिर को दे देगा। जिससे लुवास को को दिक्कत नहीं होगी और मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भी सीधे आ जा सकेंगे। मगर यह यह बात सिरे ही नहीं चढ़ सकी।
बीड मंदिर की यह है मान्यता
बीड़ बबराना मंदिर काफी प्राचीन है। सचिव सुरेंद्र लाहौरिया ने बताया कि वर्ष 1970 में पंडित राम गोपाल को यहां पर श्याम बाबा की काला कलूटी पत्थर की मूर्ति मिली थी। यह पत्थर काफी दुर्लभ है। मंदिर की विशेषता यह है कि खाटू श्याम जिनका नाम बर्बरीक था वह पूर्वोत्तर से श्री कृष्ण को मिलने की चाह में कुरुक्षेत्र महाभारत के आ रहे थे। बीड़ के रास्ते उन्हें कुरुक्षेत्र जाना था। यहां पर उन्हें भगवान कृष्ण रूप बदलकर मिले, उन्होंने उनकी परीक्षा ली और तीर चलाकर पीपल के सभी पत्तों में सूराख करने को कहा। बर्बरीक ने तीर चलाया इसी दौरान श्री कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैरों के नीचे दबा लिया। तीर सभी पत्तों में सूराख कर श्री कृष्ण के पैरों में आकर रुक गया। इसी दौरान बर्बरीक ने कहा कि आप अपना पांव हटाएं। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण अपने असली रूप में आ गए। यहीं पर भगवान ने बर्बरीक से उनका सिर मांग लिया और बर्बरीक ने कृष्ण भक्ति में अपनी सिर को भगवान को अर्पित कर दिया। इसके बाद उनके सिर को खाटू श्याम पहुंचाया गया और उन्हें वरदान भी दिया गया। तब से खाटू श्याम के बाद यह हिसार का बीड़ बबरान दूसरा स्थान है जो खाटू श्याम के भक्तों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
वर्जन
हमारे पास सरकारी प्रक्रिया के माध्यम से जमीन के टुकड़े को ट्रस्ट को देने को लेकर प्रस्ताव आया था। इसको आगे केबिनेट की मंजूरी के लिए भेज दिया गया था। इसके बाद के स्टेटस की मुझे जानकारी नहीं है।
हमसे इस संबंध में लुवास प्रशासन से कोई अनुमति नहीं ली गई है। इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है।
हमने जमीन का भुगतान जीएलएफ को किया है। इसकी जानकारी नहीं है कि अभी तक लुवास ने जमीन जीएलएफ को सरेंडर नहीं की है। इसके बारे में पता कराएंगे।
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