लंदन यूनिवर्सिटी की तर्ज पर बना था बिहार का यह विश्वविद्यालय, कहा जाता था आक्सफोर्ड आफ द ईस्ट
स्थापना के 25 वर्षों में ही कहा जाने लगा Oxford of the East
दरअसल 1912 में बंगाल से बिहार और उड़ीसा को अलग किया गया। इसके बाद यहां एक विश्वविद्यालय खोलने की मांग उठी। अंग्रेजी सरकार ने नाथन कमेटी बनाई। इस कमेटी ने अगले साल यूनिवर्सिटी आफ लंदन की तरह यूनिवर्सिटी स्थापना की अनुशंसा की। इस बात की चर्चा ए हिस्ट्री आफ पटना यूनिवर्सिटी में है। यूनिवर्सिटी आफ लंदन की तरह ही संबद्ध, अंगीभूत और वोकेशनल कॉलेजों का तरीका अपनाया गया। वोकेशनल में पटना ट्रेनिंग कालेज, पटना ला कालेज एवं एडेड में बीएन कालेज शामिल हुआ। तीन वर्षों बाद कई कालेज और जुड़े। पटना विवि एक्ट के तहत 1917 में इसकी स्थापना हुई। तब इसका क्षेत्र नेपाल और उड़ीसा तब था। 1951 में यह टीचिंग एंड रेसीडेंसियल कालेज बन गया। वर्तमान में इसके अंतर्गत 10 कालेज हैं। स्थापना के महज 25 वर्षों में इसकी उपलब्धि सामने आने लगी। इसे आक्सफोर्ड आफ द ईस्ट कहा जाने लगा। क्योंकि लंदन यूनिवर्सिटी जैसे टेम्स के किनारे है, उसी तरह पीयू गंगा के किनारे। आइसीएस की परीक्षा यहां के छात्रों का परचम लहराने लगा।
मैट्रिक पास करने वाले को शपथ दिलाते थे वीसी
उस समय बिहार बोर्ड नहीं बना था। तब पटना विश्वविद्यालय ही मैट्रिक की परीक्षा लेता था। स्थापना के बाद 1937 तक मैट्रिक पास करने वाले छात्रों को नैतिकता की शपथ कुलपति दिलाते थे। इसके लिए वीसी उड़ीसा से नेपाल तक जाते थे। शपथ लेने वाले को ही प्री कालेज में एडमिशन मिलता था।
ये रहे हैं पटना यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट
लोकनायक जयप्रकाश नारायण, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, फिल्म एक्टर व राजनेता शत्रुघ्न सिन्हा, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी, नौकरशाह राजीव गौवा, बिहार के चीफ सेक्रेटरी रहे अंजनी कुमार सिंह, पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे, पूर्व आइपीएस किशोर कुणाल ऐसे और भी कितने नाम हैं जो देश-दुनिया में इस विवि का झंडा लहरा रहे हैं।
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