Vikram Vedha Review: बासी कढ़ी में तड़का है 'विक्रम वेधा', सैफ पर भारी पड़े ऋतिक रोशन, यहां पढ़ें रिव्यू
बासी कढ़ी में तड़का है विक्रम वेधा
रीमेक फिल्मों में निर्देशक की मौलिकता इतनी रहती है कि वह मूल के करीब रहे और उसकी लोकप्रियता को भुना सके। यहां पर मूल फिल्म का निर्देशन करने वाले पुष्कर और गायत्री ही इसके लेखक हैं। उन्होंने ही रीमेक का निर्देशन किया है। ऐसे में हिंदी पट्टी के दर्शकों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहानी की पृष्ठभूमि लखनऊ और कानपुर कर दी है। बाकी किरदार और कहानी को उसी परिवेश में रखा गया है।
विक्रम और बेताल की थीम पर बेस्ड
कहानी का आरंभ ईमानदार और सख्त पुलिस आफिसर विक्रम (सैफ अली खान) द्वारा अपने साथियों के साथ एक एनकाउंटर करने से होता है। वह कुख्यात अपराधी वेधा (ऋतिक रोशन) की तलाश में होते हैं। वेधा अचानक से थाने में आत्मसमर्पण करने आता है। पूछताछ के दौरान वह विक्रम को कहानी सुनाता है ठीक वैसे ही जैसे विक्रम और बेताल की कहानी में होता है। कहानी के अंत में बेताल पूछता है कि बताओ इस स्थिति में विक्रम क्या करेगा।
गैंगस्टर के रोल में नजर आए ऋतिक रोशन
यहां पर वेधा यह सवाल विक्रम से करता है। यह कहानी एनकाउंटर में मारे गए निर्दोष लड़के को लेकर होती है जो वेधा का छोटा भाई शतक (रोहित सराफ) होता है। वेधा उसे बहुत प्यार करता है। वेधा यूं अंडरग्राउंड है, लेकिन बीच-बीच ऐसे मोड आते हैं जब विक्रम से उसका सामना होता है। इस तरह वह उसे तीन कहानी सुनाता है। दरअसल, हर कहानी विक्रम को कोई सुराग देती है। आखिर में विक्रम क्या एनकाउंटर के पीछे के खेल को समझ पाएगा? कहानी इस संबंध में हैं।
थ्रिलिंग हैं चेज सीन
फिल्म रीमेक है। लिहाजा मूल फिल्म जैसा डायलॉग और हूबहू वैसे ही सीन होना कहानी की अनिवार्यता है। पति पत्नी और निर्देशक जोड़ी पुष्कर और गायत्री ने फिल्म में एक्शन के स्तर को इसमें बढ़ाया है। चेज सीन (पीछा करने वाले दृश्य) में रोमांच है। हालांकि वेधा के गैंगस्टर बनने, उसके तेज दिमाग और रुतबे को कहानी में पूरी तरह एक्सप्लोर नहीं किया गया है। उसकी अपने गैंग के साथियों साथ बांडिंग भी नहीं दिखाई गई है। जबकि मूल फिल्म में उसे बेहतर तरीके से दिखाया गया है।
लचर है फिल्म की शुरुआत
फिल्म के शुरुआती बीस मिनट बहुत लचर है। उसमें बिलकुल कसाव नहीं है। विक्रम और वेधा के बीच आमना-सामना होने के बाद फिल्म गति पकड़ती है। पुष्कर गायत्री ने यहां पर कुछ अतिरिक्त सीन को जोड़ा है। उदाहरण के तौर पर पुलिस अधिकारी के ड्यूटी पर मरने पर सलामी का सीन। हालांकि वह अनावश्यक था। इसी तरह अल्कोहोलिया गाना भी कहानी में जरूरी नहीं है। इसे प्रमोशनल गाने के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता था। शतक और चंदा (योगिता बिहानी) की प्रेम कहानी को थोड़ा बेहतर तरीके से दिखाने की जरुरत थी।
यूपी में दिखाया है फिल्म का बैकग्राउंड
वेधा को विक्रम की निजी पसंद से लेकर पारिवारिक सारी जानकारियां होती हैं जबकि पुलिस ऑफिसर होते हुए विक्रम को उससे पूरी तरह अपरिचित दिखाया गया है। जबकि वह उसके एनकाउंटर में ही लगा है। विक्रम और उनकी पत्नी (राधिका आप्टे) के बीच का रोमांस भी फीका लगा है। कहानी की पृष्ठभूमि लखनऊ और कानपुर है, लेकिन आपको लगेगा कि रितिक का लहजा बिहार का है। एक दृश्य में वेधा सरेआम एक नेता का बेदर्दी से मर्डर करता है, लेकिन उसे देखकर आप सिहरते नहीं है। जबकि यह सीन देखकर सहम जाना चाहिए।
कुल मिलाकर देखने लायक है विक्रम वेधा
बहरहाल ऋतिक और सैफ के आमने सामने के सीन दिलचस्प बने हैं। वेधा की वकील और विक्रम की पत्नी के किरदार में राधिका आप्टे के हिस्से में कुछ खास नहीं आया है। फिल्म की अवधि भी काफी ज्यादा है। चुस्त एडिटिंग से उसे कम किया जा सकता था। कलाकारों में ऋतिक ने गैंगस्टर की भूमिका के लिए काफी मेहनत की है। अपने कायांतरण पर काफी काम किया है। उनके किरदार को काफी खौफनाक बताया गया है, लेकिन स्क्रीन पर वह वैसा दिखता नहीं हैं। सैफ अली खान ने ऋतिक के साथ टक्कर वाले सीन पर मेहनत की है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी के प्रभाव को गाढ़ा करता है। शारिब हाशमी को यहां अच्छा स्पेस मिला है। बाकी चरित्र किरदारों में आए कलाकार खास प्रभाव नहीं छोड़ते हैं। दरअसल उन्हें समुचित तरीके से लिखा नहीं गया है।
फिल्म रिव्यू : विक्रम वेधा
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