कानपुर, NOI: नौ अगस्त को गांधी जी के करो या मरो के नारे के बाद देश ने आजादी की अंगड़ाई लेनी शुरू कर दी थी। हर वर्ग के लोग बस आजादी चाहते थे। शहर में भी जन विद्रोह हुआ, जिसे दबाने के लिए अंग्रेजों ने कई जगह नाकेबंदी की, गोलियां चलाईं और लाठीचार्ज कराया। इसी बीच सैन्य क्षेत्र के सबसे सुरक्षित एयरोड्रम में सेना के स्टोर को फूंक दिया गया था। इसमें अंग्रेजों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।

छावनी में एयरोड्रम पर अंग्रेजी सेना का कब्जा था। अगस्त क्रांति में यह आग की लपटों में तब्दील हो गया था। जालौन के कोंच निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बेनी प्रसाद चोपड़ा के पुत्र मुकुंद चरण चोपड़ा उन दिनों यहां सरकारी कर्मचारी के रूप में तैनात थे। आजादी के पूर्ण समर्थक मुकुंद ने अवसर पाकर साथियों संग अंग्रेज सेना के स्टोर में आग लगा दी। यहां पेट्रोल व अन्य घातक रसायन में दो दिन तक लपटें उठती रहीं। चूंकि, बाहरी शख्स के आने की संभावना न के बराबर थी, ऐसे में आग लगाने वाले की पहचान करने को मुरे कंपनी के मैदान में जवानों की परेड हुई। अंग्रेज अफसर शिनाख्त करने निकले, लेकिन किसी को भी पहचान नहीं सके।

पुलिस की गोली से घायल हुए थे मूलचंद शुक्ल, एक हुआ था शहीद

नयागंज पोस्ट आफिस पर जनता का गुस्सा फूटा। तोडफ़ोड़ शुरू हुई और सामान को आग लगा दी गई थी। पुलिस ने इसे रोकने के लिए लाठी चलाई और दो राउंड फायर किए। एक गोली स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मूलचंद्र शुक्ल के हाथ में लगी, जबकि ठीक उनके बगल में खड़ा व्यक्ति गोली लगने से वहीं गिर पड़ा। लोग मूलचंद्र को अस्पताल ले गए, जबकि दूसरे घायल व्यक्ति को पुलिस ले गई। उस व्यक्ति का कुछ पता नहीं चला। वर्ष 1974 में सदर बाजार की मंडल कांग्रेस कमेटी ने खोजबीन की तो जानकारी हुई कि वह कैथा बाजार के हाते में रहने वाले थे, हालांकि नाम फिर भी नहीं पता चला।

छात्रों ने ईंट से दिया था गोलियां का जवाब

शहर के सभी कालेज में छात्रों ने हड़ताल कर दी थी। क्राइस्ट चर्च कालेज छात्र फेडरेशन के नेता आनंद माधव त्रिवेदी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में छात्र नारेबाजी करते हुए चौक की और बढ़े तो दूसरे कालेजों से आ रहे छात्र भी इसमें शामिल हो गए। हजारों की संख्या में जुलूस में शामिल छात्रों को रोकने को पुलिस ने कोतवालेश्वर मंदिर के निकट बैरीकेङ्क्षडग की। छात्र बैरीकेङ्क्षडग को ध्वस्त करने के लिए आगे बढ़े तो पुलिस ने गोली चला दी। इतिहासकार अनूप शुक्ला बताते हैं कि यहां 25 से 30 राउंड फायर हुए। छात्रों ने गोलियों का जवाब ईंट-पत्थर से दिया। गलियों की ओट से निकलकर छापामार युद्ध नीति की तरह छात्र पुलिस से भिड़े। इस गोलीबारी में एक छात्र शहीद हुआ था

शहर में हुईं थीं कई गिरफ्तारियां

गांधीजी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, तिलक सरीखे बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद शहर में भी कई लोग पकड़े गए थे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता शंकरदत्त मिश्र बताते हैं कि शहर में उस दौरान 136 नेता गिरफ्तार किए गए थे। नौ अगस्त को तिलक हाल के श्रद्धानंद पार्क में कई नेता एकत्रित हुए, जिन्हें अंग्रेजों ने छापा मारकर पकड़ा था। डा. जवाहर लाल रोहतगी, देवी सहाय बाजपेयी, बीबी जोग, बालकृष्ण शर्मा नवीन, बाबू प्यारेलाल अग्रवाल, हमीद खां, शैल बिहारी शंकर, जंग बहादुर ङ्क्षसह आदि गिरफ्तार किए गए थे।

इसलिए हुई थी अगस्त क्रांति

द्वितीय विश्वयुद्ध के समर्थन के एवज में अंग्रेजों ने भारत छोडऩे का आश्वासन दिया था। विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद भी उन्होंने भारत नहीं छोड़ा, जिसे लेकर कांग्रेस में गुस्सा था। अगस्त क्रांति की नींव चार जुलाई 1942 में ही पड़ गई थी, जब कांग्रेस ने अंग्रेजों को भारत छोडऩे का अल्टीमेटम दे दिया। इसके लिए एक माह का वक्त दिया गया। अंग्रेज सरकार ने जब कोई निर्णय नहीं लिया तो नौ अगस्त को गांधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो और करो या मरो का नारा दिया था। यह पहला ऐसा जन आंदोलन था, जो बिना किसी नेता अथवा नेतृत्व के हुआ।


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