Dev Deepawali : बैकुंठ चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा, काशी विश्वनाथ मंदिर स्थापना दिवस और सोमवार का शुभ संयोग
अनोखा संयोग पहली बार
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का बीते वर्ष 13 दिसंबर को लोकार्पण के बाद नव्य-भव्य स्वरूप सामने आने के बाद बैकुंठ चतुर्दशी पर देवदीपावली का अनूठा संयोग इस बार बन रहा है। बैकुंठ चतुर्दशी पर श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का प्रतिष्ठा (स्थापना) दिवस भी मनाया जाता है। धर्म शास्त्रीय विधान अनुसार यह अनूठा अवसर होता है जब हरि को बिल्व पत्र व हर को तुलसी चढ़ाया जाता है। इस लिहाज से इस बार की देव दीपावली अनोखे और अनूठे शुभ संयोग के बीच मनाई जा रही है।
क्यों मनाते हैं देव दीपावली
मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुर राक्षस पर देवों की विजय तिथि होने के कारण देवदीपावली का मान है। देवों की जीत के अवसर पर काशी में मां गंगा के तट पर पंचगंगा घाट पर कार्तिक मास के समापन के मान में दीपों को जलाने की परंपरा ही अब देव दीपावली का भव्य स्वरूप ले चुकी है। सोमवार को उदयातिथि में बैकुंठ चतुर्दशी का मान है तो सायंकाल पूर्णिमा की मान्यता के अनुसार देवदीपावली का आयोजन होगा।
इस तरह होगा पूजन और अनुष्ठान
देव दीपावली के इस खास मौके पर काशी विश्वनाथ मंदिर में लाखों रुपये के फूलों से साज सज्जा की जा रही है। मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने बताया कि दोपहर एक बजे से तीन बजे तक मंदिर में तुलसी सहस्त्रार्चन किया जाएगा। साथ ही 21 ब्राह्मणों का सम्मान भी होगा। बाबा दरबार में भोग आरती के बाद प्रथम विश्वनाथ जी व द्वितीय बैकुंठ जी का षोडशोपचार पूजन होगा। दोपहर तीन से पांच बजे के बीच 51 किलो लड्डू का भोग अर्पित कर प्रसाद वितरण होगा। शाम को देवाधिदेव दरबार में त्रिपुरोत्सव की जगमग होगी।
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