कानपुर, NOI :- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी की एक गाइडलाइन को हथियार बनाकर छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक ने अपने चहेतों को रेवड़ी की तरह नौकरियां बांटीं। किसी परिचित अधिकारी की पत्नी तो किसी के रिश्तेदार की नियुक्ति कर ली थी। विश्वविद्यालय में शिक्षक पदों पर हुई तमाम भर्तियों में यही आरोप लग रहे हैं। साक्षात्कार में बाहर हुए अभ्यर्थियों ने बताया कि कई ऐसे लोगों को नौकरियां दी गईं, जिनका एपीआइ (अकादमिक परफार्मेंस इंडिकेटर) स्कोर काफी कम था।

शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में सबसे पहले अभ्यर्थी को शुल्क जमा करके आवेदन करना होता है। इसमें अभ्यर्थी अपने शैक्षिक दस्तावेज, अनुभव प्रमाणपत्र, प्रकाशित शोधपत्र का ब्योरा जमा करते हैं। इसके बाद लिखित परीक्षा का आयोजन होता है। लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद शैक्षिक दस्तावेजों के आधार पर कुल एपीआइ स्कोर तैयार होता है। इसी स्कोर के आधार पर अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है लेकिन इसके बाद केवल साक्षात्कार के आधार पर ही चयन किया जाता है।

पिछले वर्ष से लेकर अगस्त तक हुई भर्तियों में इसी प्रक्रिया का पालन किया गया लेकिन एक महिला समेत कुछ अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया है कि सर्वश्रेष्ठ एपीआइ स्कोर हासिल करने के बावजूद साक्षात्कार में बेहतर प्रदर्शन न करने का हवाला देकर उन्हें बाहर कर दिया गया। अभ्यर्थियों ने कहा कि साक्षात्कार के लिए पैनल कुलपति बनाते हैं। सबकुछ पूर्वनियोजित होता है।

साक्षात्कार के नाम पर केवल दिखावा किया जाता है। चयन उसी का होता है, जिससे सेटिंग होती है। इसी तरह शहर में तैनात एक अधिकारी की पत्नी की नियुक्ति हो गई। विश्वविद्यालय के एक अधिकारी की आगरा निवासी रिश्तेदार की बेटी का भी चयन कर लिया गया और विश्वविद्यालय में पहले से तैनात एक शिक्षक की दोबारा नियुक्ति कर दी गई। मामले में कुलसचिव डा. अनिल कुमार यादव से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनका फोन नहीं उठा।

पूर्व सहायक प्रोफेसर ने भविष्य बर्बाद करने का लगाया आरोप


सीएसजेएमयू के पूर्व सहायक प्रोफेसर प्रमोद रंजन ने तो कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक पर भविष्य बर्बाद करने का आरोप लगाया है। अब न तो किसी परीक्षा में शामिल होने की आयु बची है और न दूसरे विश्वविद्यालय या संस्थान में नौकरी मिल रही है। उन्होंने राज्यपाल व मुख्यमंत्री से यह शिकायत की।

प्रमोद रंजन ने बताया कि चहेतों को नियुक्त करने के लिए कुलपति ने कई काबिल शिक्षकों को हटा दिया। शिकायत करने या कोर्ट जाने पर धमकी दी गई। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में विधिक अध्ययन संस्थान की स्थापना के समय उनकी मौलिक नियुक्ति हुई थी। इस संस्थान का नया भवन बनने के बाद विश्वविद्यालय ने शासन से पूर्ण वेतनमान देने और पदों के सृजन की स्वीकृति ली।निजी स्रोतों से पूर्ण वेतन देने की शर्त के साथ स्वीकृति मिली थी।

वर्ष 2020 में तत्कालीन कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता को पूर्ण वेतनमान देने और सृजित पदों के सापेक्ष नियुक्तियां करने के लिए पत्र लिखा। इसके बाद प्रो. पाठक आए और उन्होंने इस मांग को नहीं माना। योग्य होने के बावजूद निकाल दिया। तीन महीने का वेतन भी नहीं दिया। राज्यपाल को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि अगर न्याय नहीं मिला तो आत्मदाह पर मजबूर हो जाएंगे।

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