वाराणसी, NOI :। मोतियाबिंद के आपरेशन के बाद कई बार मरीज के आंखों की रोशनी कम हो जाती है या उसे दिखाई नहीं देता। यह समस्या आंखों के भीतर रेटिना पर स्थित मैक्युला में सूजन आ जाने से होती है। इसे सिस्टायड मैक्यूलर एडिमा कहते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस बीमारी को लगभग लाइलाज माना जाता है। आंखों में एंटी वीजीएफ इंजेक्शन लगाना या आपरेशन ही इसका उपचार है और यह भी पूरी तरह सफल नहीं है। इतना ही नहीं, इलाज को रोकते ही इस बीमारी के दोबारा होने का खतरा होता है।

आयुर्वेदिक औषधियों का विशेष नुस्खा तैयार किया


बीएचयू के आयुर्वेद विभाग में आयुर्वेदिक औषधियों का विशेष नुस्खा तैयार किया गया है। एक महीने के उपचार से इससे 90 प्रतिशत तक ठीक करने में सफलता मिली है। जांच के आधार पर दवाओं को एक महीने आगे बढ़ाकर इसे पूरी तरह से ठीक करने का दावा किया है।

प्रोफेसर मुखोपाध्याय ने छह वर्ष तक किया अध्ययन


बीएचयू के शालाक्य तंत्र के विभागाध्यक्ष प्रो. बी. मुखोपाध्याय ने छह वर्ष तक यह अध्ययन किया। वह बताते हैं कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए आंखों की आप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) कराते हैं। सूजन आने पर मैक्युला की मोटाई 600 से 700 माइक्रान हो जाता है, जबकि सामान्य अवस्था में यह 180 से 250 माइक्रान तक मोटा होता है। आप्थेलमोस्कोप से आंख के पर्दे की जांच होती है, लेकिन उससे मैक्युला की स्थिति का पता नहीं चल पाता।

क्या बोले प्रोफेसर मुखोपाध्याय


प्रो. मुखोपाध्याय के अनुसार आंख के सबसे महत्वपूर्ण भाग रेटिना पर फोकस करने वाले प्रकाश को नाजुक तरीके से विस्तृत संदेश में तब्दील करने के लिए रेटिना की कई परत मिलकर काम करती हैं। ये मस्तिष्क में विजुअल कार्टेक्स तक जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में मैक्युला अहम भूमिका निभाता है। यह रेटिना का वह हिस्सा है जो हमें बारीकी और विस्तार के साथ दूर की वस्तुओं और रंगों को देखने में मदद करता है। कभी-कभी डायबिटीज, ब्लड प्रेशर या किसी आपरेशन के प्रभाव से मैक्युला में सूजन आ जाती है। इससे प्रतिबिंब बनना बंद हो जाता है। इस बीमारी में आंख बाहर से पूरी तरह ठीक दिखती है, लेकिन मरीज को दिखाई कुछ नहीं देता। यह चश्मे से ठीक होने वाली बीमारी नहीं है।

100 मरीजों का किया उपचार


प्रोफेसर मुखोपाध्याय ने सर सुंदर लाल चिकित्सालय की ओपीडी में आने वाले ऐसे 100 मरीजों की जांच कर उनका उपचार आयुर्वेद की संशोधन व संशमन विधि से किया। संशोधन में विरेचन पद्धति से शरीर के टाक्सिन व अन्य दोषों जागरको बाहर किया जाता है। इसके लिए रात में दो चम्मच षट्कार चूर्ण गर्म पानी या दूध से तीन दिन तक दिया जाता है। संशोधन के बाद संसमन यानी वास्तविक उपचार आरंभ होता है।

इस तरह से दी जाती है दवाई


आयुर्वेद के अनुसार, सूजन कफ-पित्त प्रकोप से होता है। इसके लिए काफाग्नि-वाताग्नि दवाएं देते हैं। इसमें एक महीने तक मधुयष्टि गुग्गुल की दो-दो गोलियां तीनो प्रहर, षरंध गुग्गुल क्वाथ 40 मि.ली. दिन में दो बार लगातार देते हैं। सहयोगी दवा के रूप में सप्तामृत लौह (500 एमजी) दिन में एक बार शाम के भोजन के बाद दूध के साथ (वयस्क के लिए), महात्रिफलाघृत दो चम्मच हल्के गर्म दूध के साथ दिया जाता है। रोग के अनुसार, आवश्यकता महसूस होने पर पुनर्नवादि क्वाथ 40 मिली दिन में दो बार दिया जाता है। इससे मैक्युला की सूजन कम करने में मदद मिलती है।

वर्ल्ड जनरल आफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च में प्रकाशित हुआ अध्ययन


इसके साथ ही मरीज की प्रकृति के अनुसार डायबिटीज और ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण के लिए भी दवा दी जाती है। एक महीने तक दवा देने के बाद ओसीटी जांच में सूजन में 80 से 90 प्रतिशत कमी पाई गई। इससे मरीज को दिखाई देना शुरू हो गया। इसके बाद दवा को एक-डेढ़ महीने आगे बढ़ाकर आंखों को पूरी तरह से ठीक करने में सफलता मिली। उनका अध्ययन वर्ल्ड जनरल आफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च में प्रकाशित हो चुका है।

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