पुण्यतिथि विशेष: गजलों के हिमालय से बहाई हिंदी की गंगा, 'पर्वत सी पीर' से दुष्यंत कुमार बने हिंदी के ग़ालिब
प्रयागराज, NOI :- 1950 के पहले गजलें लिखने में उर्दू शब्दों का प्रयोग अधिकाधिक होता था। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बिजनौर से प्रयागराज आए दुष्यंत कुमार जिन्हें बाद में काव्य लेखन में ‘परदेसी’ नाम से ख्याति मिली, उन्होंने गजलों में हिंदी शब्दों को पिरोया। शब्दों के इस जादूगर की आज पुण्यतिथी है।
उन्हें हिंदी के पहले गजलकार के रूप में भी प्रसिद्धि मिली। ‘हो गई पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए’ पंक्तियों ने तो दुष्यंत कुमार को साहित्य के फलक पर चमका दिया। एक सितंबर 1933 को बिजनौर में जन्में दुष्यंत कुमार का निधन 30 दिसंबर 1975 को भोपाल में हुआ था।
डिप्टी कलेक्टर बनने आए थे इलाहाबाद
दरअसल, दुष्यंत कुमार को उनके पिता भगवत सहाय त्यागी ने इलाहाबाद भेजा था ताकि विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त कर बेटा डिप्टी कलेक्टर बन जाएगा। यहां आए तो छात्रावासों में रहते-रहते उनका साथ कवियों से हो गया। 1954 में इवि से एमए हिंदी में करने के बाद काव्य गोष्ठियों में भाग लेना शुरू कर दिया फिर गजलें भी लिखने लगे थे।
वरिष्ठ कवि और गीतकार यश मालवीय बताते हैं कि दुष्यंत कुमार की मार्कंडेय और कमलेश्वर के साथ तिकड़ी जम गई थी। वास्तव में वह गजल के गालिब हैं।
पहली बार उन्होंने गजलों में हिंदी शब्दों से रंग भरना शुरू किया। उनकी रचनाओं में समसामयिक संदर्भ ज्यादा रहते थे जबकि इससे पहले गजलों में आंखें, जुल्फों, शाम, मदिरा के प्याले को ज्यादा महत्व दिया जाता था। वरिष्ठ साहित्यकार और सरस्वती पत्रिका के संपादक डा. रविनंदन सिंह कहते हैं कि दुष्यंत कुमार का जन्म बिजनौर में उस स्थान पर हुआ जहां से मालिनी नदी बहती है। वहीं शकुंतला को देखकर हस्तिनापुर के चक्रवर्ती सम्राट दुष्यंत भी अपनी सुध-बुध खो बैठे थे।
पिता ने बेटे का नाम उसी चक्रवर्ती सम्राट के नाम पर दुष्यंत रखा था। कहा कि इवि में बीए में प्रवेश लेने के साथ ही साहित्यिक विचार में रमने लगे। उनका साथ कवि रामनाथ अवस्थी और बलवीर सिंह ‘रंग’ से भी रहा। कहा कि दुष्यंत की मंजिल तो कुछ और थी, वरना पिता की मंशानुरूप डिप्टी कलेक्टर बन गए होते तो शायद इतनी ख्याति उन्हें न मिल पाती और न ही हमें दुष्यंत कुमार।
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