History Of Lipstick: 5000 साल पुराना है लिपस्टिक का इतिहास, पढ़ें इसके रोचक सफर के बारे में..
लिपस्टिक का रोचक इतिहास
लिपस्टिक महिलाओं के श्रंगार का हमेशा से हिस्सा रही है। यहां तक कि हज़ारों साल पुरानी सभ्यता में भी महिलाएं अपने होंठों पर रंग का इस्तेमाल कर रही थीं। इतिहास में ऐसे कई सबूत हैं, जिससे साबित होता है कि लिपस्टिक लगाने की प्रथा पांच हज़ार साल पुरानी है। उस वक्त फूलों से लेकर कीमती पत्थरों को पीसकर पेस्ट तैयार कर लगाया जाता था।
5 हज़ार साल पुरानी सभ्यता
हज़ारों साल पहले, मेकअप को स्टेटस सिंबल माना जाता था और यह सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित नहीं था। इस ज़माने में पुरुष भी श्रंगार का उतना ही इस्तेमाल करते थे जितना की महिलाएं। ऐसा इसिलए क्योंकि उस मेकअप सिर्फ आपको खूबसूरत ही नहीं बना रहा था बल्कि यह साथ में औषधी का काम भी करता था।
सुमेरियन सभ्यता के लोगों को लिपस्टिक के शुरुआती उपयोगकर्ताओं का श्रेय दिया जा सकता है। उस समय इसे बनाने के लिए फलों, मेहंदी, मिट्टी और यहां तक कि कीड़ों जैसी नैचुरल चीज़ों का भी उपयोग कर लिया जाता था।
मेसोपोटामिया की महिलाएं इस मामले में कुछ ज़्यादा आगे थीं। वे अपने होठों पर रंग और चमक लाने के लिए ज़मीन से निकले कीमती गहनों तक का इस्तेमाल कर लेती थीं।
मिस्र के रहने वाले लोग, शायद लिपस्टिक के पहले सच्ची प्रेमी थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वे लाल रंग के आगे बढ़े और लिपस्टिक के लिए बैंगनी, सुनहरे और काले रंग के शेड ईजाद किए। असल में उन्हें इसी तरह के रंग पसंद थे। वे इसके लिए भेड़ का पसीना, मगरमच्छ का मल और कई कीड़ों का इस्तेमाल करते थे। हालांकि, मिस्र के लोग लेड और ब्रोमीन मैननाइट और आयोडीन जैसे हानिकारक पदार्थों का भी उपयोग करते थे, जिससे गंभीर बीमारियां हो सकती थीं, यहां तक कि मौत भी।
जापान में भी महिलाएं हेवी मेकअप लगाती थीं, जिसमें लिपस्टिक गहरे रंग की होती थी, जिसे तार और बीवैक्स से तैयार किया जाता था।
वहीं ग्रीक साम्राज्य एक ऐसा था, जहां लिपस्टिक का उपयोग प्रोस्टीट्यूशन से जुड़ा हुआ था और कानूनी तौर पर वेश्याओं को अपने होंठों को गहरे रंग में रंगना ही होता था।
9 ईस्वी में एक अरब वैज्ञानिक अबुलकासिस ने सॉलिड लिपस्टिक का आविष्कार किया। उन्होंने शुरुआत में परफ्यूम लगाने के लिए एक स्टॉक बनाया जिसे बाद में एक सांचे में दबाया जा सकता था। उन्होंने रंगों के साथ भी यही तरीका आज़माया और ठोस लिपस्टिक का आविष्कार किया।
भारत की बात करें, तो प्राचीन समय में यहां होंठों को रंगने के लिए पान का पत्ता चबाया जाता था। इसके अलावा आयुर्वेद में सूखे और फटे होंठों के लिए घी में रतनजोत की सूखी पत्तियों को मिलाकर लगाने की सलाह दी जाती थी। आज भी देश के कई हिस्सों में इसका उपयोग होंठों के लिए किया जाता है।
मध्ययुग में कैसे बदला लिपस्टिक का इतिहास
ईसाई धर्म के फैलने और मज़बूत होने पर चर्च ने लिपस्टिक या फिर किसी भी तरह के मेकअप के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी। लाल होंठों को शैतान से जोड़ा जाने लगा और जो महिलाएं लाल रंग की लिपस्टिक लगाती थीं, उन्हें जादू करने वाली या डायन माना जाने लगा। प्रोस्टीट्यूट्स के अलावा, कोई भी महिला लिपस्टिक नहीं लगाती थी। हालांकि, उस दौर में लिप बाम पॉपुलर थे और कई महिलाएं उसी में हल्का-सा रंग मिलाकर होंठों पर लगाया करती थीं। इसके अलावा होंठों को चबाकर, काट कर या हल्के हाथों से मारा जाता था, ताकि वे हल्के लाल दिखें।
16वीं सदी में फिर लौटी लिपस्टिक
इंग्लैंड में महारानी एलिज़ाबेथ के दौर में लिपस्टिक को एक बार फिर लौटने का मौका मिला। क्वीन खुद लिपस्टिक लगाती थीं और उन्होंने सफेद स्किन के साथ लाल होंठों को पॉपुलर बनाया। हालांकि, इस दौर में लिपस्टिक तक पहुंच सिर्फ उच्च घरानों या फिर एक्टर्स तक सीमित थी। इसके बाद लगभग अगली तीन सदियों तक लिपस्टिक सिर्फ अभिनेताओं और वेश्याओं तक ही पहुंची।
1884 ई
Guerlain नाम की एक फ्रेंच परफ्यूम की कंपनी ने पहली बार बाज़ार में लाने के लिए लिपस्टिक का उत्पादन किया। उनकी लिपस्टिक हिरण के शरीर से निकलने वाली वसा, बीवैक्स और केस्टर ऑयल को मिलाकर तैयार की जाती थी। जिसे बाद में रेशम के काग़ज़ में लपेटा जाता था।
1915
लिपस्टिक आज जिस तरह की सिलेंड्रिकल पैकिंग में आती है, उसके अविष्कार का श्रेय मॉरीस लेवी को जाता है।
1920s
साल 1920 तक, लिपस्टिक को महिलाओं की ज़िंदगी में परमानेंट जगह मिल गई थी। उस समय, प्लम, बैंगनी, चेरी रंग, गहरा लाल रंग और ब्राउन रंग की लिपस्टिक आने लगी थीं। इसी दौर में फ्रेंच केमिस्ट पॉल बॉडरक्रॉक्स ने ऐसी लिपस्टिक बनाई थी, जो किस प्रूफ थी, लेकिन यह ज़्यादा समय तक मार्केट में टिक नहीं पाई, क्योंकि महिलाओं के लिए इसे हटाना मुश्किल हो गया था।
फिर शेनल, ग्वेरलेन, एलीज़ाबेथ आर्डेन, एस्टी लॉडर जैसी कंपनियों ने लिपस्टिक बेचनी शुरू कर दी।
1930s
यह दौर ग्रेट डिप्रेशन का था, लेकिन फिर भी इसका असर लिपस्टिक के उत्पादन पर नहीं पड़ा। इस दौरान हुए सर्वे से पता चला की 50 फीसद टीनएजर्स लड़कियां लिपस्टिक लगाने के लिए अपने मां-बाप से भी लड़ लेती हैं। प्लम और बर्गैंडी इस समय के समय पॉपुलर लिपस्टिक के रंग थे।
1940s
विश्व युद्ध-II के दौरान जो महिलाएं अमेरिकी फौज में भर्ती हुई थीं, उन्हें लाल रंग की लिपस्टिक लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। वजह थी अडॉल्फ हिटलर, जिसे लाल रंग की लिपस्टिक से सख्त नफरत थी। वहीं, भारत की बात करें तो इस ज़माने की एक्टर मधुबाला सौंदर्य मानदंडों को तोड़ने के लिए जानी जाती थीं। इस दौर में महिला एक्टर्स बोल्ड मेकअप और पैन्ट्स पहनने से बचती थीं। लेकिन मधुबाला ने बोल्ड मेकअप भी किया और पैन्ट भी पहनी।
1950s
यह दौर मेरीलिन मॉनरो, ऑड्रे हेपबर्न और एलिज़ाबेथ टेलर जैसी हॉलीवुड की ग्लैम आइकन्स का था, जो दुनियाभर में मेकअप का ट्रेंड बना रही थीं। हर महिला अपनी पसंदीदा एक्टर की तरह दिखना चाहती थी। इस दौर में लिपस्टिक पहले से कहीं ज़्यादा पॉपुलर हो गई थी। 1952 में अपने राज तिलक के लिए क्वीन एलीज़ाबेथ ने अपना खुद का लिपस्टिक शेड तैयार किया था। इसे उनके पसंदीदा ब्रांड क्लारिन्स ने बनाया और नाम रखा 'द बालमोरल'। इस लिपस्टिक की खास बात यह थी कि इसका रंग उनके रोब से मैच कर रहा था।
कुछ समय बाद रेवलॉन अपनी स्मज प्रूफ लिपस्टिक लेकर आया, जिसके बाद ब्रांड्स के बीच एक तरह का युद्ध शुरू हो गया।
1960s-1970s
अब लिपस्टिक को आर्ट और कल्चर से प्रेरणा मिलनी शुरू हो गई और यह फैशन इंडस्ट्री का अहम हिस्सा बन गई। इस दौर में मेबलीन का ऑरेंज डेंजर एक पॉपुलर रंग बन गया।
1980s
80 के दशक में लिपस्टिक में शिमर और ग्लॉस भी शामिल हो गया। बोल्ड रेड लिप्स एक बार फिर स्टेटमेंट लुक बन गए। कपड़ों के साथ होंठों के रंग को मैच करना एक आम बात हो गई। हॉट पिंक इस दौर में काफी पॉपुलर हो गया।
1990s
इस दौर में सिम्पल मेकअप का फैशन आ गया। लोग अपने वातावरण को लेकर सजग हुए और केमिकल फ्री, नैचुरल लिपस्टिक की मांग बढ़ गई। मैक और अर्बन डीके जैसे ब्रांड्स भी मार्केट में शामिल हुए।
2000 के बाद से...
साल 2000 के बाद से शायद लिपस्टिक के बिना मेकअप की कल्पना करना भी मुश्किल हो गया है। इस दौरा में ब्रिटनी स्पीयर्स, पैरिस हिल्टन और भारत में माधुरी दीक्षित जैसी एक्ट्रेसेज़ ने शाइन और ग्लॉस को पॉपुलर बनाया। आज लिपस्टिक सिर्फ मेकअप नहीं है, बल्कि एक ज़रूरी एक्ससेसरी बन गई है। हमें यकीन है कि जब आप अगली बार लिपस्टिक खरीदने जाएंगी या अपने पर्स में रखी लिपस्टिक को देखेंगी, तो इतिहास में इसका मुश्किल और रोचक सफर आपको ज़रूर याद आएगा।
0 Comments
No Comments