नई दिल्ली, NOI : हमारे शरीर में कई सारे ज्वाइंट होते हैं, जहां हड्डियां एक-दूसरे के साथ जुड़ती हैं। इन ज्वाइंट्स को हम मुख्य रूप से कंधे, कुहनी, कूल्हे और घूटने में देखते हैं। समय के साथ-साथ इन ज्वाइंट्स का कार्टिलेज (रेशेदार ऊतक) डैमेज होने लगता है और ज्यादातर इसका प्रभाव घूटने में देखने को मिलता है और बहुत तेज दर्द होता है। ऐसे में ज्वाइंट के दर्द से छुटकारा पाने का सबसे बेहतर उपाय Joint Replacement Surgery है, जो आजकल काफी लोकप्रिय हो रहा है।

डॉ. सैफ एन शाह, (निदेशक आर्थोपेडिक्स) ने बताया कि ज्वाइंट रिप्लेसमेंट एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें ज्वाइंट लिनिंग्स के डैमेज हिस्से को आर्टिफिशियल हिस्से से जोड़ा जाता है, जिन्हें प्रोस्थेसिस (कृत्रिम अंग) कहा जाता है। यह मेटल, प्लास्टिक और सिरेमिक मैटेरियल्स से बना होता है। इसमें ज्यादातर घूटने और कूल्हे के ज्वाइंट को बदला जाता है। इसके अलावा कंधे, कोहनी, टखना और हाथ के छोटे जोड़ों को भी कई बार बदलना पड़ सकता है।

पीछे कुछ दशक में भारत में अर्थराइटिस (जोड़ों का दर्द) के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसके मरीजों में पुरुष और महिलाएं दोनों हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण लाइफस्टाइल में बदलाव, मोटापे का बढ़ना, जीवन जीने की उम्र बढ़ना और जोड़ों के चोट शामिल है। हालांकि, आज मेडिकल में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं, जहां जोड़ों के दर्द का जल्दी और सही इलाज संभव है।

ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की लोकप्रियता को देखते हुए आम आदमी के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह प्रक्रिया क्या होती है। शुरुआत में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट में ज्वाइंट लिनिंग के एक छोटे से हिस्से को जिसे कार्टिलेज कहा जाता है, आर्टिफिशिअल मैटेरियल्स के साथ बदला जाता है। ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी का मुख्य मकसद दर्द को दूर करना और जोड़ों को सामान्य कार्य करने के लिए तैयार करना है।

सर्जिकल तकनीक में जिस तरह से प्रगति हो रही है, उसे देखते हुए यह प्रक्रिया बहुत ही सुरक्षित है और जल्दी हो जाता है। इसमें मरीज का बहुत ही कम खून निकलता है और सर्जिकल निशान भी बहुत छोटे होते हैं। इसमें सर्जरी के बाद रिकवरी बहुत ही जल्दी होता है और दर्द में भी सुधार देखने को मिलता है। इसमें अधिकांश रोगियों को सर्जरी के पहले दिन से ही खड़े होने और चलने के लिए कहा जाता है। एक्सपर्ट नर्सिंग केयर और फिजियोथेरेपी से मरीजों को ऑपरेशन के दूसरे दिन से शौचालय जाने जैसी नियमित गतिविधियों को शुरू करने में मदद मिलती है। निरंतर अभ्यास से मरीज ज्यादा दिनों तक अस्पताल में नहीं रुकता, जिससे मरीज खुश और संतुष्ट रहता है।

ज्वाइंट रिप्लेसमेंट में उपचार अब बेहतर हो रहा है और यह बहुत ही आसान हो चुका है। हालांकि, आप अपनी जीवनशैली में बदलाव करके अर्थराइटिस रोग के विकास को कम कर सकता है। इसके लिए अपने वजन को कंट्रोल में रखें, विशेषज्ञों की सलाह से मसल को मजबूत करने वाले एक्सरसाइज करें। इसके साथ ही, क्रोनिक डिजीज को सही तरह से प्रबंध करें, जिसमें डायबिटीज और रूमेटाइड गठिया शामिल है।

अगर किसी को अर्थराइटिस हो जाता है तो लाइफस्टाइल में बदलाव करके इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसके लिए उसे उठक-बैठक करना, पालथी मारकर बैठना, सीढ़ियां चढ़ना और भारतीय शौचालय सीट का उपयोग करने आदि से बचना चाहिए। इसके अलावा अगर आप शुरुआती अवस्था में एक्सपर्ट की सलाह लेते हैं तो रोग के विकसित होने की संभावना कम हो जाएगी और इलाज के संबंध में सही निर्णय लिया जा सकेगा।

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