Karnataka: जेडीएस से समझौता करने को क्यों मजबूर हुए अमित शाह, कांग्रेस की इस चाल को ध्वस्त करना है लक्ष्य
इंडिया गठबंधन बनने के बाद भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव में जिन राज्यों में चुनौती सबसे कठिन हुई है, उसमें कर्नाटक भी शामिल है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कर्नाटक की 28 सीटों में से 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन जिस तरह पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कर्नाटक पर जीत हासिल की है, उससे समीकरण पलटते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को कर्नाटक में बड़ा नुकसान हो सकता है।
इस नुकसान की आशंका को खत्म करने के लिए भाजपा ने जेडीएस से समझौता कर लिया है। समझौते के अनुसार भाजपा जेडीएस को लोकसभा की चार सीटें देगी। जेडीएस के भाजपा के साथ आने से निचली जातियों के मतदाताओं के वोट एनडीए खेमे में आ सकते हैं जिससे भाजपा को लगता है कि वह अपना पिछला प्रदर्शन बरकरार रखने में कामयाब हो सकती है। जेडीएस ने जब विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में शामिल होने से इनकार किया था, तभी से यह अटकलें लगाई जा रही थी कि वह भाजपा के साथ जा सकती है।
पिछले लोकसभा चुनाव में अजेय 51.38 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 28 में से 25 सीटों पर जीतने वाली भाजपा अचानक बैकफुट पर क्यों आ गई और उसे जेडीएस से समझौता क्यों करना पड़ा, इसका जवाब कांग्रेस की उस रणनीति में भी छिपा हुआ है जिसके आधार पर वह एक बार फिर कर्नाटक में अपनी जीत हासिल करने की योजना बना रही है।
कांग्रेस चल रही ये चाल
दरअसल, कांग्रेस यहां विधानसभा चुनावों का ही फॉर्मूला अपनाते हुए लोकसभा चुनावों में भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की योजना बना रही है। अमर उजाला को मिली जानकारी के अनुसार कर्नाटक कांग्रेस के नेता डीके शिवकुमार ने अभी से भाजपा के नाराज लिंगायत नेताओं पर डोरे डालना शुरू कर दिया है। कांग्रेस की रणनीति है कि भाजपा से लोकसभा का टिकट न पाने वाले या उससे नाराज लिंगायत नेताओं को टिकट देकर लोकसभा चुनाव में उतारा जाए जिससे ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की जा सके।
कांग्रेस ने इस रणनीति को अपने परिणाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पूर्व भाजपा नेताओं को सौंपी है जिन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का रास्ता तैयार करने की पटकथा लिखी थी। जानकारी के अनुसार जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण साउदी को भाजपा के नाराज लिंगायत नेताओं से संपर्क कर उन्हें कांग्रेसी खेमे में लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
इस परिस्थिति में भाजपा जिन दमदार लिंगायत नेताओं के टिकट काटेगी वे कांग्रेसी खेमे में जाकर भाजपा की परेशानी बढ़ा सकते हैं। विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। माना जा रहा है कि जनता दल सेक्युलर यानी जेडीएस से समझौता कर अमित शाह ने इसी रणनीति को ध्वस्त करने की योजना बनाई है।
भाजपा नेताओं का दावा, कर्नाटक का गढ़ अजेय रहेगा
वहीं, भाजपा नेताओं का दावा है कि उसका दक्षिण का किला कर्नाटक आगे भी उसके पास बना रहेगा। बीजेपी के एक केंद्रीय नेता ने अमर उजाला से कहा कि विधानसभा चुनाव में हार स्थानीय नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और उनकी आपसी गुटबाजी थी। लेकिन उसी चुनाव में जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही थी। विधानसभा चुनाव में जनता यह जानती थी कि वह अपने लिए स्थानीय नेताओं का चुनाव कर रही है, लिहाजा स्थानीय नेताओं से नाराज होकर उसने पार्टी को हरा दिया।
लेकिन पूरे देश में यह देखा जाता है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा का हर राज्य में वोट शेयर बढ़ जाता है। यह केवल इसलिए होता है क्योंकि जनता उस समय यह जानती है कि वह देश के प्रधानमंत्री के लिए वोट कर रही है। उन्होंने कहा कि इस बार कर्नाटक सहित पूरे देश में यह ट्रेंड बरकरार रहेगा और कर्नाटक में भी वह एक बार फिर अच्छी जीत हासिल करने में सफल रहेंगे। जेडीएस से समझौता उनकी इस जीत को और सुदृढ़ करने का काम करेगा।
कांग्रेस चल रही ये चाल
दरअसल, कांग्रेस यहां विधानसभा चुनावों का ही फॉर्मूला अपनाते हुए लोकसभा चुनावों में भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की योजना बना रही है। अमर उजाला को मिली जानकारी के अनुसार कर्नाटक कांग्रेस के नेता डीके शिवकुमार ने अभी से भाजपा के नाराज लिंगायत नेताओं पर डोरे डालना शुरू कर दिया है। कांग्रेस की रणनीति है कि भाजपा से लोकसभा का टिकट न पाने वाले या उससे नाराज लिंगायत नेताओं को टिकट देकर लोकसभा चुनाव में उतारा जाए जिससे ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की जा सके।
कांग्रेस ने इस रणनीति को अपने परिणाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पूर्व भाजपा नेताओं को सौंपी है जिन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का रास्ता तैयार करने की पटकथा लिखी थी। जानकारी के अनुसार जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण साउदी को भाजपा के नाराज लिंगायत नेताओं से संपर्क कर उन्हें कांग्रेसी खेमे में लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
इस परिस्थिति में भाजपा जिन दमदार लिंगायत नेताओं के टिकट काटेगी वे कांग्रेसी खेमे में जाकर भाजपा की परेशानी बढ़ा सकते हैं। विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। माना जा रहा है कि जनता दल सेक्युलर यानी जेडीएस से समझौता कर अमित शाह ने इसी रणनीति को ध्वस्त करने की योजना बनाई है।
भाजपा नेताओं का दावा, कर्नाटक का गढ़ अजेय रहेगा
वहीं, भाजपा नेताओं का दावा है कि उसका दक्षिण का किला कर्नाटक आगे भी उसके पास बना रहेगा। बीजेपी के एक केंद्रीय नेता ने अमर उजाला से कहा कि विधानसभा चुनाव में हार स्थानीय नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और उनकी आपसी गुटबाजी थी। लेकिन उसी चुनाव में जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही थी। विधानसभा चुनाव में जनता यह जानती थी कि वह अपने लिए स्थानीय नेताओं का चुनाव कर रही है, लिहाजा स्थानीय नेताओं से नाराज होकर उसने पार्टी को हरा दिया।
लेकिन पूरे देश में यह देखा जाता है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा का हर राज्य में वोट शेयर बढ़ जाता है। यह केवल इसलिए होता है क्योंकि जनता उस समय यह जानती है कि वह देश के प्रधानमंत्री के लिए वोट कर रही है। उन्होंने कहा कि इस बार कर्नाटक सहित पूरे देश में यह ट्रेंड बरकरार रहेगा और कर्नाटक में भी वह एक बार फिर अच्छी जीत हासिल करने में सफल रहेंगे। जेडीएस से समझौता उनकी इस जीत को और सुदृढ़ करने का काम करेगा।
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