कानपुर के चकेरी में एक हिंदू व्यक्ति पर हुए आतंकी हमले के आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई। NIA व ATS की विशेष अदालत में हुई सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष से कई रहस्यमयी तथ्य कोर्ट के सामने रखे गए, जो कि वाकई चौंकाने वाले थे। इन रहस्यों में एक यह भी रहा कि कानपुर में हिंदू की हत्या करने वाले आतंकियों ने 2016 में ही प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में बम विस्फोट का भी प्रयास किया था।

कानपुर में माथे पर तिलक और हाथ में कलावा देखकर सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य रमेश बाबू शुक्ला की हत्या करने वाले आतंकवादियों आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल को एनआईए व एटीएस की विशेष न्यायालय ने गुरुवार को फांसी की सजा सुनाई है।


दोषियों का अपराध की श्रेणी विरल में विरलतम: कोर्ट

न्यायाधीश दिनेश कुमार मिश्र ने दोनों पर 11 लाख 70 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। कोर्ट ने कहा कि दोषियों का अपराध विरल में विरलतम श्रेणी का है, इसे सामान्य हत्या की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

जानकारी के मुताबिक, बीते चार सितंबर को कोर्ट ने दोनों आतंकियों को दोषी करार दिया था और सजा सुनाने की तारीख 11 सितंबर तय की थी। 11 सितंबर को कोर्ट में हड़ताल की वजह से फैसला नहीं सुनाया जा सका।

प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में बम धमाके की भी कोशिश

अभियोजक अधिकारी एम के सिंह, कमल किशोर शर्मा व ब्रजेश कुमार यादव ने अभियुक्तों का आपराधिक इतिहास प्रस्तुत करते हुए बताया कि इन आतंकवादियों ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर वर्ष 2016 में दशहरा रैली के दौरान प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में बम विस्फोट करने का भी प्रयास किया था।

लोक विश्वास को बनाए रखने के लिए दंड जरूरी

गुरुवार को कोर्ट ने वर्चुअल माध्यम से फैसला सुनाते हुए कहा कि लोक विश्वास को बनाए रखने के लिए दोषियों को समुचित दंड से दंडित किया जाना न्यायोचित है। दोषी आतिफ मुजफ्फर व मोहम्मद फैसल को धारा 302 सपठित धारा 34 के तहत मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है।

आईएसआईएस से जुड़े होने का तथ्य

उल्लेखनीय है कि दोनों आतंकियों 24 अक्टूबर, 2016 को रमेश बाबू शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी थी। एटीएस ने जांच के दौरान दो अभियुक्त भोपाल व कानपुर से गिरफ्तार किए गए थे। तब तथ्य सामने आया कि अभियुक्त आतिफ मुजफ्फर और मो. फैसल प्रतिबंधित आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से जुड़े हैं। उन्होंने शिक्षक रमेश बाबू शुक्ला को उनके हाथ में बंधे लाल पीले धागे (कलावा) व माथे पर लगे तिलक से उनकी हिंदू होने की पहचान सुनिश्चित करके हत्या की थी।

काफिरों को मारने की नीयत से किया हमला

जांच में यह भी पाया गया कि अभियुक्तों ने इस्लामिक स्टेट के खलीफा अबु बकर अल बगदादी के नाम की बैयत (शपथ) लेकर भारत के लोगों में दहशत व राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने एवं काफिरों को जान से मारने की नीयत से ऐसा किया। 

दोनों के खिलाफ सात मार्च, 2017 को पैसेंजर ट्रेन में विस्फोट के मामले में एक अन्य रिपोर्ट मध्य प्रदेश के उज्जैन में जीआरपी थाने में दर्ज करवाई गई थी। उज्जैन वाले प्रकरण में दोनों को फांसी की सजा पहले ही सुनाई जा चुकी है।

लोन वुल्फ अटैक शैली में की गई थी शिक्षक की हत्या

विशेष लोक अभियोजक कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि मुकदमे में 29 लोगों की गवाही कराई गई थी। इसमें 15 मुस्लिम गवाह थे। रमेश बाबू शुक्ला की हत्या लोन वुल्फ अटैक शैली में की थी। लोन वुल्फ अटैक आतंकियों के कार्य करने की एक ऐसी शैली है, जिसमें एक से लेकर अधिकतम चार की संख्या में आतंकी अचानक हमला करके लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं।

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