विष्णुपुरी निवासी रमेशबाबू शुक्ला जिन्हें लोग नाम से कम 'मास्टर साहब' से ज्यादा जानते जानते थे। बच्चों को पढ़ाने का जज्बा ऐसा कि विष्णुपुरी से जाजमऊ करीब 25 किलोमीटर दूर साइकिल चलाकर बच्चों को पढ़ाने के लिये पहुंच जाते थे। यह क्रम सेवानिवृत्ति के दो साल बाद भी चलता रहा।

तीनों आतंकियों ने अपने आकाओं से मिली पिस्टल का महज परीक्षण करने के लिये गोली मारकरहत्या  कर दी थी। बेटे अक्षय शुक्ला ने बताया कि 24 अक्टूबर 2016 की शाम पिता रमेश छुट्टी के बाद घर लौट रहे थे।

तभी स्कूल से करीब 500 मीटर दूर पहुंचते ही आतंकी सैफुल्ला, आतिफ मुजफ्फर और मोहम्मद फैसल ने हाथ में कलावा और माथे पर तिलक लगा देखकर रोका और अचानक साइकिल के आगे आ गए। इस पर उन्होंने घबराकर साइकिल रोक दी वह कुछ समझ पाते दोनों ने पिस्टल निकालकर रमेश के सीने में एक के बाद एक दो गोलियां मारी जिससे वह गिरकर तड़पने लगे।


फोटो में सबसे आगे आतिफ मुजफ्फर है, उसके पीछे दोनों हाथों मे पिस्टल लिए मोहम्मद फैसल। उसके पीछे बैनर पकड़े (बड़े बाल और स्काई ब्लू शर्ट में ) सरगना सैफुल्लाह है, जो हाजी कालोनी में मुठभेड़ में मारा गया था। दूसरा बैनर पकड़े उसका साथी है। 

गोली की आवाज सुनकर ग्रामीण दौड़े तो सभी भाग निकले। उधर, खून से लथपथ रमेश को किसी तरह कांशीराम अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

निर्दोष रमेशबाबू को आतंकियों ने केवल उनकी धार्मिक पहचान के लिये निशाना बनाया था। एनआइए की जांच के बाद पता चला कि रमेश बाबू को मारने वाले कोई आम अपराधी नहीं बल्कि आइएसआइएस के आतंकी हैं।


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