NOI: अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम होने के बाद से वह अन्य देशों द्वारा मिलने वाली वैध मदद से वंचित होता जा रहा है। ऐसे में इस बात की आशंका बढ़ गई है कि अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए तालिबान अफीम और हेरोइन जैसी नशीली दवाओं का अवैध कारोबार बढ़ा सकता है। लिहाजा विश्व में ‘नार्को टेररिज्म’ का खतरा मंडरा रहा है।

नार्को टेररिज्म ऐसी संकल्पना है जिसे ‘आतंकवाद के प्रकार’ और ‘आतंकवाद के साधन’ दोनों श्रेणी में रखा जा सकता है। प्रारंभ में दक्षिण अमेरिका में मादक पदार्थो के अवैध व्यापार से संबद्ध आतंकवाद के परिप्रेक्ष्य में प्रयुक्त यह शब्द अब विश्वभर में आतंकी गुटों और गतिविधियों से संबद्ध हो गया है। नार्को टेररिज्म दो आपराधिक गतिविधियों मादक पदार्थ के अवैध व्यापार और आतंकी हिंसा को संयोजित करता है। यह आतंकी संगठनों को उनकी गतिविधियों के लिए राशि जुटाने में सहायता करता है। अफगान में तालिबान के आने पर नार्को टेररिज्म के खतरे में कैसे अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, इसे समझने के लिए आवश्यक है कि तालिबानी अर्थव्यवस्था की अफीम पर निर्भरता को समझा जाए।

तालिबान का दावा है कि अफगान में उसके पिछले शासनकाल में अफीम की खेती पर पूर्ण पाबंदी थी, जिसके चलते अवैध ड्रग्स का कारोबार थम गया था। हालांकि वर्ष 2001 में अफगान में अफीम के उत्पादन में थोड़ी कमी जरूर देखी गई थी, लेकिन बाद के वर्षो में इसमें अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई। यूनाइटेड नेशंस आफिस आन ड्रग्स एंड क्राइम्स यानी यूएनओडीसी के मुताबिक अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक देश अफगानिस्तान है। अफीम के वैश्विक उत्पादन का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा यहीं होता है। तालिबान किसानों से अफीम की खेती कराता रहा है और इस पर कर वसूलता है। वर्ष 2018 में अमेरिका के एक संबंधित विशेषज्ञ ने कहा था कि तालिबान को उसकी आय का 60 फीसद हिस्सा अवैध ड्रग्स के धंधे से आता है। ऐसे में तालिबान के इस दावे पर भरोसा करना मुश्किल है कि वह अफीम का उत्पादन बंद कर देगा।

तालिबान ने करीब ढाई दशक पहले अपने शासन के दौर में अफगान के लिए जो बजट बनाया था, उसमें महज सरकारी दफ्तरों में काम करने वालों और अपने लड़ाकों के लिए वेतन देने का प्रविधान था। देश की अर्थव्यवस्था को कैसे आगे बढ़ाया जाए, इसके लिए बजट में कोई प्रविधान नहीं था। लिहाजा तालिबान ने अफीम के कारोबार को ही अर्थव्यवस्था की धुरी बना दिया। तालिबान इस बार भी अफीम बेचकर और उसकी तस्करी करवा कर अपनी अर्थव्यवस्था चलाएगा जिससे नार्को टेररिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा।

भारत पर मंडराता खतरा : अफगान में होने वाली अफीम से जो हेरोइन बनाई जाती है, उसका एक बड़ा हिस्सा यूरोप और भारत में पहुंचता है। अमेरिकी ड्रग इंफोर्समेंट एजेंसी के मुताबिक अमेरिका में हेरोइन आपूर्ति का महज एक प्रतिशत हिस्सा अफगान से पहुंचता है, वहां अधिकांश हिस्सा मैक्सिको से पहुंचता है। वर्तमान में पाकिस्तान भी आर्थिक संकट से जूझ रहा है। ऐसे में पाकिस्तान भी नार्को टेररिज्म में तालिबान को सहयोग प्रदान कर रहा है। यही कारण है कि भारत में नार्को टेररिज्म के खतरे को लेकर खुफिया एजेंसियों ने अलर्ट जारी किया है और सभी एंटी नारकोटिक्स एजेंसियां सतर्क हैं।

तालिबान की मजबूती के साथ ही भारत में अफगानी ड्रग सप्लायरों की संख्या में वृद्धि देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए जुलाई में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने फरीदाबाद में छापा मारकर 354 किलो हेरोइन बरामद की थी जो इस मामले में अब तक की सबसे बड़ी खेप थी। इस सप्लाई का मास्टरमाइंड एक अफगानी ही था। अफगान से हेरोइन पाकिस्तान के समुद्री तट पर लाई जाती है और वहां से इसे भारत के महानगरों में पहुंचाया जाता है। आतंक को जिंदा रखने के लिए तालिबान व पाकिस्तान न केवल ड्रग तस्करी को प्रोत्साहित कर रहे हैं, बल्कि नए रूट से ड्रग्स सप्लाई सफल रहने से उसी रूट से आतंकी और हथियार भी भेज रहे हैं।

भारत विश्व के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों के मध्य स्थित है, जिसके एक तरफ स्वर्ण त्रिभुज (गोल्डेन ट्राइएंगल) क्षेत्र और दूसरी तरफ स्वर्ण अर्धचंद्र (गोल्डेन क्रिसेंट) क्षेत्र स्थित है। स्वर्ण त्रिभुज क्षेत्र में थाइलैंड, म्यांमार, वियतनाम और लाओस शामिल हैं। वहीं स्वर्ण अर्धचंद्र क्षेत्र में पाकिस्तान, अफगान और ईरान शामिल हैं। अफगान में तालिबानी शासन को ईरान का भी समर्थन मिल रहा है। इससे गोल्डन क्रिसेंट में गतिविधियां और भी तीव्र होंगी। इस तरह भारत को पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाओं पर सावधानी बरतनी होगी। पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के रास्ते भी तालिबान भारत में ड्रग्स भेजने की तैयारियों में जुटा है। कश्मीर में सुरक्षा कड़ी होने पर पाकिस्तान नेपाल की खुली सीमाओं का प्रयोग आतंकवाद और अवैध ड्रग्स की सप्लाई के लिए करता रहा है। नेपाल भी भारत में नार्को टेररिज्म का मुख्य मार्ग बना हुआ है। बांग्लादेश में बेशक बीते दिनों कट्टरपंथियों को कुचला गया है, परंतु अफगान में तालिबान के कब्जे से वहां भी कट्टरपंथियों को पुन: प्रोत्साहन मिला है। ऐसे में तालिबान बांग्लादेश को भी नार्को टेररिज्म का नया रास्ता बना सकता है। म्यामांर में मौजूद सैन्य सरकार को पहले ही चीन का मजबूत समर्थन प्राप्त है, वहां भी चीन के कारण इनकी सक्रियता में वृद्धि हुई है।

आने वाले दिनों नार्को टेररिज्म भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। ऐसे में जरूरी है कि आतंकवाद और ड्रग्स तस्करी को अलग-अलग देखने के बजाय इन पर सख्ती से नियंत्रण करने के प्रयास किए जाने चाहिए ताकि समय रहते समस्या से निपटा जा सके। इसके लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास शुरू करने की आवश्यकता है।

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