NOI : जब एपल के सीईओ टिम कुक कहते हैं कि कोडिंग में दक्षता के लिए चार साल के डिग्री कोर्स की जरूरत नहीं, तो जाहिर है इसमें दिलचस्पी रखने वालों के लिए इससे उत्साहवर्धक कुछ और हो नहीं सकता। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी छठी कक्षा से कोडिंग सिखाने पर जोर दिया गया है। यही कारण है कि आज छोटी उम्र में बच्चे कोडिंग में अपना कमाल दिखा रहे हैं। अहमदाबाद के अरहम ओम तलसानिया ने तो गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज करा लिया है। अरहम एक 'प्रोग्रामिंग जीनियस' के तौर पर जाने जा रहे हैं। पाइथन प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में उन्होंने खास महारथ हासिल की है। वह बताते हैं कि दो वर्ष की उम्र से उन्होंने टैबलेट का प्रयोग करना शुरू कर दिया था। तीन वर्ष की आयु में उनके पास आइओएस एवं विंडो जैसे गैजेट थे, जिस पर वे पजल साल्व करते थे। पिता पाइथन पर काम करते थे,तो उनसे ही इन्होंने कोडिंग सीखी। धीरे-धीरे खुद से छोटे गेम्स क्रिएट करने लगे। आगे चलकर वह एंटरप्रेन्‍योर बनना चाहते हैं। बेंगलुरु के किशोर अश्वथ प्रसन्ना भी एप एक्सलेरेटर से एप डेवलपमेंट एवं कोडिंग में प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने अन्य साथियों को इसके प्रति जागरूक करते हैं। वह वर्कशाप के माध्यम से बच्चों को कोडिंग भी सिखाते हैं।

गणित ने बढ़ाया आत्मविश्वास

पुणे की सई पाटिल तीसरी कक्षा में स्कूल ड्राप करने के बाद से होम स्कूलिंग के तहत पढ़ाई कर रही हैं। इनका कोई निर्धारित रूटीन या दिनचर्या नहीं होती। जिस समय जो करने का मन हुआ, वह करती हैं। लेकिन गणित इनका पसंदीदा विषय है और इस पर वह सबसे अधिक समय व्यतीत करती हैं। बताती हैं, ‘मेरे लिए मैथ्स एक शौक जैसा है। इसमें मुझे नंबर थ्योरी, वैदिक गणित काफी पसंद हैं। जो भी अच्छे टीचर मिलते हैं, उनसे कुछ न कुछ सीख लेती हूं। जैसे स्थानीय भाष्कराचार्य प्रतिष्ठान, ‘रेजिंग अ मैथमेटिशियन फाउंडेशन’ के विभिन्न प्रोग्राम्स एवं गणित संबंधी अन्य कार्यशालाओं से काफी सीखने को मिला है।‘ गणित से लगाव के कारण ही सई २०१८ में ‘विचार वाटिका’ द्वारा आयोजित की गई ‘रामानुजन यात्रा’ में भी शामिल हुई थीं। इस दौरान इनका उन तमाम स्थानों पर जाना हुआ, जहां महान गणितज्ञ रामानुजन की शिक्षा-दीक्षा हुई, उनका जीवन गुजरा। वह दक्षिण भारत के कुछ संग्रहालयों में भी गईं। सई का कहना है कि गणित ने उन्हें अपनी दिनचर्या को बेहतर तरीके से व्यवस्थित करना सिखाया है। उनकी एकाग्रता एवं आत्मविश्वास को बढ़ाया है। अकेले यात्राएं कर लेती हैं। वैसे, पेशे से साफ्टवेयर इंजीनियर एवं अब गणित की शिक्षक सई की मां जरूरत पड़ने पर बेटी को गाइड करने से पीछे नहीं रहती हैं।

पेंटिंग के जुनून से मिली पहचान

कैसा भी हुनर हो, वह बच्चों-किशोरों के आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ा देता है। फिर कितनी ही मुश्किल परिस्थिति क्यों न हो, बच्चे अपने जुनून को जीने से पीछे नहीं रहते। जैसे, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में पेंटिंग के लिए 'प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’ प्राप्त करने वाले देहरादून के अनुराग रमोला को ही लें। अनुराग सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वह अपने बड़े भाई के साथ एक ही कमरे में रहते थे। घर में न स्टैंड बोर्ड था, न अच्छे ब्रश और रंग। कभी बेड, तो कभी जमीन पर बैठकर अपनी कला को तराशते। लेकिन उसके माध्यम से इन्होंने अपने स्कूल, क्षेत्र व प्रदेश का नाम रोशन किया। अनुराग बताते हैं, ‘ परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के कारण पेंटिंग के लिए बेहतर बोर्ड और महंगे कलर नहीं खरीद सकता था। लेकिन इसमें गहरी रुचि के कारण इसे छोड़ भी नहीं सकता था। पांचवीं कक्षा में केंद्रीय विद्यालय की ओर से आयोजित संभाग स्तरीय पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिला। उसमें प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया। इससे आत्मविश्वास बढ़ा। पिता चैत सिंह ने भी कुछ पैसे जुटाकर एक स्टैंड बोर्ड दिलाया। इसके बाद विभिन्न प्रतियोगिताओं में शामिल होकर स्कूल,संभाग व राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पुरस्कार प्राप्त किए।‘ अनुराग 12वीं के बाद देहरादून में आर्ट गैलरी खोलना चाहते हैं, ताकि वे अब तक बनायी अपनी 160 पेंटिंग वहां प्रदर्शित कर सकें। इसमें उन्हें भी मौका दिया जाएगा, जो जगह न मिलने के कारण अपनी पेंटिंग प्रदर्शित नहीं कर पाते।

सपने को पूरा करने का मिला हौसला

१७ वर्षीय प्रिया यादव को भी पढ़ाई के अलावा क्रिएटिव आर्ट वर्क में काफी दिलचस्पी थी। कोरोना काल में जब स्कूल जाना बंद हो गया, तो इन्होंने कैंडल, लिफाफा, साड़ी बैग, पोटली व जूट बैग आदि बनाना शुरू किया। इतना ही नहीं, इनकी बिक्री से इन्होंने अच्छी कमाई भी की। खुद को हुनरमंद बनाकर वह आत्मविश्वास से भरपूर नजर आती हैं। बताती हैं प्रिया, ‘मैं छठी कक्षा से परवरिश स्कूल में पढ़ रही हूं। वहां हमें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यही वजह रही कि मैंने पढ़ाई के साथ खुद को अन्य विधाओं में कुशल बनाने का फैसला लिया। स्कूल के शिक्षकों ने हमें हस्तकला में प्रशिक्षित किया। हमें कच्ची सामग्री उपलब्ध कराई, जिससे मैं विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना पाई।‘ भोपाल निवासी प्रिया की मां आंगनबाड़ी सहायिका हैं एवं पिता एक कामगार। घर की आर्थिक स्थिति संतोषजनक न होने के बावजूद तीनों बेटियों ने पढ़ाई जारी रखी। प्रिया मरीजों की सेवा करना चाहती थीं, इसलिए बीते एक वर्ष से नर्सिंग परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। आखिरकार उनका यह सपना भी पूरा होने जा रहा है। नर्सिंग ट्रेनिंग परीक्षा क्लियर करने के बाद वे शहर के गांधी मेडिकल कालेज में दाखिला लेने जा रही हैं। वह कहती हैं, ‘मैं खुश हूं कि अपने परिवार की मदद कर पाई। उन्हें मुझ पर गर्व है। आने वाले समय में और लोगों की सेवा कर पाऊंगी।

विकसित करनी होगी सीखने की ललक (पूजा गोयल, सीओओ एवं सह-संस्थापक, आविष्कार)

यह संतोष की बात है कि आज अभिभावक बच्चों को इनोवेशन या कुछ नया करने और सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। अगर हमें बच्चों का भविष्य बनाना है, तो स्कूल एवं घर में ऐसा माहौल बनाना होगा जिससे कि वे नये प्रयोग कर सकें, जोखिम उठा सकें। अगर किसी काम में विफल हों, तो निराश होने के बजाय 'आउट आफ बाक्स' सोचने का प्रयास करें। कुछ तोड़ें, कुछ जोड़ें। इसी से सीखने की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। पैरेंट्स को बच्चों में ऐसी आदत विकसित करनी होगी। अपने प्लेटफार्म के जरिये हम बच्चों को रोबोटिक्स किट्स एवं लाइव आनलाइन एक्सपर्ट क्लासेज आफर करते हैं, जिससे ५ से १५ वर्ष की उम्र के बच्चों में कंप्यूटेशनल थिंकिंग, प्राब्लम साल्विंग एवं लाजिकल थिंकिंग जैसी स्किल्स डेवलप हो सके। देश के एक हजार से अधिक स्कूलों के लाखों स्टूडेंट्स हमारे रोबोटिक्स किट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे बच्चों को आइओटी, एआइ टेक्नोलाजी का एक्सपोजर मिल रहा है। वे भविष्य की टेक्नोलाजी के लिए तैयार हो रहे हैं।

स्कूली छात्रों के लिए ‘लक्ष्य’ प्रोग्राम (श्रीनिवासा अडेपल्ली, सीईओ, ग्लोबलज्ञान एकेडमी)

स्कूल स्टूडेंट्स में क्रिटिकल थिंकिंग, कम्युनिकेशन एवं कांफिडेंस जैसी स्किल डेवलप करने के लिए हमने यूथ लीडरशिप प्रोग्राम, 'लक्ष्य' एवं 'लक्ष्य जूनियर' लांच किया है। पांचवीं से दसवीं कक्षा के बच्चों के लिए तैयार किए गए इस प्रोग्राम के तहत उन्हें भविष्य के लिए कुशल बनाना है। इसमें स्टूडेंट्स को दो महीने के बूट कैंप स्टाइल लर्निंग माडल के अंतर्गत लाइव क्लासेज, असाइनमेंट्स, ग्रुप प्रोजेक्ट्स, क्विज एवं वीडियो कंटेंट द्वारा प्रशिक्षित किया जाएगा। इससे स्टूडेंट्स अपने भीतर की क्षमता को पहचान कर उसे निखार सकेंगे। यह प्रोग्राम कारपोरेट लीडर्स एवं कोचेज द्वारा तैयार किया गया है।

एनएसडीसी-वाट्सएप डिजिटल स्किल एकेडमी देंगे प्रशिक्षण

डिजिटल स्किल चैंपियनंस प्रोग्राम का उद्देश्य युवाओं को आत्मनिर्भर बनाना है, जिससे कि वे स्वरोजगार की ओर प्रेरित हों। इसके तहत स्कूल एवं कालेज के स्टूडेंट्स को डिजिटल सेफ्टी एवं आनलाइन प्राइवेसी जैसी स्किल्स की ट्रेनिंग दी जाएगी। उन्हें डिजिटल स्किल चैंपियंस का सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा। पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह प्रोग्राम पांच राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं कर्नाटक) के करीब ५० कैंपस में शुरू किया जाएगा।

विश्व कौशल दिवस

संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष २०१४ से हर साल 15 जुलाई को वर्ल्ड यूथ स्किल्स डे यानी विश्व युवा कौशल दिवस मनाया जाता है। यह दिन युवाओं, तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों,सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के हितधारकों के लिए एक अवसर के साथ-साथ युवाओं को बेहतर रोजगार और उद्यमिता के लिए कौशल प्रदान करने के महत्व को चिन्हित करने के लिए भी मनाया जाता है।

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