नई दिल्‍ली, NOI: अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी और सऊदी अरब से अपनी पैट्रियट मिसाइल सिस्टम को हटाने के बाद नए अंतरराष्‍ट्रीय परिदृष्‍य में क्वाड देशों की बैठक को काफी अहम माना जा रहा है। यह बैठक ऐसे समय हो रही है, जब अफगानिस्‍तान को लेकर अमेरिका की दुनिया में किरकिरी हुई है। सऊदी से पैट्रियट मिसाइल सिस्टम को हटाने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। यहां एक खास बात यह है कि अफगानिस्‍तान में इस अमेरिकी रणनीति से भाारत के समक्ष एक बड़ी चुनौती उत्‍पन्‍न हुई है। चीन को अफगानिस्‍तान में विस्‍तार करने का मौका मिला है। अफगानिस्‍तान में तालिबान, पाकिस्‍तान और चीन के साठगांठ से भारत के समक्ष एक नई चिंता उत्‍पन्‍न हुई है। सवाल यह है कि क्‍या क्वाड देशों की बैठक में इन बिंदुओं पर चर्चा होगी। क्‍या अमेरिका अपने सहयोगियों को उनकी सुरक्षा का भरोसा दिला पाएगा। अमेरिका के महाशक्ति होने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आइए जानते हैं इस पर प्रो. हर्ष पंत की राय।

जाहिर तौर पर अफगानिस्‍तान और सऊदी अरब प्रकरण का असर क्वाड देशों की बैठक पर पड़ेगा। अमेरिकी सैनिकों की हटने के बाद अफगानिस्‍तान में चीन की सक्रियता ने अमेरिका के समक्ष एक नई चुनौती पैदा की है। खासकर तब जब क्वाड का गठन चीन की रणनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए किया गया हो। इस संगठन मे शामिल आस्‍ट्रेलिया, जापान और भारत के समक्ष अब एक नया संकट खड़ा हुआ है। हमें लगता है कि सबसे बड़ा संकट तो भरोसे का है। अब मामला चाहे प्रशांत क्षेत्र के विकास और स्थिरता का हो या दक्षिण चीन सागर में चीन के प्रभुत्‍व का, ये चुनौतियां अब बड़ी हुई हैं। अमेरिका के समक्ष ताइवान को लेकर भी नया संकट उत्‍पन्‍न हुआ है।

क्वाड देशों की बैठक ऐसे समय हो रही है जब भारत अफगानिस्‍तान में अपने हितों को लेकर बड़ा संघर्ष कर रहा है। चीन और पाकिस्‍तान मिलकर अफगानिस्‍तान में भारत के खिलाफ रणनीति बना सकते हैं। ऐसे में अफगानिस्‍तान में भारतीय हितों की सुरक्षा करना भारत के लिए बड़ी चुनौती होगी। उधर, बाइडन प्रशासन पूर्व में कह चुका है कि पूरी दुनिया में भारत उसका सर्वश्रेष्‍ठ मित्र है। ऐसे में उसे अपनी कथनी और करनी में फर्क करना होगा। अमेरिका को भारत का यह भरोसा जीतना होगा। अफगानिस्‍तान में उसे भारतीय हितों के लिए खड़ा होना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्वाड देशों की उपयोगिता और प्रासंगिता पर भी सवाल खड़े होंगे। उन्‍होंने कहा आस्‍ट्र‍ेलिया, जापान और ताइवान को भी यह विश्‍वास दिलाना होगा कि वह रणनीतिक रूप से इन देशों के साथ खड़ा है। वह मुसिबत के समय उनका साथ निभाएगा।

बाइडन प्रशासन के इस फैसले से अमेरिका की कहीं न कहीं किरकिरी हुई है। अमेरिकी साख को भी धक्‍का लगा है। अमेरिकी सेना की अफगानिस्‍तान की वापसी के बाद तालिबान ने जिस तरह से जश्‍न मनाया उससे एक संदेश गया कि यह उसकी जीत है और अमेरिका की पराजय। अफगानिस्‍तान से निकलने के पूर्व उसने अपने म‍ित्र देशों के हितों की परवाह नहीं किया। अफगानिस्‍तान से निकलने के पूर्व उसने वहां की लोकतांत्रिक सरकार की परवाह नहीं की। भारत के हितों की चिंता नहीं की। उन्‍होंने कहा यह संदेश भी गया कि अमेरिका अपने हितों के आगे मित्र देशों की अनदेखी करता है। ऐसे में अमेरिका विरोधी देशों को यह कहने का मौका मिला है कि वह अपने सहयोगी राष्‍ट्रों का साथ नहीं निभाता है।

अमेरिका तालिबान के साथ एक लोकतांत्रिक मूल्‍यों के लिए जंग लड़ रहा था। उसने दुनिया को यह द‍िखाने का प्रयास किया कि अफगानिस्‍तान में उसकी पूरी लड़ाई लोकतांत्रिक मूल्‍यों को लेकर है। क्वाड एक लोकतांत्रिक देशों का संगठन है। इसकी स्‍थापना चीन के लोकतांत्रिक विरोधी मूल्‍यों को लेकर हुई। और अब अमेरिका तालिबान के साथ काम करने का इच्‍छुक लग रहा है। इससे भी उसकी विश्‍वनियता पर संकट खड़ा हुआ है। यह बड़ा संकट है। इससे यह बता साबित होती है कि अमेरिका अपने हितों की खातिर कुछ भी छोड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो क्वाड का क्‍या होगा।


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