अयोध्‍या, NOI : रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के साथ रामनगरी का रुतबा आस्था के साथ राजनीतिक क्षितिज पर भी बढ़ता जा रहा है। यह सच्चाई जून माह के दौरान पूरी शिद्दत से परिभाषित हुई। मनसे प्रमुख राज ठाकरे का पांच जून को प्रस्तावित दौरा विरोध के चलते संभव नहीं हो सका, लेकिन यह स्पष्ट हो गया कि हिंदुत्‍व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मुद्दा हथियाने के लिए राजनीतिज्ञ किस कदर ललक रहे हैं।

हालांकि उत्तर भारतीयों के उत्पीड़न के सवाल पर भाजपा सांसद और कुश्ती संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के नेतृत्व में विरोध के चलते राज ठाकरे अयोध्या नहीं आ सके, किंतु उनके प्रस्तावित आगमन के दूसरे दिन ही उनके भतीजे और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री आदित्य ठाकरे की अयोध्या आगमन की तारीख जरूर तय हो गई। शिवसेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं राज्यसभा सदस्य संजय राउत तथा महाराष्ट्र सरकार के नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने आदित्य के अयोध्या आगमन की घोषणा मुंबई से अयोध्या आकर की।

इस घोषणा के साथ शिवसेना के प्रतिनिधि मंडल ने रामलला और रामनगरी के प्रति आस्था ज्ञापित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी और यह भी बताया कि 15 जून को शिवसेना प्रमुख एवं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे अयोध्या यात्रा के दौरान आस्था से ओत-प्रोत रहेंगे। वह रामलला का दर्शन करने के साथ पुण्य सलिला सरयू की आरती भी करेंगे।

आदित्य के अयोध्या आगमन से पूर्व 12 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी दूसरी पारी के ढाई माह के भीतर चौथी बार रामनगरी में होंगे। वह रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास के 84वें जन्मोत्सव समारोह में शामिल होने आ रहे हैं। लेकिन यह तय है कि हर बार की तरह इस यात्र में भी वह रामलला एवं बजरंगबली के सामने श्रद्धावनत होंगे।

2017 से मार्च 2022 तक के प्रथम कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने 40 से अधिक बार रामनगरी की यात्र की थी। महंत नृत्यगोपालदास के जन्मोत्सव के ही संबंध में उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य शुक्रवार को रामनगरी में थे। राजनीतिक विश्लेषक एवं साकेत महाविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. आरके जायसवाल के अनुसार मंदिर निर्माण के साथ करोड़ों राम भक्त रामनगरी के प्रति उत्सुक हुए हैं और इन राम भक्तों को साधने के लिए राजनीतिज्ञों का अयोध्या की ओर उन्मुख होना सहज-स्वाभाविक एवं सुविधाजनक है। इस चलन से यह भी परिभाषित है कि आज की राजनीति अल्पसंख्यकों की बजाय बहुसंख्यकों पर केंद्रित हो चली है।

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