NOI: भारत सरकार ने पड़ोसी देशों को फिर से कोरोना रोधी टीकों के निर्यात को लेकर जो प्रतिबद्धता जताई उससे कोविड महामारी से लड़ाई और आसान तो होगी ही  भारत का इस मामले में योगदान भी रेखांकित होगा। भारत ने टीकों का फिर से निर्यात शुरू करने के संकेत देकर यह भी स्पष्ट किया कि वह वैश्विक महामारी कोविड से लड़ने के प्रति वचनबद्ध है। उसने ऐसी ही वचनबद्धता इस वर्ष के प्रारंभ में भी प्रदर्शित की थी और उसके तहत दुनिया के कई देशों को टीके उपलब्ध कराए थे।  कुछ देशों को तो टीके मुफ्त भी दिए गए थे  विश्व स्तर पर इसकी प्रशंसा भी हुई थी, लेकिन दुर्भाग्य से विश्व समुदाय और विशेष रूप से दुनिया के प्रमुख देश कोविड महामारी से मिलकर लड़ने की वैसी संकल्पबद्धता का परिचय नहीं दे सके, जैसी उन्हें देनी चाहिए थी।

आखिर यह एक तथ्य है कि अमेरिका सरीखे देशों ने दुनिया को टीके उपलब्ध कराने के बजाय उनकी जमाखोरी करना बेहतर समझा। टीकों के मामले में न केवल संकीर्ण राजनीति की जा रही है, बल्कि दूसरे देशों के नागरिकों के आवागमन में अनावश्यक बाधाएं भी खड़ी की जा रही हैं। इसका ताजा उदाहरण है ब्रिटेन सरकार का यह फैसला कि भारत में कोविशील्ड टीका लेने वालों को टीका नहीं लगा हुआ माना जाएगा।  यह फैसला इसलिए विचित्र और हास्यास्पद है, क्योकि कोविशील्ड ब्रिटेन में ही तैयार किया गया है और भारत में उसका उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया की ओर से किया जा रहा है। ब्रिटेन में इसी टीके को एस्ट्राजेनिका नाम से जाना जाता है। किसी के लिए भी समझना कठिन है कि अलग-अलग नाम वाले एक ही टीके के मामले में दोहरा मानदंड क्यों अपनाया जा रहा है? इस पर हैरानी नहीं कि ब्रिटेन के इस फैसले को एक तरह के नस्लवाद के रूप में देखा जा रहा है।

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